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भालिया गेहूं
(Bhalia wheat)

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भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication- GI) प्रमाणित भालिया किस्म के गेहूं की पहली खेप गुजरात से केन्या और श्रीलंका को निर्यात की गई है।

• जीआई प्रमाणित गेहूं की इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और यह स्वाद में मीठा होता है।

• भालिया गेहूं की फसल प्रमुख रुप से गुजरात के भाल क्षेत्र में पैदा की जाती है।

• गेहूं की इस किस्म की एक विशिष्ट विशेषता यह है कि इसे बारिश के मौसम में बिना सिंचाई के उगाया जाता है और गुजरात में लगभग दो लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में इसकी खेती की जाती है।

यह बिना सिंचाई के बारानी परिस्थितियों में उगाया जाता है और गुजरात में लगभग दो लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में खेती की जाती है।

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पृथ्वी पर मौजूद अधिकांश मीथेन मूलतः जैविक रूप से उत्पन्न हुई है। मेथेनोजेन नामक सूक्ष्मजीव एक चयापचय उपोत्पाद के रूप में मीथेन उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं।
इन्हें जीवित रहने के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है और ये प्रकृति में व्यापक रूप से वितरित होते हैं।
ये दलदल, मृत कार्बनिक पदार्थों और यहाँ तक कि मानव आँत में भी पाए जाते हैं।
इन्हें उच्च तापमान में भी जीवित रहने के लिये जाना जाता है, कई अध्ययनों से यह पता चला है कि ये मंगल ग्रह की विशिष्ट परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग में मेथेनोजेन के योगदान को समझने के लिये भी इनका व्यापक अध्ययन किया गया है।
टाइटन
टाइटन (Titan) शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है और हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह है।
◦ बृहस्पति का उपग्रह गैनीमेड (Ganymede) इससे बस थोड़ा बड़ा है।
इसकी सतह पर नदियाँ, झीलें और समुद्र हैं (हालाँकि इनमें पानी की जगह मीथेन तथा ईथेन जैसे हाइड्रोकार्बन होते हैं)।
टाइटन का वायुमंडल पृथ्वी की तरह ज़्यादातर नाइट्रोजन से बना है, लेकिन यह इससे चार गुना अधिक सघन है।
पृथ्वी के विपरीत इसमें बादल और मीथेन की वर्षा होती है।
चूँकि यह सूर्य से बहुत दूर है, इसलिये इसकी सतह का तापमान (-179 डिग्री सेल्सियस) है।
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राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियमन, 1860 के अंतर्गत 12 अगस्त 2011 को एक सोसाइटी के रुप में पंजीकृत किया गया था।
यह ‘पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम’ (EPA), 1986 के प्रावधानों के तहत गठित ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ (NGRBA) की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य करता था।
‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ (NGRBA) को ‘गंगा नदी के पुनरुद्धार, संरक्षण और प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय परिषद’ (National Council for Rejuvenation, Protection and Management of River Ganga), जिसे ‘राष्ट्रीय गंगा परिषद’ (National Ganga Council – NGC) भी कहा जाता है, का गठन किए जाने बाद 7 अक्टूबर 2016 को भंग कर दिया गया था।

https://www.tg-me.com/chetasiasofficial
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सियाचिन ग्लेशियर
सियाचिन ग्लेशियर हिमालय में पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है, जो प्वाइंट NJ9842 के उत्तर-पूर्व में है, यहाँ भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा समाप्त होती है।
यह दुनिया के गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों का दूसरा सबसे लंबा ग्लेशियर है।
◦ ताज़िकिस्तान के ‘यज़्गुलेम रेंज’ में स्थित ‘फेडचेंको ग्लेशियर’ दुनिया के गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों का सबसे लंबा ग्लेशियर है।
सियाचिन ग्लेशियर उस जल निकासी विभाजन क्षेत्र के दक्षिण में स्थित है, जो काराकोरम के व्यापक हिमाच्छादित हिस्से में यूरेशियन प्लेट को भारतीय उपमहाद्वीप से अलग करता है, जिसे कभी-कभी ‘तीसरा ध्रुव’ भी कहा जाता है।
सियाचिन ग्लेशियर लद्दाख का हिस्सा है, जिसे अब केंद्रशासित प्रदेश में बदल दिया गया है।
सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊँचा युद्ध क्षेत्र है।
पूरा सियाचिन ग्लेशियर वर्ष 1984 (ऑपरेशन मेघदूत) में भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया था।
सरकार द्वारा भारत के 14 बाघ अभयारण्यों को ‘ग्लोबल कंजर्वेशन एश्योर्ड | टाइगर स्टैंडर्ड्स’ (CA|TS) की मान्यता प्राप्त होने के बारे में जानकारी दी गई है। जिन 14 बाघ अभयारण्यों को CA|TS द्वारा मान्यता प्रदान की गयी हैं उनमे शामिल है:
1 असम के मानस, काजीरंगा और ओरंग,
2 मध्य प्रदेश के सतपुड़ा, कान्हा और पन्ना,
3 महाराष्ट्र के पेंच,
4 बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व,
5 उत्तर प्रदेश के दुधवा,
6 पश्चिम बंगाल के सुंदरबन,
7 केरल में परम्बिकुलम,
8 कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिजर्व और
9 तमिलनाडु के मुदुमलई और अनामलई टाइगर रिजर्व
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जीन संवर्द्धित’ फसलें क्या हैं?

जीएम फसल (Genetically Modified-GM), उन फसलों को कहा जाता है जिनके जीन को वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित किया जाता है।
• जेनेटिक इजीनियरिंग के ज़रिये किसी भी जीव या पौधे के जीन को अन्य पौधों में डालकर एक नई फसल प्रजाति विकसित की जाती है।
• जीन संवर्द्धित फसल में, प्राकृतिक रूप से परागण की बजाय कृत्रिम रूप से प्रविष्ट कराए हुए जीन होते हैं।
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स्मॉग टॉवर’ क्या होते है?
‘स्मॉग टावर’, बड़े पैमाने पर वायु-शोधक’ / एयर प्यूरीफायर (Air Purifiers) के रूप में कार्य करने हेतु डिज़ाइन की गई संरचनाएं हैं।
• इनके निचले हिस्से में ‘हवा को खीचने’ के लिए ‘एयर फिल्टर’ और ‘पंखो’ की कई परते लगायी गयी हैं।
• प्रदूषित हवा के स्मॉग टॉवर में प्रवेश करने के बाद, वातावरण में पुन: छोड़ने से पहले वायु को कई परतों से गुजार कर शुद्ध किया जाता है।

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डूरंड रेखा’

डूरंड रेखा (Durand Line), अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2,670 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय स्थलीय सीमा रेखा है।
• 12 नवंबर, 1893 को ब्रिटिश सिविल सेवक सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड और तत्कालीन अफगान शासक अमीर अब्दुर रहमान के मध्य ‘डूरंड रेखा’ का सीमांकन करने वाले समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
• यह रेखा, सीमा के दोनों ओर पश्तून कबायली इलाकों को विभाजित करती हुई गुजरती है।
• डूरंड रेखा का विस्तार, अफगानिस्तान की चीन के साथ सीमा से लेकर ईरान के साथ अफगानिस्तान की सीमा तक है।
• पाकिस्तान को 1947 में स्वतंत्रता मिलने के साथ ही ‘डूरंड रेखा’ विरासत में मिली थी।

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जीन बैंक’ (Gene Banks) क्या होता हैं?
आपात स्थिति में लोग बैंकों में अपना पैसा जमा करके बचाते हैं। आनुवंशिक (जेनेटिक) बैंक, दुर्लभ पौधों और जानवरों का संरक्षण करने हेतु कार्य करने वाले किसानों और वैज्ञानिकों के लिए इसी तरह के उद्देश्य की पूर्ति करते हैं।

नेशनल जीन बैंक’ (NGB) के बारे में:
• नेशनल जीन बैंक की स्थापना वर्ष 1996 में पादप आनुवंशिक संसाधनों (Plant Genetic Resources – PGR) के बीजों को भावी पीढ़ियों के लिये संरक्षित करने हेतु की गई थी।
• इसमें बीजों के रूप में लगभग एक मिलियन जर्मप्लाज़्म को संरक्षित करने की क्षमता है।
• इसमें विभिन्न फसल समूहों जैसे अनाज, बाजरा, औषधीय और सुगंधित पौधों और नशीले पदार्थों आदि का भंडारण किया जाता है।
• वर्तमान में, नेशनल जीन बैंक 52 लाख अनुवृद्धियों (accessions) को संरक्षित कर रहा है, जिनमें से 2.7 लाख भारतीय जर्मप्लाज़्म हैं जबकि शेष अन्य देशों से आयात किए गए हैं।

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मदुर चटाईयां

(Madur mats)
• पश्चिम बंगाल की दो महिलाओं को ‘मदुर फर्श मैट’ बनाने में उनके उत्कृष्ट कौशल को सम्मानित करते हुए ‘राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार’ दिया गया है। जमीन पर विछाई जाने वाली येमदुर चटाईयां’ विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में ही बनाई जाती हैं।
• ‘मदुर चटाईयां’ बंगाली जीवन शैली का एक आंतरिक हिस्सा हैं और ये प्राकृतिक रेशों से बनाई जाती है।
• इनके लिए ‘मदुरकथी’ (Madurkathi) के रूप में भी जाना जाता है, इन चटाईयों को अप्रैल 2018 में भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री द्वारा भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग से सम्मानित किया गया था।

• 1744 में, नवाब अलीबर्दी खान ने इस संबंध में जमींदार जागीरदारों के लिए एक आज्ञा-पत्र जारी किया गया था जिसके तहत हर कलेक्ट्रेट में उपयोग के लिए मदुर चटाईयों’ की आपूर्ति करना अनिवार्य था।

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विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड), भौगोलिक रूप से ‘चिह्नित’ किए गए ‘एन्क्लेव’ / ‘अंतः क्षेत्र’  होते हैं, जिनमें व्यापार और व्यापार से संबंधित नियम और पद्धतियाँ, देश के बाकी हिस्सों से अलग होती हैं और इसलिए इन क्षेत्रों में स्थापित सभी इकाइयों को विशेष सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

सेज (SEZ) अधिनियम के मुख्‍य उद्देश्‍य:
1 अतिरिक्‍त आर्थिक कार्यकलाप का सृजन
2 वस्‍तुओं एवं सेवाओं के निर्यात का संवर्धन
3 घरेलू एवं विेदेशी स्रोतों से निवेश का संवर्द्धन
4 रोजगार अवसरों का सृजन
5 अवसंरचना सुविधाओं का विकास

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वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ (Commission for Air Quality Management – CAQM) का गठन अक्टूबर 2020 में ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इसके निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग अध्यादेश’, 2020 (‘Commission for Air Quality Management in National Capital Region and Adjoining Areas Ordinance’) के तहत किया गया था ।
• CAQM का गठन करने के लिए पूर्ववर्ती ‘पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण’ (Environment Pollution (Prevention and Control) Authority) अर्थात EPCA को भंग कर दिया गया था।
• ‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ एक ‘सांविधिक प्राधिकरण’ (Statutory Authority) होगा।
• यह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे निकायों का अधिक्रमण (Supersede) करेगा।

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ग्रीनहाउस गैसें (GHG जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड ) एक प्राकृतिक चक्र का अनुसरण करती हैं - वे लगातार वातावरण में प्रवाहित होती हैं तथा प्राकृतिक 'सिंक' जैसे- भूमि और महासागरों के माध्यम से इसको हटाया जाता है।
◦ पौधों और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र में प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन को अवशोषित करने तथा इसे जीवित बायोमास में संग्रहीत करने की अद्वितीय क्षमता होती है।
• मनुष्यों द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का लगभग 56% महासागरों और भूमि द्वारा अवशोषित किया जाता है।
• लगभग 30% भूमि द्वारा और शेष महासागरों द्वारा।

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भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान:

• इसमें भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है और यह रामसर स्थल है। इसे वर्ष 1988 में भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया था।
• भितरकनिका ब्राह्मणी, बैतरणी, धामरा और महानदी नदी प्रणालियों के मुहाने में स्थित है। यह ओडिशा के केंद्रपाड़ा ज़िले में है।
• यह ओडिशा के बेहतरीन जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में से एक है और अपने मैंग्रोव, प्रवासी पक्षियों, कछुओं, मुहाना के मगरमच्छों तथा अनगिनत खाड़ियों के लिये प्रसिद्ध है।
• ऐसा कहा जाता है कि यहाँ देश के मुहाना या खारे जल के मगरमच्छों का 70% हिस्सा रहता है, जिसका संरक्षण वर्ष 1975 में शुरू किया गया था।
◦ संरक्षित क्षेत्र: भितरकनिका का प्रतिनिधित्व 3 संरक्षित क्षेत्रों द्वारा किया जाता है जो इस प्रकार हैं:
• भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान।
• भितरकनिका वन्यजीव अभयारण्य।
• गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य।

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ब्राह्मणी नदी:
◦ यह पूर्वोत्तर ओडिशा राज्य, पूर्वी भारत में एक नदी है। दक्षिणी बिहार राज्य में शंख और दक्षिण कोयल नदियों के संगम से बनी ब्राह्मणी 300 मील तक बहती है।
◦ यह प्रायः दक्षिण-दक्षिण पूर्व में बोनाईगढ़ और तालचेर से होकर बहती है तथा फिर महानदी की उत्तरी शाखाओं में शामिल होने के लिये पूर्व की ओर मुड़ जाती है, जो तब पलमायरास पॉइंट पर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

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ब्लैक सॉफ्टशेल कछुआ :

• वे पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में मंदिरों के तालाबों में पाए जाते हैं। 
• इसकी वितरण सीमा में ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियाँ भी शामिल हैं।
◦ संरक्षण की स्थिति :
• IUCN रेड लिस्ट : गंभीर रूप से संकटग्रस्त
• CITES : परिशिष्ट- I
• वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : कोई कानूनी संरक्षण नहीं

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जीनोम अनुक्रमण’ का उद्देश्य:
• ‘जीनोम अनुक्रमण’ का मुख्य उद्देश्य ‘निगरानी’ करना है। यह वायरस के प्रचलित वेरिएंट, उभरते वेरिएंट (जैसे डेल्टा) और दोबारा संक्रमण पैदा करने वाले वेरिएंट की सही तस्वीर हासिल करने में मदद करता है।
• ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ द्वारा ‘अनुक्रमण के आंकड़ों’ को GISAID जैसे ओपन-एक्सेस प्लेटफॉर्म पर संग्रहीत किए जाने पर जोर दिया जा रहा है, ताकि दुनिया के एक हिस्से में किए गए अनुक्रम को वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय द्वारा देखा और समझा जा सके।
2024/05/20 14:55:10
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