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Forwarded from Knowledge Tv Desi Taau
आपके आधार कार्ड से कितने सिम चल रहे है,
अनजान सिम चल रही है तो तुरन्त बंद करवालो,
चेक करने का लिंक -
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57912398_Public_Notice_3_times_adv05_dated07_05_2025.pdf
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🪯मैं मकान लेकर कहीं जाऊंगा थोड़े ही*🪯
कल अपनी पुरानी सोसाइटी में गया था। वहां मैं जब भी जाता हूं, मेरी कोशिश होती है कि अधिक से अधिक लोगों से मुलाक़ात हो जाए।
कल अपनी पुरानी सोसाइटी में पहुंच कर गार्ड से बात कर रहा था कि और क्या हाल है आप लोगों का, तभी मोटरसाइकिल पर एक आदमी आया और उसने झुक कर प्रणाम किया।
*“भैया, प्रणाम।”*
मैंने पहचानने की कोशिश की। बहुत पहचाना-पहचाना लग रहा था। पर नाम याद नहीं आ रहा था। उसी ने कहा,
*"भैया पहचाने नहीं? हम बाबू हैं, बाबू। उधर वाली आंटीजी के घर काम करते थे।"*
मैंने पहचान लिया। अरे ये तो बाबू है। सी ब्लॉक वाली आंटीजी का नौकर।
*“अरे बाबू, तुम तो बहुत तंदुरुस्त हो गए हो। आंटी कैसी हैं?”*
बाबू हंसा,
*“आंटी तो गईं।”*
*“गईं? कहां गईं? उनका बेटा विदेश में था, वहीं चली गईं क्या? ठीक ही किया, उन्होंने। यहां अकेले रहने का क्या मतलब था?”*
अब बाबू थोड़ा गंभीर हुआ। उसने हंसना रोक कर कहा,
*“भैया, आंटीजी भगवान जी के पास चली गईं।”*
*“भगवान जी के पास? ओह! कब?”*
बाबू ने धीरे से कहा,
*“दो महीने हो गए।”*
*“क्या हुआ था आंटी को?”*
*“कुछ नहीं। बुढ़ापा ही बीमारी थी। उनका बेटा भी बहुत दिनों से नहीं आया था। उसे याद करती थीं। पर अपना घर छोड़ कर वहां नहीं गईं। कहती थीं कि यहां से चली जाऊंगी तो कोई मकान पर कब्जा कर लेगा। बहुत मेहनत से ये मकान बना है।”*
*“हां, वो तो पता ही है। तुमने खूब सेवा की। अब तो वो चली गईं। अब तुम क्या करोगे?”*
अब बाबू फिर हंसा,
*"मैं क्या करुंगा भैया? पहले अकेला था। अब गांव से फैमिली को ले आया हूं। दोनों बच्चे और पत्नी अब यहीं रहते हैं।”*
*“यहीं मतलब उसी मकान में?”*
*“जी भैया। आंटी के जाने के बाद उनका बेटा आया था। एक हफ्ता रुक कर चले गए। मुझसे कह गए हैं कि घर देखते रहना। चार कमरे का इतना बड़ा फ्लैट है। मैं अकेला कैसे देखता? भैया ने कहा कि तुम यहीं रह कर घर की देखभाल करते रहो। वो वहां से पैसे भी भेजने लगे हैं। और सबसे बड़ी बात ये है कि मेरे बच्चों को यहीं स्कूल में एडमिशन मिल गया है। अब आराम से हूं। कुछ-कुछ काम बाहर भी कर लेता हूं। भैया सारा सामान भी छोड़ गए हैं। कह रहे थे कि दूर देश ले जाने में कोई फायदा नहीं।”*
मैं हैरान था। बाबू पहले साइकिल से चलता था। आंटी थीं तो उनकी देखभाल करता था। पर अब जब आंटी चली गईं तो वो चार कमरे के मकान में आराम से रह रहा है।
आंटी अपने बेटे के पास नहीं गईं कि कहीं कोई मकान पर कब्जा न कर ले।
बेटा मकान नौकर को दे गया है, ये सोच कर कि वो रहेगा तो मकान बचा रहेगा।
मुझे पता है, मकान बहुत मेहनत से बनते हैं। पर ऐसी मेहनत किस काम की, जिसके आप सिर्फ पहरेदार बन कर रह जाएं?
मकान के लिए आंटी बेटे के पास नहीं गईं। मकान के लिए बेटा मां को पास नहीं बुला पाया।
सच कहें तो हम लोग मकान के पहरेदार ही हैं।
जिसने मकान बनाया वो अब दुनिया में ही नहीं है। जो हैं, उसके बारे में तो बाबू भी जानता है कि वो अब यहां कभी नहीं आएंगे।
मैंने बाबू से पूछा कि,
*"तुमने भैया को बता दिया कि तुम्हारी फैमिली भी यहां आ गई है?"*
*“इसमें बताने वाली क्या बात है भैया? वो अब कौन यहां आने वाले हैं? और मैं अकेला यहां क्या करता? जब आएंगे तो देखेंगे। पर जब मां थीं तो आए नहीं, उनके बाद क्या आना? मकान की चिंता है, तो वो मैं कहीं लेकर जा नहीं रहा। मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं।”*
बाबू फिर हंसा।
बाबू से मैंने हाथ मिलाया। मैं समझ रहा था कि बाबू अब नौकर नहीं रहा। वो मकान मालिक हो गया है।
हंसते-हंसते मैंने बाबू से कहा,
*“भाई, जिसने ये बात कही है कि*
_*मूर्ख आदमी मकान बनवाता है, बुद्धिमान आदमी उसमें रहता है,*_
*उसे ज़िंदगी का कितना गहरा तज़ुर्बा रहा होगा।”*
बाबू ने धीरे से कहा,
*“साहब, सब किस्मत की बात है।”*
मैं वहां से चल पड़ा था ये सोचते हुए कि सचमुच सब किस्मत की ही बात है।
लौटते हुए मेरे कानों में बाबू की हंसी गूंज रही थी...
*“मैं मकान लेकर कहीं जाऊंगा थोड़े ही?मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं।”*
_मैं सोच रहा था, मकान लेकर कौन जाता है? सब देखभाल ही तो करते हैं।_
आज यह किस्सा पढ़कर लगा कि हम सभी क्या कर रहे है ....जिन्दगी के चार दिन है मिल जुल कर हँसतें हँसाते गुजार ले ...क्या पता कब बुलावा आ जाए....सब यहीं धरा रह जायेगा....
🧙🏻♂️🧙🏻♂️ कहते है की इस कहानी से ओर भी कई बातें सीखने को मिलती है। 🙏🏻👇🏻
*1. मकान नहीं, रिश्ते ज़रूरी हैं:*
आंटी ने पूरी ज़िंदगी जिस मकान को सहेजा, उसकी चिंता में बेटे के पास नहीं गईं। लेकिन वही बेटा मकान को नौकर के भरोसे छोड़ गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि मकान की नहीं, रिश्तों की देखभाल करनी चाहिए।
कल अपनी पुरानी सोसाइटी में गया था। वहां मैं जब भी जाता हूं, मेरी कोशिश होती है कि अधिक से अधिक लोगों से मुलाक़ात हो जाए।
कल अपनी पुरानी सोसाइटी में पहुंच कर गार्ड से बात कर रहा था कि और क्या हाल है आप लोगों का, तभी मोटरसाइकिल पर एक आदमी आया और उसने झुक कर प्रणाम किया।
*“भैया, प्रणाम।”*
मैंने पहचानने की कोशिश की। बहुत पहचाना-पहचाना लग रहा था। पर नाम याद नहीं आ रहा था। उसी ने कहा,
*"भैया पहचाने नहीं? हम बाबू हैं, बाबू। उधर वाली आंटीजी के घर काम करते थे।"*
मैंने पहचान लिया। अरे ये तो बाबू है। सी ब्लॉक वाली आंटीजी का नौकर।
*“अरे बाबू, तुम तो बहुत तंदुरुस्त हो गए हो। आंटी कैसी हैं?”*
बाबू हंसा,
*“आंटी तो गईं।”*
*“गईं? कहां गईं? उनका बेटा विदेश में था, वहीं चली गईं क्या? ठीक ही किया, उन्होंने। यहां अकेले रहने का क्या मतलब था?”*
अब बाबू थोड़ा गंभीर हुआ। उसने हंसना रोक कर कहा,
*“भैया, आंटीजी भगवान जी के पास चली गईं।”*
*“भगवान जी के पास? ओह! कब?”*
बाबू ने धीरे से कहा,
*“दो महीने हो गए।”*
*“क्या हुआ था आंटी को?”*
*“कुछ नहीं। बुढ़ापा ही बीमारी थी। उनका बेटा भी बहुत दिनों से नहीं आया था। उसे याद करती थीं। पर अपना घर छोड़ कर वहां नहीं गईं। कहती थीं कि यहां से चली जाऊंगी तो कोई मकान पर कब्जा कर लेगा। बहुत मेहनत से ये मकान बना है।”*
*“हां, वो तो पता ही है। तुमने खूब सेवा की। अब तो वो चली गईं। अब तुम क्या करोगे?”*
अब बाबू फिर हंसा,
*"मैं क्या करुंगा भैया? पहले अकेला था। अब गांव से फैमिली को ले आया हूं। दोनों बच्चे और पत्नी अब यहीं रहते हैं।”*
*“यहीं मतलब उसी मकान में?”*
*“जी भैया। आंटी के जाने के बाद उनका बेटा आया था। एक हफ्ता रुक कर चले गए। मुझसे कह गए हैं कि घर देखते रहना। चार कमरे का इतना बड़ा फ्लैट है। मैं अकेला कैसे देखता? भैया ने कहा कि तुम यहीं रह कर घर की देखभाल करते रहो। वो वहां से पैसे भी भेजने लगे हैं। और सबसे बड़ी बात ये है कि मेरे बच्चों को यहीं स्कूल में एडमिशन मिल गया है। अब आराम से हूं। कुछ-कुछ काम बाहर भी कर लेता हूं। भैया सारा सामान भी छोड़ गए हैं। कह रहे थे कि दूर देश ले जाने में कोई फायदा नहीं।”*
मैं हैरान था। बाबू पहले साइकिल से चलता था। आंटी थीं तो उनकी देखभाल करता था। पर अब जब आंटी चली गईं तो वो चार कमरे के मकान में आराम से रह रहा है।
आंटी अपने बेटे के पास नहीं गईं कि कहीं कोई मकान पर कब्जा न कर ले।
बेटा मकान नौकर को दे गया है, ये सोच कर कि वो रहेगा तो मकान बचा रहेगा।
मुझे पता है, मकान बहुत मेहनत से बनते हैं। पर ऐसी मेहनत किस काम की, जिसके आप सिर्फ पहरेदार बन कर रह जाएं?
मकान के लिए आंटी बेटे के पास नहीं गईं। मकान के लिए बेटा मां को पास नहीं बुला पाया।
सच कहें तो हम लोग मकान के पहरेदार ही हैं।
जिसने मकान बनाया वो अब दुनिया में ही नहीं है। जो हैं, उसके बारे में तो बाबू भी जानता है कि वो अब यहां कभी नहीं आएंगे।
मैंने बाबू से पूछा कि,
*"तुमने भैया को बता दिया कि तुम्हारी फैमिली भी यहां आ गई है?"*
*“इसमें बताने वाली क्या बात है भैया? वो अब कौन यहां आने वाले हैं? और मैं अकेला यहां क्या करता? जब आएंगे तो देखेंगे। पर जब मां थीं तो आए नहीं, उनके बाद क्या आना? मकान की चिंता है, तो वो मैं कहीं लेकर जा नहीं रहा। मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं।”*
बाबू फिर हंसा।
बाबू से मैंने हाथ मिलाया। मैं समझ रहा था कि बाबू अब नौकर नहीं रहा। वो मकान मालिक हो गया है।
हंसते-हंसते मैंने बाबू से कहा,
*“भाई, जिसने ये बात कही है कि*
_*मूर्ख आदमी मकान बनवाता है, बुद्धिमान आदमी उसमें रहता है,*_
*उसे ज़िंदगी का कितना गहरा तज़ुर्बा रहा होगा।”*
बाबू ने धीरे से कहा,
*“साहब, सब किस्मत की बात है।”*
मैं वहां से चल पड़ा था ये सोचते हुए कि सचमुच सब किस्मत की ही बात है।
लौटते हुए मेरे कानों में बाबू की हंसी गूंज रही थी...
*“मैं मकान लेकर कहीं जाऊंगा थोड़े ही?मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं।”*
_मैं सोच रहा था, मकान लेकर कौन जाता है? सब देखभाल ही तो करते हैं।_
आज यह किस्सा पढ़कर लगा कि हम सभी क्या कर रहे है ....जिन्दगी के चार दिन है मिल जुल कर हँसतें हँसाते गुजार ले ...क्या पता कब बुलावा आ जाए....सब यहीं धरा रह जायेगा....
🧙🏻♂️🧙🏻♂️ कहते है की इस कहानी से ओर भी कई बातें सीखने को मिलती है। 🙏🏻👇🏻
*1. मकान नहीं, रिश्ते ज़रूरी हैं:*
आंटी ने पूरी ज़िंदगी जिस मकान को सहेजा, उसकी चिंता में बेटे के पास नहीं गईं। लेकिन वही बेटा मकान को नौकर के भरोसे छोड़ गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि मकान की नहीं, रिश्तों की देखभाल करनी चाहिए।
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*2. मेहनत से कमाया गया सब यहीं रह जाता है:*
चाहे कितनी भी मेहनत से मकान या संपत्ति बनाई जाए, अंततः हम उसे साथ लेकर नहीं जा सकते। इसलिए जीवन में संतुलन ज़रूरी है—संपत्ति के साथ-साथ अपनों को समय और प्रेम देना भी उतना ही अहम है।
*3. जो मूल्यवान है, वो समय पर समझो:*
बेटा माँ के जीवित रहते उनके पास नहीं आया, और अब माँ नहीं रहीं। जीवन में कई बार हम जिन चीज़ों को टालते हैं, वही सबसे ज़्यादा खो देने लायक होती हैं। माँ-बाप का सान्निध्य समय पर मिले, तो वो ही असली धन है।
*4. हम सब ‘देखभाल’ करने वाले हैं:*
कहानी में बाबू का संवाद "मैं तो देखभाल ही कर रहा हूँ" एक गहरी सच्चाई को उजागर करता है—इस संसार में हम सब भी तो सिर्फ ‘देखभाल’ कर रहे हैं। न कुछ साथ लाए, न ले जा सकेंगे।
*5. किस्मत और समय सब बदल सकता है:*
जो बाबू कभी नौकर था, किस्मत ने उसे मकान का देखभालकर्ता बना दिया। इसका मतलब ये नहीं कि वह चोर था, बल्कि जिम्मेदार था और आज वो भी मालिक से कम नहीं।
*निष्कर्ष*
जीवन में मोह, संपत्ति और दिखावे से ज़्यादा ज़रूरी है सच्चे संबंध, समय का सम्मान और संतुलित दृष्टिकोण। मकान, पैसे, संपत्ति — सब यही रह जाएंगे, लेकिन इंसानियत, प्रेम और अपनापन ही है जो हमारे जाने के बाद भी याद रखा जाएगा।।
चाहे कितनी भी मेहनत से मकान या संपत्ति बनाई जाए, अंततः हम उसे साथ लेकर नहीं जा सकते। इसलिए जीवन में संतुलन ज़रूरी है—संपत्ति के साथ-साथ अपनों को समय और प्रेम देना भी उतना ही अहम है।
*3. जो मूल्यवान है, वो समय पर समझो:*
बेटा माँ के जीवित रहते उनके पास नहीं आया, और अब माँ नहीं रहीं। जीवन में कई बार हम जिन चीज़ों को टालते हैं, वही सबसे ज़्यादा खो देने लायक होती हैं। माँ-बाप का सान्निध्य समय पर मिले, तो वो ही असली धन है।
*4. हम सब ‘देखभाल’ करने वाले हैं:*
कहानी में बाबू का संवाद "मैं तो देखभाल ही कर रहा हूँ" एक गहरी सच्चाई को उजागर करता है—इस संसार में हम सब भी तो सिर्फ ‘देखभाल’ कर रहे हैं। न कुछ साथ लाए, न ले जा सकेंगे।
*5. किस्मत और समय सब बदल सकता है:*
जो बाबू कभी नौकर था, किस्मत ने उसे मकान का देखभालकर्ता बना दिया। इसका मतलब ये नहीं कि वह चोर था, बल्कि जिम्मेदार था और आज वो भी मालिक से कम नहीं।
*निष्कर्ष*
जीवन में मोह, संपत्ति और दिखावे से ज़्यादा ज़रूरी है सच्चे संबंध, समय का सम्मान और संतुलित दृष्टिकोण। मकान, पैसे, संपत्ति — सब यही रह जाएंगे, लेकिन इंसानियत, प्रेम और अपनापन ही है जो हमारे जाने के बाद भी याद रखा जाएगा।।
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हाल ही में जारी हुए जेबीटी मेवात की डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन लिस्ट से संबंधित यदि किसी भी अभ्यर्थी का कोई सुझाव हो, तो वो इस गूगल फॉर्म के माध्यम से अपना सुझाव हमें दे सकते हैं।
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