हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
जय श्री राम
इसे सेव कर सुरक्षित कर लें, ऐसी पोस्ट कम ही आती है..
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)...अंत तक जरुर पढ़े🧵
■ काष्ठा = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।
चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।
पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।
छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।
सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप
जय सनातन धर्म
जय भारत
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जय श्री राम
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■ काष्ठा = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।
चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।
पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।
छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।
सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप
जय सनातन धर्म
जय भारत
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
Forwarded from Ctet lakshay july 2025
हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
*राधे नाम संग हरि बोल*
*🌷मन और पानी🌷*
📖🏯📕🔔📕🏯📖
_*🏯🏃🏼श्रीमद् भागवतम में राजा रहूगण कहते हैं::→↓*_
_*🏯🏃🏼“यह मनुष्य जन्म समस्त योनियों में श्रेष्ठ है, यहाँ तक कि स्वर्ग में देवताओं के बीच जन्म लेना उतना यशपूर्ण नहीं जितना इस पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में जन्म लेना ।*_
_*🏯🏃🏼स्वर्गलोक में अथाह भोग-सामग्री के कारण देवताओं को भक्तों की संगति का अवसर ही नहीं मिलता” ।*_
_*🏯🏃🏼श्रीमद् भागवतम में ब्रह्माजी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं::→↓*_
_*🏯🏃🏼“मनुष्य जीवन इतना महत्वपूर्ण है कि देवता भी मनुष्य शरीर की कामना करते हैं क्योंकि मनुष्य जीवन में ही भक्ति संपन्न की जा सकती है” |*_
_*🏯🏃🏼इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि अन्य सारे कार्यो को छोड़ कर भक्ति-कार्यो में जुट जाये क्योकि इसी से सारी सिद्धि प्राप्त की जा सकती है |*_
🌸🌷🌹🌻🌼🌻🌹🌷🌸
🙏🏻🤓 *हरे कृष्णा।...हरे रामा।।...*
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*राधे नाम संग हरि बोल*
*🌷मन और पानी🌷*
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_*🏯🏃🏼श्रीमद् भागवतम में राजा रहूगण कहते हैं::→↓*_
_*🏯🏃🏼“यह मनुष्य जन्म समस्त योनियों में श्रेष्ठ है, यहाँ तक कि स्वर्ग में देवताओं के बीच जन्म लेना उतना यशपूर्ण नहीं जितना इस पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में जन्म लेना ।*_
_*🏯🏃🏼स्वर्गलोक में अथाह भोग-सामग्री के कारण देवताओं को भक्तों की संगति का अवसर ही नहीं मिलता” ।*_
_*🏯🏃🏼श्रीमद् भागवतम में ब्रह्माजी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं::→↓*_
_*🏯🏃🏼“मनुष्य जीवन इतना महत्वपूर्ण है कि देवता भी मनुष्य शरीर की कामना करते हैं क्योंकि मनुष्य जीवन में ही भक्ति संपन्न की जा सकती है” |*_
_*🏯🏃🏼इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि अन्य सारे कार्यो को छोड़ कर भक्ति-कार्यो में जुट जाये क्योकि इसी से सारी सिद्धि प्राप्त की जा सकती है |*_
🌸🌷🌹🌻🌼🌻🌹🌷🌸
🙏🏻🤓 *हरे कृष्णा।...हरे रामा।।...*
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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
🌺 आज का सुविचार 🌺
सुख मै सो मिले दुःख
में मिले न एक
साथ कष्ट में रहे वही
मित्र है नेक
🙇♂ जय श्री कृष्णा 🙇♂
🙏 सुप्रभात 🙏
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
🌺 आज का सुविचार 🌺
सुख मै सो मिले दुःख
में मिले न एक
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अक्षय नवमी इस वर्ष 10 नवंबर को मनाई जाएगी
आँवला नवमी
गोपाष्टमी से अगले दिन ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आमला नौमी के नाम से मनाया जाता है. जैसा की नाम से ही स्पष्ट है इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. दीया व धूप जलाकर आँवले के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की जानी चाहिए. अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा दी जाती है. इस दिन भोजन में आँवले का सेवन जरुर करना चाहिए.
आँवला नवमी की कहानी
प्राचीन समय में एक आँवलिया राजा था वह रोज एक मन सोने के आँवले दान करता था और उसके बाद ही भोजन करता था. एक बार उसके बहू-बेटे सोचने लगे कि अगर यह रोज इसी तरह दान करता रहा तो एक दिन सारा धन समाप्त हो जाएगा. एक दिन उसके एक पुत्र ने राजा से कहा कि आप आँवले का दान बंद कर दें नहीं तो सारा धन खतम हो जाएगा. यह सुनकर राजा व रानी महल छोड़ एक उजाड़ स्थान पर आ गए और आँवला दान ना करने की स्थिति में उन दोनों ने भोजन नहीं किया. यह देख भगवान सोचने लगे कि यदि हमने इसका मान नहीं रखा तो संसार में कोई हमें कैसे मानेगा ! भगवान ने राजा को सपने में कहा कि तुम उठो और देखो कि तुम्हारी पहले जैसी रसोई हो गई है और आँवले का पेड़ भी लगा है, दान करके तुम भोजन कर लो.
राजा ने उठकर देखा तो पहले जैसा राजपाट हो गया है और सोने के आँवले का वृक्ष भी लगा है. यह देख राजा-रानी दोनो ने सवा मन सोने के आँवले तोड़े व उनका दान कर के फिर भोजन किया. दूसरी ओर राजा के बेटे व बहू से अन्नपूर्णा का बैर हो गया, यह देख आसपास के लोगों ने उनसे कहा कि पास ही जंगल में एक आँवलिया राजा है तुम उनके पास चले जाओ वह तुम्हारा कष्ट दूर कर देगें.
बहू-बेटे राजा के पास सहायता के लिए पहुंचे और रानी ने उन दोनों को पहचान लिया. रानी ने राजा से कहा कि इनसे हम काम लेगें लेकिन काम कम कराएंगे पर मजदूरी ज्यादा दे देगें. एक दिन रानी ने बहू से कहा कि मेरा सिर धो दे. बहू सिर धोने लगी और उसकी आँख से आँसू निकलकर रानी की पीठ पर गिर गया. रानी ने कहा कि मेरी पीठ पर आँसू क्यों गिरा? मुझे इसका कारण बताओ. बहू बोली कि मेरी सास की पीठ पर भी ऎसा ही मस्सा है जैसा आपकी पीठ पर है. वह रोज सवा मन सोने के आँवले का दान करते थे जिससे हमने सास-ससुर को घर से निकाल दिया.
बहू के आँसू देख रानी ने कहा कि हम ही तुम्हारे सास-ससुर हैं. भगवान ने हमारा सत्त रख लिया और हमें फिर से सब कुछ दे दिया जिसकी वजह से हम दान कर रहे हैं. हे भगवान ! जैसे आपने राजा-रानी की सुनी वैसे ही आप सभी की सुनना.
इसके बाद बिन्दायक जी की कहानी कहते हैं –
बिन्दायक जी की कहानी
एक बार एक छोटा लड़का किसी बात पर लड़कर घर से चला गया. कहने लगा कि आज मैं बिन्दायक जी से मिलकर ही घर जाऊँगा. लड़का चलते-चलते उजाड़ जगह पर पहुंच गया तब बिन्दायक जी सोचने लगे कि इसने मेरे नाम से ही घर छोड़ा है. मुझे इसकी सहायता करनी होगी अन्यथा उजाड़ में शेर आदि इसे खा सकते हैं. बिन्दायक जी बूढ़े व्यक्ति के भेष में आकर बोले कि लड़के तू कहाँ से आया है और कहाँ जा रहा है? इस पर वह बोला कि मैं तो बिन्दायक जी से मिलने जा रहा हूँ. बिन्दायक जी ने कहा कि मैं ही बिन्दायक हूँ, बोल तू क्या माँगता है! लेकिन जो भी माँगना वह एक बार में ही माँग लेना.
बिन्दायक जी की बात सुनकर लड़का बोला कि मैं क्या माँगू! फिर बोला कि क्या माँगू बाप की कमाई, हाथी की सवारी, दाल-भात मुठ्ठी परासें, ढोकता मुठ्ठी भर कर डोल, स्त्री ऎसी कि जैसे फूल गुलाब का. बिन्दायक जी कहने लगे कि लड़के तूने सब कुछ माँग लिया. जो तूने कहा है सब वैसा ही हो जाएगा. घर वापिस आने पर उसने देखा कि छोटी सी बहू चौकी पर बैठी है और घर में बहुत धन हो गया है. लड़का माँ से बोला कि माँ देख कितना धन हो गया है, यह मैं बिन्दायक जी से माँग कर लाया हूँ. हे बिन्दायक जी महाराज जैसे आपने लड़के को धन दिया वैसे ही आप सभी की सुने.
आंवला नवमी का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है क्योंकि इसी दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था, जिसमें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था।
आंवला नवमी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियां छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था। संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए रखा जाता है व्रत इस दिन उन्होंने अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके कर्तव्य के पथ पर पहला कदम रखा था।
इसी दिन से वृंदावन की परिक्रमा भी प्रारंभ होती है। आंवला नवमी का व्रत संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत पति-पत्नी साथ में रखें तो उन्हें इसका दोगुना शुभ फल प्राप्त होता है।
आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं। उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें।
आँवला नवमी
गोपाष्टमी से अगले दिन ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आमला नौमी के नाम से मनाया जाता है. जैसा की नाम से ही स्पष्ट है इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. दीया व धूप जलाकर आँवले के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की जानी चाहिए. अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा दी जाती है. इस दिन भोजन में आँवले का सेवन जरुर करना चाहिए.
आँवला नवमी की कहानी
प्राचीन समय में एक आँवलिया राजा था वह रोज एक मन सोने के आँवले दान करता था और उसके बाद ही भोजन करता था. एक बार उसके बहू-बेटे सोचने लगे कि अगर यह रोज इसी तरह दान करता रहा तो एक दिन सारा धन समाप्त हो जाएगा. एक दिन उसके एक पुत्र ने राजा से कहा कि आप आँवले का दान बंद कर दें नहीं तो सारा धन खतम हो जाएगा. यह सुनकर राजा व रानी महल छोड़ एक उजाड़ स्थान पर आ गए और आँवला दान ना करने की स्थिति में उन दोनों ने भोजन नहीं किया. यह देख भगवान सोचने लगे कि यदि हमने इसका मान नहीं रखा तो संसार में कोई हमें कैसे मानेगा ! भगवान ने राजा को सपने में कहा कि तुम उठो और देखो कि तुम्हारी पहले जैसी रसोई हो गई है और आँवले का पेड़ भी लगा है, दान करके तुम भोजन कर लो.
राजा ने उठकर देखा तो पहले जैसा राजपाट हो गया है और सोने के आँवले का वृक्ष भी लगा है. यह देख राजा-रानी दोनो ने सवा मन सोने के आँवले तोड़े व उनका दान कर के फिर भोजन किया. दूसरी ओर राजा के बेटे व बहू से अन्नपूर्णा का बैर हो गया, यह देख आसपास के लोगों ने उनसे कहा कि पास ही जंगल में एक आँवलिया राजा है तुम उनके पास चले जाओ वह तुम्हारा कष्ट दूर कर देगें.
बहू-बेटे राजा के पास सहायता के लिए पहुंचे और रानी ने उन दोनों को पहचान लिया. रानी ने राजा से कहा कि इनसे हम काम लेगें लेकिन काम कम कराएंगे पर मजदूरी ज्यादा दे देगें. एक दिन रानी ने बहू से कहा कि मेरा सिर धो दे. बहू सिर धोने लगी और उसकी आँख से आँसू निकलकर रानी की पीठ पर गिर गया. रानी ने कहा कि मेरी पीठ पर आँसू क्यों गिरा? मुझे इसका कारण बताओ. बहू बोली कि मेरी सास की पीठ पर भी ऎसा ही मस्सा है जैसा आपकी पीठ पर है. वह रोज सवा मन सोने के आँवले का दान करते थे जिससे हमने सास-ससुर को घर से निकाल दिया.
बहू के आँसू देख रानी ने कहा कि हम ही तुम्हारे सास-ससुर हैं. भगवान ने हमारा सत्त रख लिया और हमें फिर से सब कुछ दे दिया जिसकी वजह से हम दान कर रहे हैं. हे भगवान ! जैसे आपने राजा-रानी की सुनी वैसे ही आप सभी की सुनना.
इसके बाद बिन्दायक जी की कहानी कहते हैं –
बिन्दायक जी की कहानी
एक बार एक छोटा लड़का किसी बात पर लड़कर घर से चला गया. कहने लगा कि आज मैं बिन्दायक जी से मिलकर ही घर जाऊँगा. लड़का चलते-चलते उजाड़ जगह पर पहुंच गया तब बिन्दायक जी सोचने लगे कि इसने मेरे नाम से ही घर छोड़ा है. मुझे इसकी सहायता करनी होगी अन्यथा उजाड़ में शेर आदि इसे खा सकते हैं. बिन्दायक जी बूढ़े व्यक्ति के भेष में आकर बोले कि लड़के तू कहाँ से आया है और कहाँ जा रहा है? इस पर वह बोला कि मैं तो बिन्दायक जी से मिलने जा रहा हूँ. बिन्दायक जी ने कहा कि मैं ही बिन्दायक हूँ, बोल तू क्या माँगता है! लेकिन जो भी माँगना वह एक बार में ही माँग लेना.
बिन्दायक जी की बात सुनकर लड़का बोला कि मैं क्या माँगू! फिर बोला कि क्या माँगू बाप की कमाई, हाथी की सवारी, दाल-भात मुठ्ठी परासें, ढोकता मुठ्ठी भर कर डोल, स्त्री ऎसी कि जैसे फूल गुलाब का. बिन्दायक जी कहने लगे कि लड़के तूने सब कुछ माँग लिया. जो तूने कहा है सब वैसा ही हो जाएगा. घर वापिस आने पर उसने देखा कि छोटी सी बहू चौकी पर बैठी है और घर में बहुत धन हो गया है. लड़का माँ से बोला कि माँ देख कितना धन हो गया है, यह मैं बिन्दायक जी से माँग कर लाया हूँ. हे बिन्दायक जी महाराज जैसे आपने लड़के को धन दिया वैसे ही आप सभी की सुने.
आंवला नवमी का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है क्योंकि इसी दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था, जिसमें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था।
आंवला नवमी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियां छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था। संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए रखा जाता है व्रत इस दिन उन्होंने अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके कर्तव्य के पथ पर पहला कदम रखा था।
इसी दिन से वृंदावन की परिक्रमा भी प्रारंभ होती है। आंवला नवमी का व्रत संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत पति-पत्नी साथ में रखें तो उन्हें इसका दोगुना शुभ फल प्राप्त होता है।
आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं। उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें।
हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है। इसके बाद परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है।
आंवला को वेद-पुराणों में अत्यंत उपयोगी और पूजनीय कहा गया है। आंवला का संबंध कनकधारा स्तोत्र से भी है।
आंवला नवमी और शंकराचार्य की कथा-
एक कथा के अनुसार एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं।
शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे।
मां लक्ष्मी ने दिव्य दर्शन दिए इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती।
शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा- हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।
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पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है। इसके बाद परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है।
आंवला को वेद-पुराणों में अत्यंत उपयोगी और पूजनीय कहा गया है। आंवला का संबंध कनकधारा स्तोत्र से भी है।
आंवला नवमी और शंकराचार्य की कथा-
एक कथा के अनुसार एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं।
शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे।
मां लक्ष्मी ने दिव्य दर्शन दिए इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती।
शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा- हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।
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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
🌺 आज का सुविचार 🌺
अगर हम खुद की माने
और विश्वाश करे तो
हमारा हर
कदम सफलता है
🙇♂ जय श्री कृष्णा 🙇♂
🙏 सुप्रभात 🙏
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#तुलसी_विवाह की पुरानी मान्यता के अनुसार, यह भगवान विष्णु और तुलसी देवी के विवाह का प्रसंग है। पुराणों और #हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, तुलसी को देवी लक्ष्मी का रूप माना गया है, और उनका विवाह विष्णु के एक रूप, शालिग्राम (जो एक शिला है), के साथ होता है।
तुलसी विवाह का महत्व यह है कि इसके साथ ही हिंदू धर्म में विवाह के अवसर शुरू हो जाते हैं। #देवउठनी_एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपने चार महीने के निद्रा से जागते हैं, और इसी दिन तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी देवी का पूजन कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जाता है और इससे घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
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#तुलसी_विवाह की पुरानी मान्यता के अनुसार, यह भगवान विष्णु और तुलसी देवी के विवाह का प्रसंग है। पुराणों और #हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, तुलसी को देवी लक्ष्मी का रूप माना गया है, और उनका विवाह विष्णु के एक रूप, शालिग्राम (जो एक शिला है), के साथ होता है।
तुलसी विवाह का महत्व यह है कि इसके साथ ही हिंदू धर्म में विवाह के अवसर शुरू हो जाते हैं। #देवउठनी_एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपने चार महीने के निद्रा से जागते हैं, और इसी दिन तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी देवी का पूजन कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जाता है और इससे घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
🌺 आज का सुविचार 🌺
"लगन" एक छोटा सा
शब्द है लेकिन जिसे
लग जाती है
उसका जीवन बदल देती है
🙇♂ जय श्री कृष्णा 🙇♂
🙏 सुप्रभात 🙏
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शब्द है लेकिन जिसे
लग जाती है
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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
सभी उठ गए हैं,तो आप भी प्रभु राम का नाम लें
#जय_श्री_राम🚩🙏💥🌸🌺
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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हंसकर बोलीं प्यारी राधा💗 श्री बांके बिहारी से🦯
आया है इक भक्त👆 मांग रहा कुछ गिरधारी से🤲
बोले नटवर 👑 मैं इसको तो बिन मांगे सब दे दूं😊
ये नाम अगर ले संग तुम्हारा🙌 एक भी बारी से👆
जय जय श्री राधे जय श्री बांके बिहारी लाल जी🙏
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जय जय श्री राधे जय श्री बांके बिहारी लाल जी🙏
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