*ट्रैड/Trad कौन है? जिसकी बातें मिडिया पर आजकल हो रही है!*
trad को जानने से पूर्व मामला क्या है यह जानना आवश्यक है, कुछ समुदाय वा जाति विशेष पर मिम्स या टिप्पणी करने पर कुछ युवाओ की गिरफ्तारी हुई जिनके कारण trad मेइन स्ट्रीम मिडियामें छाया हुआ है!
*अब trads क्या है?*
यह मामले की शुरुआत २०१४ में सरकार बदलने के बाद हुई, देश और धर्म पहले से ही लेफ्ट विंग(वामपंथी) के सताये हुए थे,धर्मपरिवर्तन जोरो पर थे,हिन्दुओकी छबी पूर्ववर्ती सरकारों ने ख़राब कर दी थी, वामपंथी आइडियोलोजी के कारण युवा वर्ग धर्म से विचलित होता जा रहा था,आधुनिकता के नाम पर व्यभिचार बढ़ रहे थे, ब्राह्मणों का मानसिक शोषण एवं मानसिक दमन हो रहा था! इसलिए धर्मरक्षा हो उस आशा से वर्तमान सरकार जो है सत्ता में है उसे लाया गया, २०१४ में युवाओ का पूरा वर्ग इस सरकार के साथ था, किन्तु धीरे धीरे इन लोगो के सामने वास्तविकता आने लगी,की हिन्दू के नाम पर यह भी ठगी ही कर रहे है,धर्म कोई कार्य नही हो रहे,गौरक्षा आदि के कार्य नही हो रहे,कदाचित कुछ धर्म के कार्य हो रहे है वो भी शास्त्र का उल्लंघन कर के हो रहे है,संक्षिप्त में बताया जाए तो यह भी वही करने लगे जो पूर्ववर्ती सरकारे करती थी केवल “अपनी प्रवृतिओ को भगवा रंग दे दिया,” यह कथित रायता या राईट विंग भी सनातन वैदिक धर्म के मूलसिद्धांत के विपरीत की बात करने लगे! अब मामला शुरू यहाँ से हुआ जो सिद्धांतवादी जिन्हें यह trad कहते है, इनके संज्ञान में आया की जैसे लेफ्ट विंग ने शास्त्र आदि के विकृत अर्थघटन किए वैसे ही राइट विंग ने भी शास्त्र के मूलसिद्धांतो को छोडकर विकृत अर्थघटन करने लगे या पूर्व से जो विकृत अर्थघटन थे उनका समर्थन करने लगे इसी कारण जो जागृत आधुनिक पढ़े लिखे नवयुवाओने राईट विंग के शास्त्र के विकृत अर्थघटन को छोडकर ने मूलशास्त्र का अध्ययन शुरू किया, जिनसे मूलशास्त्रीय सिद्धांतो का प्रचार आधुनिक माध्यम से मीम के माध्यम से किया, हालाकी इसमें दो राय नहीं की बहुत अतिरेक भी हुआ है,मार्गभी भटक गये है किन्तु युवाओ का बड़ा वर्ग जो राईट विंग के साथ था,वो राइट विंग के छद्म हिंदुत्व को जानकर और राईट विंग के कथित जूठे (मोडिफाइड) सिद्धांतो को जानकर राइट विंग से किनारा कर लिया,और मूल सिद्धांत के टकराव के कारण अलग होने लगा!
*अब trads कौन है?*
ट्रेड सर्वप्रथम तो वो युवाओ का unorganized समूह है जो लाखो की संख्या में मौजूद है और यह बढ़ता जा रहा है और सरकार की सनातन धर्म एवं सनातन पारंपरिक गुरुओ की अवहेलना के कारण बढेगा,यह वो वर्ग है जो सनातन धर्म के मूलसिद्धांतो का पूर्णतया समर्थन करते है, जैसे वर्णाश्रम हुआ आंतरजातिय विवाह निषेध हुआ आदि आदि, यह समूह में अधिक से अधिक युवा १८ से लेकर २५ तक का वर्ग है,जो सनातन धर्म के सिद्धांतो एवं प्रशस्त मानबिंदुओ की रक्षा के लिए कोई भी हद तक जा सकते है, जैसे की हम जानते थे की पहले धर्म के विरोध में बोलना cool लगता था आज धर्म के समर्थन में बोलना cool है, यह काल की गति है!
https://www.instagram.com/shrivaidikbrahmanah
trad के बारे में कुछ तथ्य –
- सनातन धर्म के मूलसिद्धांत के यह पक्के होते है
- कोई भी राजनितिक दल से इन लोगो का कोई भी सबंध नही है
- किसी भी नेता का इन लोगो के साथ कोई लेना देना नहीं है
- यह स्वंतत्र पारम्परिक विचार वाले होते है
- उदेश्य इनका शास्त्रसम्मत राजतन्त्र की स्थापना करना है
- तमाम शास्त्रों के सिद्धांत इनकी अलग शैली में प्रस्तुत करते है
- जैसे की उपर बताया कहीं कहीं पर अतिरेक भी होता है
- महत्वपूर्ण बिंदु : मिडीया इनको अल्ट्रा राईट विंग बनाने में लगी है किन्तु यह न राईट विंग है न लेफ्ट विंग यह, तीसरा मोर्चा है जिसे सनातन विंग कहते है
- यह स्वयं स्फुरित युवाओ का असंगठन है जिसका कोई नेता नही सब युवा अपनी अपनी तरह से धर्म को बचाने के लिए कार्यरत है(मिडिया उस युवाओ को जोम्बी की संज्ञा दे रही है)
- यह असंगठित युवाओ का वो ग्रुप है जो अशास्त्रीय साशन तंत्र से परेशान है, यह वो दबे कुचले युवाओ का असमुह है जिसने ब्राह्मण/क्षत्रिय/वैश्य होने के कारण खूब गालिया खाई है, अपने साथ पढाई से लेकर नौकरी तक में हो रहे अन्यायों को झेला है, इनके टेलेंट की वर्तमान सिस्टम ने जो अवहेलना की है इनके कारण ही यह ग्रुप जागृत हुआ है!
*मिडिया का रोल*
अब तक जो सुस्त मिडिया थी, इनके पास न्यूज़ मसाले के लिए एक नया मुद्दा आया है उसका नाम है “trad” राईट विंग सत्ता पर आते ही तमाम लेफ्ट विंग का प्रर्दाफाश होने लगा लेफ्ट विंग धर्म विरोधी है यह सर्वविदित है, इसलिए तमाम हिन्दूने मिलकर एक मौका ही खोज रहे थे जैसे मौका मिला लेफ्ट विंग को टाटा कर दिया, किन्तु वर्तमान की कथित हिन्दुत्ववादी सरकार युवाओ की अपेक्षा पर खरी न उतरी इसलिए इन लोगो ने इनका भी बहिष्कार शुरू किया,अब इस विवाद में मिडिया कूद पड़ी है, जो इन युवा वर्ग की
trad को जानने से पूर्व मामला क्या है यह जानना आवश्यक है, कुछ समुदाय वा जाति विशेष पर मिम्स या टिप्पणी करने पर कुछ युवाओ की गिरफ्तारी हुई जिनके कारण trad मेइन स्ट्रीम मिडियामें छाया हुआ है!
*अब trads क्या है?*
यह मामले की शुरुआत २०१४ में सरकार बदलने के बाद हुई, देश और धर्म पहले से ही लेफ्ट विंग(वामपंथी) के सताये हुए थे,धर्मपरिवर्तन जोरो पर थे,हिन्दुओकी छबी पूर्ववर्ती सरकारों ने ख़राब कर दी थी, वामपंथी आइडियोलोजी के कारण युवा वर्ग धर्म से विचलित होता जा रहा था,आधुनिकता के नाम पर व्यभिचार बढ़ रहे थे, ब्राह्मणों का मानसिक शोषण एवं मानसिक दमन हो रहा था! इसलिए धर्मरक्षा हो उस आशा से वर्तमान सरकार जो है सत्ता में है उसे लाया गया, २०१४ में युवाओ का पूरा वर्ग इस सरकार के साथ था, किन्तु धीरे धीरे इन लोगो के सामने वास्तविकता आने लगी,की हिन्दू के नाम पर यह भी ठगी ही कर रहे है,धर्म कोई कार्य नही हो रहे,गौरक्षा आदि के कार्य नही हो रहे,कदाचित कुछ धर्म के कार्य हो रहे है वो भी शास्त्र का उल्लंघन कर के हो रहे है,संक्षिप्त में बताया जाए तो यह भी वही करने लगे जो पूर्ववर्ती सरकारे करती थी केवल “अपनी प्रवृतिओ को भगवा रंग दे दिया,” यह कथित रायता या राईट विंग भी सनातन वैदिक धर्म के मूलसिद्धांत के विपरीत की बात करने लगे! अब मामला शुरू यहाँ से हुआ जो सिद्धांतवादी जिन्हें यह trad कहते है, इनके संज्ञान में आया की जैसे लेफ्ट विंग ने शास्त्र आदि के विकृत अर्थघटन किए वैसे ही राइट विंग ने भी शास्त्र के मूलसिद्धांतो को छोडकर विकृत अर्थघटन करने लगे या पूर्व से जो विकृत अर्थघटन थे उनका समर्थन करने लगे इसी कारण जो जागृत आधुनिक पढ़े लिखे नवयुवाओने राईट विंग के शास्त्र के विकृत अर्थघटन को छोडकर ने मूलशास्त्र का अध्ययन शुरू किया, जिनसे मूलशास्त्रीय सिद्धांतो का प्रचार आधुनिक माध्यम से मीम के माध्यम से किया, हालाकी इसमें दो राय नहीं की बहुत अतिरेक भी हुआ है,मार्गभी भटक गये है किन्तु युवाओ का बड़ा वर्ग जो राईट विंग के साथ था,वो राइट विंग के छद्म हिंदुत्व को जानकर और राईट विंग के कथित जूठे (मोडिफाइड) सिद्धांतो को जानकर राइट विंग से किनारा कर लिया,और मूल सिद्धांत के टकराव के कारण अलग होने लगा!
*अब trads कौन है?*
ट्रेड सर्वप्रथम तो वो युवाओ का unorganized समूह है जो लाखो की संख्या में मौजूद है और यह बढ़ता जा रहा है और सरकार की सनातन धर्म एवं सनातन पारंपरिक गुरुओ की अवहेलना के कारण बढेगा,यह वो वर्ग है जो सनातन धर्म के मूलसिद्धांतो का पूर्णतया समर्थन करते है, जैसे वर्णाश्रम हुआ आंतरजातिय विवाह निषेध हुआ आदि आदि, यह समूह में अधिक से अधिक युवा १८ से लेकर २५ तक का वर्ग है,जो सनातन धर्म के सिद्धांतो एवं प्रशस्त मानबिंदुओ की रक्षा के लिए कोई भी हद तक जा सकते है, जैसे की हम जानते थे की पहले धर्म के विरोध में बोलना cool लगता था आज धर्म के समर्थन में बोलना cool है, यह काल की गति है!
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trad के बारे में कुछ तथ्य –
- सनातन धर्म के मूलसिद्धांत के यह पक्के होते है
- कोई भी राजनितिक दल से इन लोगो का कोई भी सबंध नही है
- किसी भी नेता का इन लोगो के साथ कोई लेना देना नहीं है
- यह स्वंतत्र पारम्परिक विचार वाले होते है
- उदेश्य इनका शास्त्रसम्मत राजतन्त्र की स्थापना करना है
- तमाम शास्त्रों के सिद्धांत इनकी अलग शैली में प्रस्तुत करते है
- जैसे की उपर बताया कहीं कहीं पर अतिरेक भी होता है
- महत्वपूर्ण बिंदु : मिडीया इनको अल्ट्रा राईट विंग बनाने में लगी है किन्तु यह न राईट विंग है न लेफ्ट विंग यह, तीसरा मोर्चा है जिसे सनातन विंग कहते है
- यह स्वयं स्फुरित युवाओ का असंगठन है जिसका कोई नेता नही सब युवा अपनी अपनी तरह से धर्म को बचाने के लिए कार्यरत है(मिडिया उस युवाओ को जोम्बी की संज्ञा दे रही है)
- यह असंगठित युवाओ का वो ग्रुप है जो अशास्त्रीय साशन तंत्र से परेशान है, यह वो दबे कुचले युवाओ का असमुह है जिसने ब्राह्मण/क्षत्रिय/वैश्य होने के कारण खूब गालिया खाई है, अपने साथ पढाई से लेकर नौकरी तक में हो रहे अन्यायों को झेला है, इनके टेलेंट की वर्तमान सिस्टम ने जो अवहेलना की है इनके कारण ही यह ग्रुप जागृत हुआ है!
*मिडिया का रोल*
अब तक जो सुस्त मिडिया थी, इनके पास न्यूज़ मसाले के लिए एक नया मुद्दा आया है उसका नाम है “trad” राईट विंग सत्ता पर आते ही तमाम लेफ्ट विंग का प्रर्दाफाश होने लगा लेफ्ट विंग धर्म विरोधी है यह सर्वविदित है, इसलिए तमाम हिन्दूने मिलकर एक मौका ही खोज रहे थे जैसे मौका मिला लेफ्ट विंग को टाटा कर दिया, किन्तु वर्तमान की कथित हिन्दुत्ववादी सरकार युवाओ की अपेक्षा पर खरी न उतरी इसलिए इन लोगो ने इनका भी बहिष्कार शुरू किया,अब इस विवाद में मिडिया कूद पड़ी है, जो इन युवा वर्ग की
आवाज़ दबाने के लिए इनके विरुद्ध रिपोर्टिंग कर उन्हें जोम्बी आदि की संज्ञा दे रही है,इनका राजनीतिकरण होने लगा है,यह भी मानना पड़ेगा की इन trad में बहुत सारी नकली प्रोफाइल भी घुस चुकी है जो इन युवाओ को भटका रही है पर मिडिया का एवं सरकारों का बैर वैदिक सनातन धर्म से नया नहीं है वर्सो से यह लोग परम्परा विरूद्ध ही रहे है,कभी संतो को विवादित बताकर कभी धर्म के सिद्धांतो को पिछड़ा बताकर आदि,अब trad पर मिडिया बरस रही है ताकि इन युवाओ को खुद को परम्परावादी कहने पर घृणा लगे, पर मिडिया को यह समजना होगा की यह कोई अबुद्ध लोगो का गिरोह नही है जो राइट विंग या लेफ्ट विंग जैसे मेट्रिक्स प्रोग्राम में फिट बैठ शके यहाँ एक से बढ़कर एक बुद्धिजीवी युवा है जो अपनी परम्परा अपनी संस्कृति एवं संस्कार को बचाने के लिए लड़ाई कर रही है,trad से उलझना बहुत कठिन है उनके पास शास्त्र है तथ्य है प्रमाण है! इसलिए स्वतन्त्र सोच के कारण लेफ्ट विंग या राईट विंग से अधिक बुद्धिशाली है!
यहाँ पर केवल trad मंडन की बात नहीं हो रही,जो कुछ गलत इन लोगो ने किया हा जैसे अन्य का अपमान अन्य को निचा दिखाना वो तो गलत ही है, सनातन में सबके लिए वर्णाश्रम मर्यादा में अपनी अपनी जगह है अपने अपने अधिकार है, इसलिए लड़ाई अपनी मर्यादा में रहकर करनी चाहिए यह भी सत्य है! बाकि अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ना किसीको निचा न बताकर अपने ही सिद्धांत का प्रचार करना यही यूवाओ को करना चाहिए यह मेरा मंतव्य है!
कुल मिलकर देखा जाए तो यह वर्तमान व्यवस्था का ही दोष है जिसने युवाओ को यह कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है! क्योंकि अब इन युवाओको वैदिक हिन्दू राष्ट्र से कम कुछ नहीं चाहिए!
अस्तु
श्रीमन्नारायण
लेखन : पं.हिरेनभाई त्रिवेदी,क्षेत्रज्ञ
परमधर्म संसद १००८
यहाँ पर केवल trad मंडन की बात नहीं हो रही,जो कुछ गलत इन लोगो ने किया हा जैसे अन्य का अपमान अन्य को निचा दिखाना वो तो गलत ही है, सनातन में सबके लिए वर्णाश्रम मर्यादा में अपनी अपनी जगह है अपने अपने अधिकार है, इसलिए लड़ाई अपनी मर्यादा में रहकर करनी चाहिए यह भी सत्य है! बाकि अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ना किसीको निचा न बताकर अपने ही सिद्धांत का प्रचार करना यही यूवाओ को करना चाहिए यह मेरा मंतव्य है!
कुल मिलकर देखा जाए तो यह वर्तमान व्यवस्था का ही दोष है जिसने युवाओ को यह कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है! क्योंकि अब इन युवाओको वैदिक हिन्दू राष्ट्र से कम कुछ नहीं चाहिए!
अस्तु
श्रीमन्नारायण
लेखन : पं.हिरेनभाई त्रिवेदी,क्षेत्रज्ञ
परमधर्म संसद १००८
ट्रेड के नाम पर मीडिया ने किया जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाभाग पर वार जगतगुरु शंकराचार्य को बदनाम करने की कोशिश करने वाले मीडिया हाउस का बहिष्कार हो।
लिंक : https://m.youtube.com/watch?v=f86xbeFHdkQ
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'Sulli Deals' Row: Who Are Trads? | NewsMo
The Sulli Deals case has once again opened the controversies surrounding the trad group. Who are the people who belong to this group? Find out more about them.
#NewsMo #IndiaToday
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*रामशर्मा(गायत्री परिवार) और दयानन्द(आर्यसमाज) के स्त्रीयों को जनेऊ डालने के पक्ष का खण्डन*
श्री राम शर्मा और स्वामी दयानंद के मत की समीक्षा -
श्री राम शर्मा आचार्य (शान्ति कुञ्ज वाले ) स्त्रियों के वेदाध्ययन , यज्ञोपवीत संस्कार जैसे नवीन सिद्धांत ख्यापित करते हैं और स्वामी दयानन्द तो इस विषय में सबसे आगे हैं जो #इमं_मन्त्रं_पत्नी_पठेत् - इस शतपथब्राह्मणवचन से स्त्री के वेदाध्ययन की पुष्टि भी कर चुके है , जबकि इनका मत अयुक्त है, क्योंकि ये यह वचन वेदाध्ययन का विधिवाक्य नहीं है , वेदाध्ययन का विधिवाक्य है - स्वाध्यायोऽध्येतव्यः (तै० आ० २|१५ ) अपितु वेदाध्ययानानन्तर कर्मानुष्ठान के अन्तर्गत इसका अन्तर्भाव है | स्त्रियों हेतु विवाह ही उनकी उपनयन विधि है , पतिसेवा ही गुरुवास है ,इत्यादि जैसा कि -
#वैवाहिको_विधिः_स्त्रीणां_संस्कारो_वैदिकः_स्मृतः |
#पतिसेवा_गुरौ_वासो_गृहार्थोँऽग्निपरिक्रिया || (मनुस्मृति २|६७)
पति के साथ स्त्री का कर्म में अधिकार होता है - ये शास्त्र का सिद्धान्त है | आधानवाक्य ( वसन्ते ब्राह्मणोs ग्रीनादधीत , ग्रीष्मे राजन्यो , वर्षासु वैश्यः | (शतपथ ब्राह्मण २|१|३|५ ) में पुंस्त्व का ही ग्रहण होने से अध्ययनके उपरान्त उन्हीं का उपनयन विधान शास्त्र से विहित हुआ है | ये विषय भी कात्यायन श्रौतसूत्र के परिभाषा प्रकरण में स्पष्ट हुआ है
मेखलया यजमानं दीक्षयति योक्त्रेण पत्नीम् (तै० सं० ६|१|३ ) , आज्यमुद्वास्य पत्नीमवेक्षयति (का० श्रौ० २|७|४) इत्यादि वाक्यों से स्त्री का भी यज्ञादि कर्म में अधिकार विवक्षित हुआ है किन्तु भर्त्ता के साथ ही उसका अधिकार होता है , स्वतन्त्र नहीं , जैसा कि शास्त्र ने कहा है -
#नास्ति_स्त्रीणां_पृथग्यज्ञो_न_व्रतं_नाप्युपोषणम् |
#शुश्रूषयति_भर्त्तारं_तेन_स्वर्गे_महीयते || (मनु ० ५|५५)
अधिक जानकारी हेतु स्ववतोस्तु वचनादैककर्म्यं स्यात् जै० मी० ६|१|१७इत्यादि पूर्वक पूर्व मीमांसा के दंपत्तिसहाधिकार अधिकरण को पढ़ना चाहिए , जहां ये विषय विस्तार से सुस्पष्ट किया गया है |
जय श्री राम
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श्री राम शर्मा और स्वामी दयानंद के मत की समीक्षा -
श्री राम शर्मा आचार्य (शान्ति कुञ्ज वाले ) स्त्रियों के वेदाध्ययन , यज्ञोपवीत संस्कार जैसे नवीन सिद्धांत ख्यापित करते हैं और स्वामी दयानन्द तो इस विषय में सबसे आगे हैं जो #इमं_मन्त्रं_पत्नी_पठेत् - इस शतपथब्राह्मणवचन से स्त्री के वेदाध्ययन की पुष्टि भी कर चुके है , जबकि इनका मत अयुक्त है, क्योंकि ये यह वचन वेदाध्ययन का विधिवाक्य नहीं है , वेदाध्ययन का विधिवाक्य है - स्वाध्यायोऽध्येतव्यः (तै० आ० २|१५ ) अपितु वेदाध्ययानानन्तर कर्मानुष्ठान के अन्तर्गत इसका अन्तर्भाव है | स्त्रियों हेतु विवाह ही उनकी उपनयन विधि है , पतिसेवा ही गुरुवास है ,इत्यादि जैसा कि -
#वैवाहिको_विधिः_स्त्रीणां_संस्कारो_वैदिकः_स्मृतः |
#पतिसेवा_गुरौ_वासो_गृहार्थोँऽग्निपरिक्रिया || (मनुस्मृति २|६७)
पति के साथ स्त्री का कर्म में अधिकार होता है - ये शास्त्र का सिद्धान्त है | आधानवाक्य ( वसन्ते ब्राह्मणोs ग्रीनादधीत , ग्रीष्मे राजन्यो , वर्षासु वैश्यः | (शतपथ ब्राह्मण २|१|३|५ ) में पुंस्त्व का ही ग्रहण होने से अध्ययनके उपरान्त उन्हीं का उपनयन विधान शास्त्र से विहित हुआ है | ये विषय भी कात्यायन श्रौतसूत्र के परिभाषा प्रकरण में स्पष्ट हुआ है
मेखलया यजमानं दीक्षयति योक्त्रेण पत्नीम् (तै० सं० ६|१|३ ) , आज्यमुद्वास्य पत्नीमवेक्षयति (का० श्रौ० २|७|४) इत्यादि वाक्यों से स्त्री का भी यज्ञादि कर्म में अधिकार विवक्षित हुआ है किन्तु भर्त्ता के साथ ही उसका अधिकार होता है , स्वतन्त्र नहीं , जैसा कि शास्त्र ने कहा है -
#नास्ति_स्त्रीणां_पृथग्यज्ञो_न_व्रतं_नाप्युपोषणम् |
#शुश्रूषयति_भर्त्तारं_तेन_स्वर्गे_महीयते || (मनु ० ५|५५)
अधिक जानकारी हेतु स्ववतोस्तु वचनादैककर्म्यं स्यात् जै० मी० ६|१|१७इत्यादि पूर्वक पूर्व मीमांसा के दंपत्तिसहाधिकार अधिकरण को पढ़ना चाहिए , जहां ये विषय विस्तार से सुस्पष्ट किया गया है |
जय श्री राम
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जब तक गौहत्या होती रहेगी तब तक वैदिक धर्म क्षीण होता रहेगा और अंत में विनाश हॉगा, आपको नीचे दी गई लिंक पर जाकर रीट्वीट करना है या
नीचे दिए गए हैशटैग को ट्विटर पर कोपि कर पेस्ट करना है जिससे एक ट्रेंड बन सके। वो सरकार के संज्ञान में आ सके।
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#गौहत्या_बंद_करो_सरकार
आजतक गौमाता के लिए लाखो लोग वीरगति प्राप्त करते आये है, हमें किसी से लड़ना नहीं केवल ट्विटर पर निरंतर ट्रेंड चलाना है।
समर्थन करिए सपोर्ट करिए ट्विटर फेसबुक हर जगह।
अगर रिट्विट करना है तो लिंक
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https://twitter.com/Kshetragya4/status/1485930269391527943?t=1BXbnzpzQdRSaHq10R9Pow&s=09
जय गौमाता 💐🙏🏾
गावो विश्वस्य मातरम्। 💐
गौमाता की जय हो।
गौहत्या बंद हो।
नीचे दिए गए हैशटैग को ट्विटर पर कोपि कर पेस्ट करना है जिससे एक ट्रेंड बन सके। वो सरकार के संज्ञान में आ सके।
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#गौहत्या_बंद_करो_सरकार
आजतक गौमाता के लिए लाखो लोग वीरगति प्राप्त करते आये है, हमें किसी से लड़ना नहीं केवल ट्विटर पर निरंतर ट्रेंड चलाना है।
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जय गौमाता 💐🙏🏾
गावो विश्वस्य मातरम्। 💐
गौमाता की जय हो।
गौहत्या बंद हो।
Twitter
पं.त्रिवेदी जी उवाच
आज से पुनः ट्रेंड शुरू करना है #गौहत्या_बंद_करो_सरकार समर्थन करिए सपोर्ट करिए ट्विटर फेसबुक हर जगह।
Forwarded from Bipin Dave
JagadGuruKulam_Hindi_FINAL_CURVE.pdf
5.3 MB
*अनंत श्री विभूषित यतीचक्रचूड़ामणि अभिनव शंकराचार्य धर्मसम्राट स्वामीश्री करपात्री जी महाराज का आज निर्वाण दिवस है पूज्यपाद परमगुरुदेव भगवान के श्रीचरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।*
बंदउँ अवधभुवाल ,सत्य प्रेम जेहि राम पद।
बिछुरत दीनदयाल,प्रियतनु तृन इव परि हरेउ।।
हा रघुनंदन प्राण पिरिते। तुम बिनु जियत बहुत दिन बीते।।
संवत् 2038 विक्रम1982 ई. 8 फरवरी माघ शुक्ल चतुर्दशी रविवार प्रातः 8:20 बजे पुष्य नक्षत्र सर्व सिद्धि योग में प्रातः स्नान करके पूजन किया।
ब्रह्मचारी से कह कर किवाड़ बंद करवा दिए। शरीर त्यागने से पूर्व अपने अनन्य सहयोगी ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी कृष्णबोधआश्रम जी महाराज का स्मरण किया सब लोग चिंतित थे धीरज देते हुए ठेठ बनारसी भाषा में कहां- ताना देल्ली, बाना देल्ली ,जन्तर देल्ली ,मन्तर देल्ली ।
हमारा शुभ आशीर्वाद हइ हइ और तुम्हें क्या चाहिए बोलो ।
इसके बाद जोर से श्री सूक्त का पाठ करने लगे ऊपर श्रीविद्या यंत्र के चित्र में दृष्टि केंद्रित की। त्राटक लगाया ।सर्वेश्वर ब्रह्मचारी जी तथा ब्रह्मचैतन्य को पुकारा इन्होंने गंगाजल, तुलसी दल मुंह में डाला। पूरी सावधानी से ग्रहण किया। फिर उनकी आज्ञा से ठाकुर जी तथा तुलसी वक्षस्थल पर पधराई ।अंतिम समय तक पूर्ण चेतना रही पूर्वोक्त समय आने पर तीन बार शिव शिव का उच्चारण कर लीला संवरण कि। धर्म अध्यात्म का प्रचंड सूर्य अस्त हो गया गंगा तट पर केदार खंड में उनका शरीर भक्तों के दर्शनार्थ रखा गया।
प्रातः 8:00 बजे से जनता दर्शनार्थ आने लगी सफेद कार में दोनों जगतगुरु पुरिपीठाधीश्वर स्वामी निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज तथा ज्योतिषपीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर
स्वामीस्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के बीच में शरीर ले जाया जा रहा था वेद मंत्रों ,कीर्तन तथा स्वामी जी के दिए गए नारे -
धर्म की जय हो
अधर्म का विनाश हो
प्राणियों में सद्भावना हो
विश्व का कल्याण हो
गौ माता की जय हो
गौ हत्या बंद हो
लगाए जा रहे थे। सभी लोग पुष्प मालाएं समर्पित कर रहे थे।
सर्वप्रथम पुरिपीठाधीश्वर फिर ज्योतिष पीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर जीने पुष्प मालाएं समर्पित की। फिर अन्यान्य महापुरुषों ने पुष्पांजलि अर्पित की 9 फरवरी को दिन के 11:00 बजे टाउनहाल से अंतिम यात्रा प्रारंभ हुई। स्वामी जी का शरीर सजाए हुए ट्रक पर पालकी में पधराया गया। शरीर के पास दोनों शंकराचार्य थे इस प्रकार 3 किलोमीटर का मार्ग 3 घंटे में दशाश्वमेध घाट तक तय हुआ। वहां से स्वामी जी के पार्थिव शरीर को सजे हुए बजड़े पर रखा गया ।उसको मोटर से बांधकर केदार घाट लाया गया ।काशी में सभी बाजार ,सिनेमा ,विद्यालय, मुसलमानों तक की दुकानें बंद रहीं ।
काशी के डोम महाराज भी साथ में थे। हरीश चंद्र जिनके यहां बिके थे श्वेत वस्त्र धारी उन डोमराज ने आकर करकी याचना की। महाराज श्री के दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुएं वस्त्र सिंहासन कालीन आदि उन्हें दिया गया। स्वामी जी को विधि विधान से जल समाधि दी गई स्वामी जी के शरीर को पंचामृत से स्नान कराया गया। फिर शुद्ध जल से स्नान कराकर नवीन वस्त्र धारण कराए गए । सब क्रिया करने के अनंतर जगत्गुरु जी ने कहा मैं ऐसे महान संत का कपालछेदन नहीं कर सकता ।
ऐसा कह कर रुदन करने लगे केवल शंख में गंगाजल भरकर मस्तक का स्पर्श किया। करपात्री जी की अंतिम इच्छा थी कि मेरा शरीर काशी से बाहर न जाए। इसलिए महाराज श्री के पार्थिव शरीर को लोहे के तारों से पत्थर की पेटी के साथ जकड़ कर बांध दिया गया ।कुछ भक्त बेहोश हो गए ।
रविवार को ही स्वामी जी का जन्म हुआ था और रविवार को ही ब्रह्मलीन हुए बाद में श्रद्धांजलि अर्पित होती रही।
आज स्वामी जी की ४० वीं पुण्यतिथि पर श्री चरणों में शत शत नमन
बंदउँ अवधभुवाल ,सत्य प्रेम जेहि राम पद।
बिछुरत दीनदयाल,प्रियतनु तृन इव परि हरेउ।।
हा रघुनंदन प्राण पिरिते। तुम बिनु जियत बहुत दिन बीते।।
संवत् 2038 विक्रम1982 ई. 8 फरवरी माघ शुक्ल चतुर्दशी रविवार प्रातः 8:20 बजे पुष्य नक्षत्र सर्व सिद्धि योग में प्रातः स्नान करके पूजन किया।
ब्रह्मचारी से कह कर किवाड़ बंद करवा दिए। शरीर त्यागने से पूर्व अपने अनन्य सहयोगी ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी कृष्णबोधआश्रम जी महाराज का स्मरण किया सब लोग चिंतित थे धीरज देते हुए ठेठ बनारसी भाषा में कहां- ताना देल्ली, बाना देल्ली ,जन्तर देल्ली ,मन्तर देल्ली ।
हमारा शुभ आशीर्वाद हइ हइ और तुम्हें क्या चाहिए बोलो ।
इसके बाद जोर से श्री सूक्त का पाठ करने लगे ऊपर श्रीविद्या यंत्र के चित्र में दृष्टि केंद्रित की। त्राटक लगाया ।सर्वेश्वर ब्रह्मचारी जी तथा ब्रह्मचैतन्य को पुकारा इन्होंने गंगाजल, तुलसी दल मुंह में डाला। पूरी सावधानी से ग्रहण किया। फिर उनकी आज्ञा से ठाकुर जी तथा तुलसी वक्षस्थल पर पधराई ।अंतिम समय तक पूर्ण चेतना रही पूर्वोक्त समय आने पर तीन बार शिव शिव का उच्चारण कर लीला संवरण कि। धर्म अध्यात्म का प्रचंड सूर्य अस्त हो गया गंगा तट पर केदार खंड में उनका शरीर भक्तों के दर्शनार्थ रखा गया।
प्रातः 8:00 बजे से जनता दर्शनार्थ आने लगी सफेद कार में दोनों जगतगुरु पुरिपीठाधीश्वर स्वामी निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज तथा ज्योतिषपीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर
स्वामीस्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के बीच में शरीर ले जाया जा रहा था वेद मंत्रों ,कीर्तन तथा स्वामी जी के दिए गए नारे -
धर्म की जय हो
अधर्म का विनाश हो
प्राणियों में सद्भावना हो
विश्व का कल्याण हो
गौ माता की जय हो
गौ हत्या बंद हो
लगाए जा रहे थे। सभी लोग पुष्प मालाएं समर्पित कर रहे थे।
सर्वप्रथम पुरिपीठाधीश्वर फिर ज्योतिष पीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर जीने पुष्प मालाएं समर्पित की। फिर अन्यान्य महापुरुषों ने पुष्पांजलि अर्पित की 9 फरवरी को दिन के 11:00 बजे टाउनहाल से अंतिम यात्रा प्रारंभ हुई। स्वामी जी का शरीर सजाए हुए ट्रक पर पालकी में पधराया गया। शरीर के पास दोनों शंकराचार्य थे इस प्रकार 3 किलोमीटर का मार्ग 3 घंटे में दशाश्वमेध घाट तक तय हुआ। वहां से स्वामी जी के पार्थिव शरीर को सजे हुए बजड़े पर रखा गया ।उसको मोटर से बांधकर केदार घाट लाया गया ।काशी में सभी बाजार ,सिनेमा ,विद्यालय, मुसलमानों तक की दुकानें बंद रहीं ।
काशी के डोम महाराज भी साथ में थे। हरीश चंद्र जिनके यहां बिके थे श्वेत वस्त्र धारी उन डोमराज ने आकर करकी याचना की। महाराज श्री के दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुएं वस्त्र सिंहासन कालीन आदि उन्हें दिया गया। स्वामी जी को विधि विधान से जल समाधि दी गई स्वामी जी के शरीर को पंचामृत से स्नान कराया गया। फिर शुद्ध जल से स्नान कराकर नवीन वस्त्र धारण कराए गए । सब क्रिया करने के अनंतर जगत्गुरु जी ने कहा मैं ऐसे महान संत का कपालछेदन नहीं कर सकता ।
ऐसा कह कर रुदन करने लगे केवल शंख में गंगाजल भरकर मस्तक का स्पर्श किया। करपात्री जी की अंतिम इच्छा थी कि मेरा शरीर काशी से बाहर न जाए। इसलिए महाराज श्री के पार्थिव शरीर को लोहे के तारों से पत्थर की पेटी के साथ जकड़ कर बांध दिया गया ।कुछ भक्त बेहोश हो गए ।
रविवार को ही स्वामी जी का जन्म हुआ था और रविवार को ही ब्रह्मलीन हुए बाद में श्रद्धांजलि अर्पित होती रही।
आज स्वामी जी की ४० वीं पुण्यतिथि पर श्री चरणों में शत शत नमन
*#धर्मसम्राटस्वामीश्रीकरपात्रीजी के नाम अभी ट्वीट करें*
*श्री हरिः*
*"वन्दे हरिहरानन्दं करपात्रं जगद्गुरूम्"*
नारायण,
जैसा कि आप सभी धर्मप्रेमी सज्जनों को ज्ञात ही होगा कि आज(माघ शुक्ल चतुर्दशी) पर हम सभी सनातन धर्मावलंबी धर्मसम्राट श्री स्वामी करपात्री महाराज जी के निर्वाण दिवस को "आराधना दिवस" के रूप में मना रहे है।
जिसमें श्रद्धांजलि स्वरूप महाराजश्री के विचारों को विश्व स्तर पर प्रचारित करने हेतु *"#धर्मसम्राटस्वामीश्रीकरपात्रीजी"* संज्ञक "टैग" का उपयोग कर सर्वसामान्य तक उनकी सर्वसुलभ छवि जो उनके जीवनकाल में थी उसे आज के जनमस्तिष्क तक पहुँचाने का पुनः प्रयास किया जा रहा है।
अतः उन सभी महानुभावों का आवाहन है जिनका जन्म ही स्वस्थ क्रांति के लिये हुआ है, वे आयें तथा आज ठीक साँय ६ बजे ट्विटर के माध्यम से
*#धर्मसम्राटस्वामीश्रीकरपात्रीजी*
संज्ञक "टैग" का उपयोग कर ट्वीट करें तथा इस धार्मिक लहर को जन-जन तक पहुँचाने के निमित्त बनने का अमुल्य श्रेय भी प्राप्त करें।
श्रीधर्मसम्राटविजयतेतराम्।
इति शम्।।
*श्री हरिः*
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नारायण,
जैसा कि आप सभी धर्मप्रेमी सज्जनों को ज्ञात ही होगा कि आज(माघ शुक्ल चतुर्दशी) पर हम सभी सनातन धर्मावलंबी धर्मसम्राट श्री स्वामी करपात्री महाराज जी के निर्वाण दिवस को "आराधना दिवस" के रूप में मना रहे है।
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श्रीधर्मसम्राटविजयतेतराम्।
इति शम्।।
આપણી ઘરોહર આપણી સંસ્કૃતિ
*ડોંગરેજી મહારાજ ની જન્મજયંતિ આજે ફાગણ સુદ ત્રીજ નિમિત્તે શત શત નમન*
ડોંગરેજી મહારાજ નું જીવન
૧૯૪૮ની સાલ.
વડોદરામાં લક્ષ્મણ મહારાજના જંબુબેટ મઠમાં એક કથાકારે જીવનની પહેલી કથા કરી.
શ્રીકૃષ્ણ કથા પરનું તેમનું વક્તવ્ય શ્રોતાઓને ઝંકૃત કરી ગયું.
કથાકારનું નામ રામચંદ્ર કેશવ ડોંગરે.
માતાનું નામ કમલાતાઈ. પિતાનું નામ કેશવ ગણેશ ડોંગરે.
અહલ્યાબાઈ હોલકરની પુણ્યનગરી ઈન્દૌરમાં ફાગણ સુદ ત્રીજ ને તા. ૧૫-૨-૧૯૨૬ના રોજ મોસાળમાં જન્મેલા રામચંદ્ર કેશવ ડોંગરેના પિતા સ્વયં વેદશાસ્ત્રના પંડિત હતા.
પિતા જ પ્રથમ ગુરુ. વેદ-પુરાણ, ન્યાય, તર્ક, દર્શન ઈત્યાદિનો અભ્યાસ તેમણે વારાણસીમાં કર્યો. અમદાવાદના સંન્યાસ આશ્રમમાં અને પૂનામાં સંસ્કૃતનો અભ્યાસ કર્યો.
વારાણસીમાં પવિત્ર ગંગાતટે શાસ્ત્રાભ્યાસ દરમિયાન જ મનમાં વૈરાગ્ય પેદા થયો.
આમ છતાં માતાના આગ્રહથી શાલિનીબાઈ સાથે વિવાહ કર્યા.
૨૪ વર્ષના પ્રસન્ન દાંપત્ય બાદ પત્નીએ અલગ નિવાસ કર્યો.
વારાણસીમાં જ શ્રી નરસિંહ મહારાજે તેમને શ્રીમદ્ ભાગવતનું અમૃતપાન કરાવવાની દીક્ષા-પ્રેરણા આપી. એ કથાકાર ડોંગરેજી મહારાજના નામે આખા દેશમાં પ્રચલિત થયા. ભારતભરમાં તેમણે ૧૧૦૦થી વધુ ભાગવત કથાઓ કરી, પરંતુ કથામાંથી પ્રાપ્ત થતું ધન એમણે કદી સ્વીકાર્યું નહીં. જે ભંડોળ આવ્યું તે ગૌશાળા, મહાવિદ્યાલય, હોસ્પિટલ, અન્નક્ષેત્ર, મંદિરોનો જીર્ણોદ્ધાર, અનાથાશ્રમ અને કુદરતી સંકટો વખતે આફતમાં સપડાયેલા લોકો માટે વપરાયું.
પૂજ્ય ડોંગરેજી મહારાજ અંતર્મુખી સંત હતા. કથા કરતી વખતે હંમેશાં આંખો નીચી જ રાખતા. સ્વયં સાદગીપૂર્ણ જીવન જીવ્યા. કથાઓ આનંદ કે મનોરંજન માટે નથી એમ કહી સૌને સાવધાન કરતા. તેમની કથામાં આત્મબળ, શાસ્ત્રજ્ઞાાન અને અનુભવનો રણકો રહેતો. તેઓ જે કહે તેનું પહેલાં આચરણ કરતા, પછી જ ઉપદેશ આપતા. જિંદગીભર પોતે કોઇનાય ગુરુ થયા નહીં. સદા ઈશ્વરને જ ગુરુ કહેતા. તેમની કથાથી એકત્ર થયેલા ભંડોળમાંથી મંદિરનું નિર્માણ થાય તોપણ પોતાના હાથે મૂર્તિપ્રતિષ્ઠા થવા દેતા નહી. મૂર્તિપ્રતિષ્ઠા પછી નિત્ય દેવપૂજા ન થાય, ભગવાનને થાળ ન ધરાવાય, મંદિરમાં પૂજારીની વ્યવસ્થા ન થાય તો મૂર્તિપ્રતિષ્ઠા કરનારને પાપ લાગે તેમ તેઓ કહેતાં.
પૂજ્ય ડોંગરેજી મહારાજની જીવનશૈલી સરળ હતી. સદા જપ કરે, મૌન રહે, ખપપૂરતું જ બોલે. એમનાં કે એમની કથાનાં કોઈ વખાણ કરે તો તેમને ગમતું નહીં. તેઓ કહેતાં, સિદ્ધિ-પ્રસિદ્ધિ પતન છે.
તેઓ કહેતાં: ભગવાને જ વિના કારણે મારી યોગ્યતા કરતાં વધુ માન મને આપ્યું હોઈ હવે માન-સન્માનમાં ફસાવું નથી. એમ કહી તેઓ પોતાનું બહુમાન થવા જ દેતા નહીં. તીર્થયાત્રા વખતે નિયમ પ્રમાણે વ્રત-ઉપવાસ અને દેવપૂજા કરતા. કથાના આગલા દિવસે સ્થળ પર પહોંચી જતા. કથા એક જ પક્ષમાં પૂરી થાય તે રીતે કરતા. કથા માટે એક યજમાન જ તેમને લઈ આવે અને મૂકી આવે તેવી વ્યવસ્થા ગોઠવતા. પોતાની સાથે એક જ અનુકૂળ બ્રાહ્મણ રાખતા.
પોતાના નામની કે ફોટાની પ્રસિદ્ધિ થવા દેતા નહીં. પોતાની કથાઓથી એકઠી થયેલી ધનરાશિમાંથી દાન કરવા છતાં પોતાનું નામ ક્યાંય આવવા દેતા નહીં. દાન-સખાવત, ટ્રસ્ટ એવું કોઈ માળખું તેમણે ઊભું કર્યું નહીં, યાદી પણ કરી નહીં. બધું જ પરમાત્માએ કર્યું અને પરમાત્મા જ કરાવે છે એવી ભાવનાથી કર્યું. સાદું સંતજીવન જીવ્યા. ઇચ્છાઓ ઊઠવા જ દીધી નહીં. સંકલ્પો કર્યા જ નહીં, કોઈ સ્પૃહા રાખી જ નહીં. દેહ, ત્રેહ, પત્ની, પરિવારની આસક્તિ પણ ન રાખી. કોઈ વિશેષ સ્થળ પસંદ કરી ત્યાં જ રહેવું એવું તેમને પસંદ નહોતું. પોતે પુજાય અને તેમનો પ્રચાર થાય તેવું તેમણે કદીયે ઇચ્છયું નહીં.
બહોળો શિષ્યસમુદાય હોવા છતાં તેઓ સ્વયંપાકી રહ્યાં. પોતાની રસોઈ પોતે જ બનાવી લેતા અને તે પણ ખીચડી કે બીજું સાદું ભોજન. ભોજનમાં પણ બે જ વસ્તુ લેતા. પોતાનું કાર્ય જાતે જ કરી લેતા. તબિયત સારી ન હોય તોપણ કોઈ તેમનું માથું દબાવે કે પગ દબાવે તેવું થવા દેતા નહીં. સીવ્યાં વગરનાં બે વસ્ત્રો-ધોતી, ઉપવસ્ત્ર, ટૂંકાં વસ્ત્રો-લંગોટી આથી વધુ વસ્ત્રો રાખતા નહીં. સંગ્રહથી દૂર હતા. વસ્ત્ર જીર્ણ થઈ જાય ત્યાં સુધી તેનો ઉપયોગ કરતા. જીવનભર કથા કરવા કે તીર્થયાત્રા કરતાં ભ્રમણ કરતા રહ્યાં, પરંતુ પોતાનું કોઈ કાયમી સરનામું રાખ્યું નહી. કોઈનીયે સાથે પત્રવ્યવહાર કર્યો નહીં. પત્રવાંચનથી પણ દૂર રહ્યા. તેઓ જ્યાં પણ કથા કરે ત્યાં તેમની કથાના વિસ્તૃત અહેવાલો સ્થાનિક અખબારોમાં પ્રગટ થતા, પરંતુ સ્વયં અખબારવાંચનથી દૂર રહ્યા. એકમાત્ર 'કલ્યાણ'ના અંકો તેઓ વાંચતા. વ્યક્તિગત વખાણથી દૂર રહ્યા. વખાણવા યોગ્ય તો ભગવાન જ છે તેમ તેઓ કહેતાં. કોઈનેય સહી કે હસ્તાક્ષર ભાગ્યે જ આપતા.
કથા કરતી વખતે કોઈ તસવીરકાર તેમને વ્યવસ્થિત થવા કે સામે જોવાનું કહે તો તેમ થવા દેતા નહી. વ્યાસપીઠ પર બેઠા પછી કોઈ તસવીરકારને જોતાં જ તેઓ નીચું જોઈ જતા. ચાલુ કથાએ કોઈ તસવીરકારને ફરકવા દેતા નહીં, ટેપ કે વીડિયોગ્રાફી પણ થવા દેતા નહીં.
*ડોંગરેજી મહારાજ ની જન્મજયંતિ આજે ફાગણ સુદ ત્રીજ નિમિત્તે શત શત નમન*
ડોંગરેજી મહારાજ નું જીવન
૧૯૪૮ની સાલ.
વડોદરામાં લક્ષ્મણ મહારાજના જંબુબેટ મઠમાં એક કથાકારે જીવનની પહેલી કથા કરી.
શ્રીકૃષ્ણ કથા પરનું તેમનું વક્તવ્ય શ્રોતાઓને ઝંકૃત કરી ગયું.
કથાકારનું નામ રામચંદ્ર કેશવ ડોંગરે.
માતાનું નામ કમલાતાઈ. પિતાનું નામ કેશવ ગણેશ ડોંગરે.
અહલ્યાબાઈ હોલકરની પુણ્યનગરી ઈન્દૌરમાં ફાગણ સુદ ત્રીજ ને તા. ૧૫-૨-૧૯૨૬ના રોજ મોસાળમાં જન્મેલા રામચંદ્ર કેશવ ડોંગરેના પિતા સ્વયં વેદશાસ્ત્રના પંડિત હતા.
પિતા જ પ્રથમ ગુરુ. વેદ-પુરાણ, ન્યાય, તર્ક, દર્શન ઈત્યાદિનો અભ્યાસ તેમણે વારાણસીમાં કર્યો. અમદાવાદના સંન્યાસ આશ્રમમાં અને પૂનામાં સંસ્કૃતનો અભ્યાસ કર્યો.
વારાણસીમાં પવિત્ર ગંગાતટે શાસ્ત્રાભ્યાસ દરમિયાન જ મનમાં વૈરાગ્ય પેદા થયો.
આમ છતાં માતાના આગ્રહથી શાલિનીબાઈ સાથે વિવાહ કર્યા.
૨૪ વર્ષના પ્રસન્ન દાંપત્ય બાદ પત્નીએ અલગ નિવાસ કર્યો.
વારાણસીમાં જ શ્રી નરસિંહ મહારાજે તેમને શ્રીમદ્ ભાગવતનું અમૃતપાન કરાવવાની દીક્ષા-પ્રેરણા આપી. એ કથાકાર ડોંગરેજી મહારાજના નામે આખા દેશમાં પ્રચલિત થયા. ભારતભરમાં તેમણે ૧૧૦૦થી વધુ ભાગવત કથાઓ કરી, પરંતુ કથામાંથી પ્રાપ્ત થતું ધન એમણે કદી સ્વીકાર્યું નહીં. જે ભંડોળ આવ્યું તે ગૌશાળા, મહાવિદ્યાલય, હોસ્પિટલ, અન્નક્ષેત્ર, મંદિરોનો જીર્ણોદ્ધાર, અનાથાશ્રમ અને કુદરતી સંકટો વખતે આફતમાં સપડાયેલા લોકો માટે વપરાયું.
પૂજ્ય ડોંગરેજી મહારાજ અંતર્મુખી સંત હતા. કથા કરતી વખતે હંમેશાં આંખો નીચી જ રાખતા. સ્વયં સાદગીપૂર્ણ જીવન જીવ્યા. કથાઓ આનંદ કે મનોરંજન માટે નથી એમ કહી સૌને સાવધાન કરતા. તેમની કથામાં આત્મબળ, શાસ્ત્રજ્ઞાાન અને અનુભવનો રણકો રહેતો. તેઓ જે કહે તેનું પહેલાં આચરણ કરતા, પછી જ ઉપદેશ આપતા. જિંદગીભર પોતે કોઇનાય ગુરુ થયા નહીં. સદા ઈશ્વરને જ ગુરુ કહેતા. તેમની કથાથી એકત્ર થયેલા ભંડોળમાંથી મંદિરનું નિર્માણ થાય તોપણ પોતાના હાથે મૂર્તિપ્રતિષ્ઠા થવા દેતા નહી. મૂર્તિપ્રતિષ્ઠા પછી નિત્ય દેવપૂજા ન થાય, ભગવાનને થાળ ન ધરાવાય, મંદિરમાં પૂજારીની વ્યવસ્થા ન થાય તો મૂર્તિપ્રતિષ્ઠા કરનારને પાપ લાગે તેમ તેઓ કહેતાં.
પૂજ્ય ડોંગરેજી મહારાજની જીવનશૈલી સરળ હતી. સદા જપ કરે, મૌન રહે, ખપપૂરતું જ બોલે. એમનાં કે એમની કથાનાં કોઈ વખાણ કરે તો તેમને ગમતું નહીં. તેઓ કહેતાં, સિદ્ધિ-પ્રસિદ્ધિ પતન છે.
તેઓ કહેતાં: ભગવાને જ વિના કારણે મારી યોગ્યતા કરતાં વધુ માન મને આપ્યું હોઈ હવે માન-સન્માનમાં ફસાવું નથી. એમ કહી તેઓ પોતાનું બહુમાન થવા જ દેતા નહીં. તીર્થયાત્રા વખતે નિયમ પ્રમાણે વ્રત-ઉપવાસ અને દેવપૂજા કરતા. કથાના આગલા દિવસે સ્થળ પર પહોંચી જતા. કથા એક જ પક્ષમાં પૂરી થાય તે રીતે કરતા. કથા માટે એક યજમાન જ તેમને લઈ આવે અને મૂકી આવે તેવી વ્યવસ્થા ગોઠવતા. પોતાની સાથે એક જ અનુકૂળ બ્રાહ્મણ રાખતા.
પોતાના નામની કે ફોટાની પ્રસિદ્ધિ થવા દેતા નહીં. પોતાની કથાઓથી એકઠી થયેલી ધનરાશિમાંથી દાન કરવા છતાં પોતાનું નામ ક્યાંય આવવા દેતા નહીં. દાન-સખાવત, ટ્રસ્ટ એવું કોઈ માળખું તેમણે ઊભું કર્યું નહીં, યાદી પણ કરી નહીં. બધું જ પરમાત્માએ કર્યું અને પરમાત્મા જ કરાવે છે એવી ભાવનાથી કર્યું. સાદું સંતજીવન જીવ્યા. ઇચ્છાઓ ઊઠવા જ દીધી નહીં. સંકલ્પો કર્યા જ નહીં, કોઈ સ્પૃહા રાખી જ નહીં. દેહ, ત્રેહ, પત્ની, પરિવારની આસક્તિ પણ ન રાખી. કોઈ વિશેષ સ્થળ પસંદ કરી ત્યાં જ રહેવું એવું તેમને પસંદ નહોતું. પોતે પુજાય અને તેમનો પ્રચાર થાય તેવું તેમણે કદીયે ઇચ્છયું નહીં.
બહોળો શિષ્યસમુદાય હોવા છતાં તેઓ સ્વયંપાકી રહ્યાં. પોતાની રસોઈ પોતે જ બનાવી લેતા અને તે પણ ખીચડી કે બીજું સાદું ભોજન. ભોજનમાં પણ બે જ વસ્તુ લેતા. પોતાનું કાર્ય જાતે જ કરી લેતા. તબિયત સારી ન હોય તોપણ કોઈ તેમનું માથું દબાવે કે પગ દબાવે તેવું થવા દેતા નહીં. સીવ્યાં વગરનાં બે વસ્ત્રો-ધોતી, ઉપવસ્ત્ર, ટૂંકાં વસ્ત્રો-લંગોટી આથી વધુ વસ્ત્રો રાખતા નહીં. સંગ્રહથી દૂર હતા. વસ્ત્ર જીર્ણ થઈ જાય ત્યાં સુધી તેનો ઉપયોગ કરતા. જીવનભર કથા કરવા કે તીર્થયાત્રા કરતાં ભ્રમણ કરતા રહ્યાં, પરંતુ પોતાનું કોઈ કાયમી સરનામું રાખ્યું નહી. કોઈનીયે સાથે પત્રવ્યવહાર કર્યો નહીં. પત્રવાંચનથી પણ દૂર રહ્યા. તેઓ જ્યાં પણ કથા કરે ત્યાં તેમની કથાના વિસ્તૃત અહેવાલો સ્થાનિક અખબારોમાં પ્રગટ થતા, પરંતુ સ્વયં અખબારવાંચનથી દૂર રહ્યા. એકમાત્ર 'કલ્યાણ'ના અંકો તેઓ વાંચતા. વ્યક્તિગત વખાણથી દૂર રહ્યા. વખાણવા યોગ્ય તો ભગવાન જ છે તેમ તેઓ કહેતાં. કોઈનેય સહી કે હસ્તાક્ષર ભાગ્યે જ આપતા.
કથા કરતી વખતે કોઈ તસવીરકાર તેમને વ્યવસ્થિત થવા કે સામે જોવાનું કહે તો તેમ થવા દેતા નહી. વ્યાસપીઠ પર બેઠા પછી કોઈ તસવીરકારને જોતાં જ તેઓ નીચું જોઈ જતા. ચાલુ કથાએ કોઈ તસવીરકારને ફરકવા દેતા નહીં, ટેપ કે વીડિયોગ્રાફી પણ થવા દેતા નહીં.
કોઈ તેમની મુલાકાત લે, તેમની સાથે પ્રશ્નોત્તરી કરે, જીવનની વિગતો પૂછે, કોઈ નોંધ કરતું હોય તો તેઓ સાવધાન થઈ જતા. વાત બંધ કરી દેતા. તે વાત અખબારમાં ન આપવા કહેતા. કોઈ પણ વ્યક્તિ કોઈ પણ વિષય પર તેમનો અભિપ્રાય પૂછે તો તેઓ તેનાથી દૂર થઈ જતા. પોતાનાં વખાણ થવા દે નહીં અને અન્યનાં વખાણ પોતે કરતા નહીં. કોઈનો સેવાભાવ કે ભક્તિભાવ કે કર્મઠતા જુએ તો તેના વિશેે સારા શબ્દો વાપરે પણ કોઇની પ્રશંસા કરવાથી પોતાના પર અને બીજા પર માઠી અસર થાય છે તેમ તેઓ માનતા. કોઈનોય વિશેષ પરિચય કરાવતા નહીં અને કોઈનેય વિશેષ સગવડ આપવાની ભલામણ કરતા નહીં.
દિવસે આરામ નહીં. પ્રાતઃકાળથી સાયંકાળ સુધીનો નિત્યક્રમ-ત્રિકાલ સંધ્યા પડે નહીં. તેનો ખ્યાલ રાખતા. ઘરનાં દ્વાર સદા ખુલ્લાં રાખતા. કઠોર દિનચર્યાવાળું જીવન જીવ્યા. પ્રભુની સન્મુખ રહેવામાં દિવસ પસાર કરતા. ખુલ્લી કિતાબ જેવું જીવન જીવ્યા. ખૂબ પુજાયા અને અત્યંત લોકપ્રિય થયા, પરંતુ તેમની વિનમ્રતા અદ્વિતીય રહી. કંચન અને કામિનીથી જીવનભર દૂર રહ્યાં. વિદેશપ્રવાસ પણ તેમને શાસ્ત્ર-ધર્મ વિરુદ્ધ લાગતો. એક વાર બનારસના સંપૂર્ણાનંદ વિશ્વવિદ્યાલય, ગુજરાત યુનિર્વિસટી, સરદાર પટેલ યુનિર્વિસટીના કુલપતિઓ અને સંતો-વિદ્વાનોની વચ્ચે તેમને મહામહોપાધ્યાયની ઉપાધિ આપવામાં આવી ત્યારે તે વખતે તેઓ સંસ્કૃતમાં પ્રતિભાવ આપવાના હતા અને પોતાની અલ્પતા-વિનમ્રતા વ્યક્ત કરવાના હતા, પરંતુ સન્માનથી સંકોચ અનુભવતા લાખો શ્રોતાઓ વચ્ચે માત્ર ગદ્ગદિત જ બન્યા, બોલ્યા જ નહીં. એ જ એમની સાચી વિનમ્રતા હતી. એ જ એમનો સાચુકલો સંકોચ હતો. પૂજ્ય ડોંગરેજી મહારાજની વાણી પણ અમૃતમય હતી. તેઓ કહેતાં: "શ્રીકૃષ્ણનાં દર્શન કરવાથી માનવજન્મ સફળ થાય છે. પરમાત્માએ માનવીને જ એવી શક્તિ આપી છે, એવી બુદ્ધિ આપી છે કે માનવી તેનો સદુપયોગ કરે, ભગવાન માટે કરે તો મૃત્યુ પહેલાં એને પરમાત્માનાં દર્શન થાય છે. ઘણાં લોકો બુદ્ધિનો ઉપયોગ પૈસા માટે અને શક્તિનો ઉપયોગ ભોગ માટે કરે છે. તેથી અંતકાળમાં તે બહુ જ પસ્તાય છે. શક્તિ અને બુદ્ધિ પરમાત્મા માટે છે. આ દુર્લભ માનવશરીર પામીને પરમાત્માનાં દર્શન માટે જે પ્રયત્ન કરતો નથી તે જીવ પોતાની જ હિંસા કરે છે. આવા માણસને ઋષિઓએ આત્મહત્યારો કહ્યો છે."
તેઓ કહે છેઃ "માનવી સિવાય કોઈનેય ભગવાનનાં દર્શન થતાં નથી. સ્વર્ગમાં રહેલા દેવોને પણ ભગવાનનાં દર્શન થતાં નથી. સ્વર્ગમાં રહેલા દેવો અતિ સુખી છે, પણ તેમના સુખનો પણ અંત આવે છે. સંસારનો નિયમ છે કે જ્યાં સુખ છે ત્યાં દુઃખ ભોગવવું જ પડે છે. સ્વર્ગના દેવો આપણા કરતાં વધુ સુખ ભોગવતા હોવા છતાં તેમને શાંતિ નથી. શાંતિ તો પરમાત્માનાં દર્શનથી જ પ્રાપ્ત થાય છે. તેથી દેવો પણ એવી ઇચ્છા રાખે છે કે એમને ભારતવર્ષમાં જન્મ મળે. ભારત એ ભક્તિની ભૂમિ છે. સ્વર્ગમાં નર્મદાજી નથી. સ્વર્ગમાં ગંગાજી નથી. સ્વર્ગમાં સાધુ-સંન્યાસી નથી. સ્વર્ગમાં બધા ભોગી જીવો જ છે. સ્વર્ગ એ ભોગભૂમિ છે. જેણે બહુ પુણ્ય કર્યું હોય તે સુખ ભોગવવા સ્વર્ગમાં જાય છે, પરંતુ સ્વર્ગ કરતાં ભારતની ભૂમિ વધુ શ્રેષ્ઠ છે, કારણ કે દેવો ભક્તિ કરી શકતા નથી. ભક્તિ કરવા માટે માનવદેહ જોઇએ. પાપ છોડીને માનવી ભક્તિ કરે તો મૃત્યુ પહેલાં ભગવાનનાં દર્શન થાય છે. આજે ઘણાં લોકો કહે છે કે, "હું મંદિરમાં જઈ ત્રણ વાર દર્શન કરું છું." પણ ભગવાન કહે છેઃ "વત્સ! તું મંદિરમાં જઈ ત્રણ વાર મારાં દર્શન કરે છે, પરંતુ તને ખબર નથી કે હું ચોવીસે કલાક તારાં દર્શન કરું છું." ભગવાન આખો દિવસ સર્વેને જુએ છે."
તેઓ કહે છેઃ "તમે કોઈનું અપમાન કરશો તો જગતમાં તમારું અપમાન થશે. તમે કોઈની સાથે કપટ કરશો તો તમને છેતરનાર જગતમાં પેદા થશે. આ સંસાર કર્મભૂમિ છે. જેવાં કર્મ કરશો તેવાં ફળ મળશે. આજથી એવો નિશ્ચય કરોઃ આ જગતમાં મારું કોઈએ બગાડયું નથી. કોઈએ પણ મને દુઃખ આપ્યું નથી. મારા દુઃખનું કારણ મારું પાપ છે. તમારો શત્રુ જગતમાં નથી. તમારો શત્રુ તમારા મનમાં છુપાયેલો છે. મનમાં રહેલો કામ એ જ તમારો શત્રુ છે. બહારના એક શત્રુને મારશો તો બીજા દસ ઊભા થશે. તમારી અંદર રહેલા શત્રુને મારશો જગતમાં તમારો કોઈ શત્રુ રહેશે નહીં."
આવું અદ્વિતીય જ્ઞાાન બક્ષનારા પૂજ્ય ડોંગરેજી મહારાજ કારતક વદ છઠ તા. ૮-૧૦-૧૯૯૦ના રોજ બ્રહ્મલીન થયા. એ જ દિવસે માલસર ખાતે નર્મદાજીના પ્રવાહમાં સાંજે તેમને જળસમાધિ આપવામાં આવી. આજે માનવદેહ રૂપે આપણી સમક્ષ પૂજ્ય ડોંગરેજી મહારાજ હયાત નથી, પરંતુ જેમણે તેમને સદેહ જોયા છે અને સાંભળ્યા છે એ તમામને તેમનો કૃષ્ણપ્રેમ, જનશક્તિનું બ્રહ્મતેજ અને તેમના તેજસ્વી લલાટનું સ્મરણ છે, જાણે કે પૃથ્વી પર સાક્ષાત્ સૂર્યનારાયણ ઊતરી આવ્યા ન હોય!
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દિવસે આરામ નહીં. પ્રાતઃકાળથી સાયંકાળ સુધીનો નિત્યક્રમ-ત્રિકાલ સંધ્યા પડે નહીં. તેનો ખ્યાલ રાખતા. ઘરનાં દ્વાર સદા ખુલ્લાં રાખતા. કઠોર દિનચર્યાવાળું જીવન જીવ્યા. પ્રભુની સન્મુખ રહેવામાં દિવસ પસાર કરતા. ખુલ્લી કિતાબ જેવું જીવન જીવ્યા. ખૂબ પુજાયા અને અત્યંત લોકપ્રિય થયા, પરંતુ તેમની વિનમ્રતા અદ્વિતીય રહી. કંચન અને કામિનીથી જીવનભર દૂર રહ્યાં. વિદેશપ્રવાસ પણ તેમને શાસ્ત્ર-ધર્મ વિરુદ્ધ લાગતો. એક વાર બનારસના સંપૂર્ણાનંદ વિશ્વવિદ્યાલય, ગુજરાત યુનિર્વિસટી, સરદાર પટેલ યુનિર્વિસટીના કુલપતિઓ અને સંતો-વિદ્વાનોની વચ્ચે તેમને મહામહોપાધ્યાયની ઉપાધિ આપવામાં આવી ત્યારે તે વખતે તેઓ સંસ્કૃતમાં પ્રતિભાવ આપવાના હતા અને પોતાની અલ્પતા-વિનમ્રતા વ્યક્ત કરવાના હતા, પરંતુ સન્માનથી સંકોચ અનુભવતા લાખો શ્રોતાઓ વચ્ચે માત્ર ગદ્ગદિત જ બન્યા, બોલ્યા જ નહીં. એ જ એમની સાચી વિનમ્રતા હતી. એ જ એમનો સાચુકલો સંકોચ હતો. પૂજ્ય ડોંગરેજી મહારાજની વાણી પણ અમૃતમય હતી. તેઓ કહેતાં: "શ્રીકૃષ્ણનાં દર્શન કરવાથી માનવજન્મ સફળ થાય છે. પરમાત્માએ માનવીને જ એવી શક્તિ આપી છે, એવી બુદ્ધિ આપી છે કે માનવી તેનો સદુપયોગ કરે, ભગવાન માટે કરે તો મૃત્યુ પહેલાં એને પરમાત્માનાં દર્શન થાય છે. ઘણાં લોકો બુદ્ધિનો ઉપયોગ પૈસા માટે અને શક્તિનો ઉપયોગ ભોગ માટે કરે છે. તેથી અંતકાળમાં તે બહુ જ પસ્તાય છે. શક્તિ અને બુદ્ધિ પરમાત્મા માટે છે. આ દુર્લભ માનવશરીર પામીને પરમાત્માનાં દર્શન માટે જે પ્રયત્ન કરતો નથી તે જીવ પોતાની જ હિંસા કરે છે. આવા માણસને ઋષિઓએ આત્મહત્યારો કહ્યો છે."
તેઓ કહે છેઃ "માનવી સિવાય કોઈનેય ભગવાનનાં દર્શન થતાં નથી. સ્વર્ગમાં રહેલા દેવોને પણ ભગવાનનાં દર્શન થતાં નથી. સ્વર્ગમાં રહેલા દેવો અતિ સુખી છે, પણ તેમના સુખનો પણ અંત આવે છે. સંસારનો નિયમ છે કે જ્યાં સુખ છે ત્યાં દુઃખ ભોગવવું જ પડે છે. સ્વર્ગના દેવો આપણા કરતાં વધુ સુખ ભોગવતા હોવા છતાં તેમને શાંતિ નથી. શાંતિ તો પરમાત્માનાં દર્શનથી જ પ્રાપ્ત થાય છે. તેથી દેવો પણ એવી ઇચ્છા રાખે છે કે એમને ભારતવર્ષમાં જન્મ મળે. ભારત એ ભક્તિની ભૂમિ છે. સ્વર્ગમાં નર્મદાજી નથી. સ્વર્ગમાં ગંગાજી નથી. સ્વર્ગમાં સાધુ-સંન્યાસી નથી. સ્વર્ગમાં બધા ભોગી જીવો જ છે. સ્વર્ગ એ ભોગભૂમિ છે. જેણે બહુ પુણ્ય કર્યું હોય તે સુખ ભોગવવા સ્વર્ગમાં જાય છે, પરંતુ સ્વર્ગ કરતાં ભારતની ભૂમિ વધુ શ્રેષ્ઠ છે, કારણ કે દેવો ભક્તિ કરી શકતા નથી. ભક્તિ કરવા માટે માનવદેહ જોઇએ. પાપ છોડીને માનવી ભક્તિ કરે તો મૃત્યુ પહેલાં ભગવાનનાં દર્શન થાય છે. આજે ઘણાં લોકો કહે છે કે, "હું મંદિરમાં જઈ ત્રણ વાર દર્શન કરું છું." પણ ભગવાન કહે છેઃ "વત્સ! તું મંદિરમાં જઈ ત્રણ વાર મારાં દર્શન કરે છે, પરંતુ તને ખબર નથી કે હું ચોવીસે કલાક તારાં દર્શન કરું છું." ભગવાન આખો દિવસ સર્વેને જુએ છે."
તેઓ કહે છેઃ "તમે કોઈનું અપમાન કરશો તો જગતમાં તમારું અપમાન થશે. તમે કોઈની સાથે કપટ કરશો તો તમને છેતરનાર જગતમાં પેદા થશે. આ સંસાર કર્મભૂમિ છે. જેવાં કર્મ કરશો તેવાં ફળ મળશે. આજથી એવો નિશ્ચય કરોઃ આ જગતમાં મારું કોઈએ બગાડયું નથી. કોઈએ પણ મને દુઃખ આપ્યું નથી. મારા દુઃખનું કારણ મારું પાપ છે. તમારો શત્રુ જગતમાં નથી. તમારો શત્રુ તમારા મનમાં છુપાયેલો છે. મનમાં રહેલો કામ એ જ તમારો શત્રુ છે. બહારના એક શત્રુને મારશો તો બીજા દસ ઊભા થશે. તમારી અંદર રહેલા શત્રુને મારશો જગતમાં તમારો કોઈ શત્રુ રહેશે નહીં."
આવું અદ્વિતીય જ્ઞાાન બક્ષનારા પૂજ્ય ડોંગરેજી મહારાજ કારતક વદ છઠ તા. ૮-૧૦-૧૯૯૦ના રોજ બ્રહ્મલીન થયા. એ જ દિવસે માલસર ખાતે નર્મદાજીના પ્રવાહમાં સાંજે તેમને જળસમાધિ આપવામાં આવી. આજે માનવદેહ રૂપે આપણી સમક્ષ પૂજ્ય ડોંગરેજી મહારાજ હયાત નથી, પરંતુ જેમણે તેમને સદેહ જોયા છે અને સાંભળ્યા છે એ તમામને તેમનો કૃષ્ણપ્રેમ, જનશક્તિનું બ્રહ્મતેજ અને તેમના તેજસ્વી લલાટનું સ્મરણ છે, જાણે કે પૃથ્વી પર સાક્ષાત્ સૂર્યનારાયણ ઊતરી આવ્યા ન હોય!
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हिंदू ओर उसका आधार
पूज्य स्वामिश्री करपात्री जी ।
प्रामाण्य-विचार |
पोस्ट ३२
वेदांत के परमाचार्य आदि शंकराचार्य वेदांत ज्ञान प्राप्ति के लिए साधन रूप में निर्देश करते हैं:-
'वेदोनित्यमधीयतां तदुदीतँ कर्मस्वनुष्ठियताम्,
तेनेशस्यविधियतांपचिति:।
पापौध: परिधुयतां भवसुखेदोषोनुसन्धियतां,
स्वात्मेच्छा व्यवसियतां.....।'
अर्थात वेदका नित्य अध्ययन करो। वेदोक्त कर्म का वर्णाश्रम अनुसार अनुष्ठान करो। अनुष्ठित कर्मों को भगवान में अर्पण करके भगवान की पूजा करो। काम्यकर्मों का परित्याग करो पापौधोका नाश करके सांसारिक सुखों में दोष का अनुसंधान करो। परमात्म तत्वज्ञान की इच्छा उत्पन्न करो। दार्शनिकों के तत्व ज्ञान के आधार पर संघटन की योजना बनाने पर भी उन्हें अपेक्षित इतर साधनों की उपेक्षा करनेसे वैसे ही विफलता मिलती है, जैसे बहुमूल्य औषधियों का सेवन करने पर भी कुपथ्य परिवर्जन एवं पथ्य परिपालन बिना विफलता मिलती है। हां, यह ठीक है कि, राष्ट्र के भीतर एसी भी जातियां और समूह है, जिनका साक्षात वेदाध्ययन वेदोक्त कर्म में अधिकार नहीं है। अतः सबको साथ रखने के लिए गीत, खेलकूद, ध्वजवंदन आदि का प्रोग्राम होना ठीक है तथापि शास्त्रों एवं मुख्य कर्मों की उपेक्षा एवं तद्विपरित आचरण का प्रोत्साहन तो नहीं ही करना चाहिए। परंतु आपके लेखो, भाषणों, व्यवहारों से होता ऐसा ही है। रामचरितमानस आदि ऐसे भी सद्ग्रंथ है जिनमें सब की प्रवृत्ति करायी जा सकती है ओर सभी को अपनी-अपनी विशेषताओं की रक्षा का प्रोत्साहन भी होना चाहिए। जैसे विविध रंग-बिरंगी पुष्पों की माला में सभी पुष्पों के निजी रंग रूप सौंदर्य सौगंध की विशेषता सुरक्षित रहने में ही माला की शोभा होती है।
उसी तरह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अत्यंज तथा तदितर सभी तत्तद् धर्म ग्रंथ एवं परंपराओं के अनुसार विशेषताओं की रक्षा से ही राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा हो सकती है। 'विविधता के पहचान' (८प्रु०)। यह आपका उद्घृत वचन है। क्या यह वर्ण, जाति एवं राष्ट्र के संबंध में नहीं लागू होना चाहिए ? यह गलती कांग्रेस ने की है। वे मुसलमानों ईसाइयों के धर्म-कर्म संस्कृति में हस्तक्षेप से बहुत डरते हैं। परंतु हिंदुओं के धर्म-कर्मने बेखट हस्तक्षेप करते हैं। यही गलती आप करते हैं। वैधर्म्य विविधता है, साधर्म्य एकता है। पार्थिव विविध पदार्थों में पार्थिवता के सर्वत्र समान होने से वही साधर्म्य है, वही एकता है। घट उदनंज्जन आदि विशेषता विलक्षणता ही उनके वैधर्म्य है। इस तरह विभिन्न वर्गों में उनके धर्म कर्म आदि की विषमता होते हुए भी हिंदुत्व की दृष्टि या भारतीयता की दृष्टि से उनने सामर्थ्य समानता एकता की उपलब्धि की जा सकती है। इसी तरह मानव रूप से सभी राष्ट्रों, जातियों में एकता का अनुभव किया जा सकता है। इतना ही क्यों जीवत्व प्राणित्व रूप से देवता, दानव,मानव, पशुपक्षियों में भी एकता का अनुभव किया जा सकता है, फिर भी उनकी विषमता विशेषता उपेक्षणीय नहीं। अंत में तो चराचर विश्व प्रपंच में एक ही अधिष्ठानभूत अनंत स्वप्रकाश सच्चिदानंद परमेश्वर अनुस्यूत है। उसी एक में विविध विश्व है। विविधविश्व में उसी को अधिष्ठान रूप से पहचाना जा सकता है।
#क्रमशः #हिंदू #सनातन #धर्म #भारतीय #भारत
पूज्य स्वामिश्री करपात्री जी ।
प्रामाण्य-विचार |
पोस्ट ३२
वेदांत के परमाचार्य आदि शंकराचार्य वेदांत ज्ञान प्राप्ति के लिए साधन रूप में निर्देश करते हैं:-
'वेदोनित्यमधीयतां तदुदीतँ कर्मस्वनुष्ठियताम्,
तेनेशस्यविधियतांपचिति:।
पापौध: परिधुयतां भवसुखेदोषोनुसन्धियतां,
स्वात्मेच्छा व्यवसियतां.....।'
अर्थात वेदका नित्य अध्ययन करो। वेदोक्त कर्म का वर्णाश्रम अनुसार अनुष्ठान करो। अनुष्ठित कर्मों को भगवान में अर्पण करके भगवान की पूजा करो। काम्यकर्मों का परित्याग करो पापौधोका नाश करके सांसारिक सुखों में दोष का अनुसंधान करो। परमात्म तत्वज्ञान की इच्छा उत्पन्न करो। दार्शनिकों के तत्व ज्ञान के आधार पर संघटन की योजना बनाने पर भी उन्हें अपेक्षित इतर साधनों की उपेक्षा करनेसे वैसे ही विफलता मिलती है, जैसे बहुमूल्य औषधियों का सेवन करने पर भी कुपथ्य परिवर्जन एवं पथ्य परिपालन बिना विफलता मिलती है। हां, यह ठीक है कि, राष्ट्र के भीतर एसी भी जातियां और समूह है, जिनका साक्षात वेदाध्ययन वेदोक्त कर्म में अधिकार नहीं है। अतः सबको साथ रखने के लिए गीत, खेलकूद, ध्वजवंदन आदि का प्रोग्राम होना ठीक है तथापि शास्त्रों एवं मुख्य कर्मों की उपेक्षा एवं तद्विपरित आचरण का प्रोत्साहन तो नहीं ही करना चाहिए। परंतु आपके लेखो, भाषणों, व्यवहारों से होता ऐसा ही है। रामचरितमानस आदि ऐसे भी सद्ग्रंथ है जिनमें सब की प्रवृत्ति करायी जा सकती है ओर सभी को अपनी-अपनी विशेषताओं की रक्षा का प्रोत्साहन भी होना चाहिए। जैसे विविध रंग-बिरंगी पुष्पों की माला में सभी पुष्पों के निजी रंग रूप सौंदर्य सौगंध की विशेषता सुरक्षित रहने में ही माला की शोभा होती है।
उसी तरह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अत्यंज तथा तदितर सभी तत्तद् धर्म ग्रंथ एवं परंपराओं के अनुसार विशेषताओं की रक्षा से ही राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा हो सकती है। 'विविधता के पहचान' (८प्रु०)। यह आपका उद्घृत वचन है। क्या यह वर्ण, जाति एवं राष्ट्र के संबंध में नहीं लागू होना चाहिए ? यह गलती कांग्रेस ने की है। वे मुसलमानों ईसाइयों के धर्म-कर्म संस्कृति में हस्तक्षेप से बहुत डरते हैं। परंतु हिंदुओं के धर्म-कर्मने बेखट हस्तक्षेप करते हैं। यही गलती आप करते हैं। वैधर्म्य विविधता है, साधर्म्य एकता है। पार्थिव विविध पदार्थों में पार्थिवता के सर्वत्र समान होने से वही साधर्म्य है, वही एकता है। घट उदनंज्जन आदि विशेषता विलक्षणता ही उनके वैधर्म्य है। इस तरह विभिन्न वर्गों में उनके धर्म कर्म आदि की विषमता होते हुए भी हिंदुत्व की दृष्टि या भारतीयता की दृष्टि से उनने सामर्थ्य समानता एकता की उपलब्धि की जा सकती है। इसी तरह मानव रूप से सभी राष्ट्रों, जातियों में एकता का अनुभव किया जा सकता है। इतना ही क्यों जीवत्व प्राणित्व रूप से देवता, दानव,मानव, पशुपक्षियों में भी एकता का अनुभव किया जा सकता है, फिर भी उनकी विषमता विशेषता उपेक्षणीय नहीं। अंत में तो चराचर विश्व प्रपंच में एक ही अधिष्ठानभूत अनंत स्वप्रकाश सच्चिदानंद परमेश्वर अनुस्यूत है। उसी एक में विविध विश्व है। विविधविश्व में उसी को अधिष्ठान रूप से पहचाना जा सकता है।
#क्रमशः #हिंदू #सनातन #धर्म #भारतीय #भारत
हिंदू ओर उसका आधार ३३
पूज्य स्वामिश्री करपात्री जी।
प्रामाण्य-विचार।
पोस्ट ३३
उसीका उल्लेख:-
सर्वभुतेषुचात्मानं सर्वभूतानिचात्मनि।
सम्पश्यंन्नात्मयाजी स्वाराजमधिगच्छति।। (म०१२/९१)
समं सर्वभूतेषु तिष्ठन्तं परनेश्वरम्।
विनश्यत्स्व विनश्यन्तँ यः पश्यति स पश्यति ।।
एको देवः सर्वभूतेषूगूढ: सर्वव्यापि सर्वभूतान्तरात्मा।
सर्व भूतों में अधिष्ठान रूप से कारण रूप से आत्मा को और आत्मा में कल्पित या कार्यरुप से सर्वभूतों को देखनेवाला स्वाराज्य स्वप्रकाश ब्रह्मात्म भाव को प्राप्त होता है। विनश्वर विषय समस्त भूतों में जो अविनश्वर सम ब्रह्म को देखता है वही देखता है। एक ही स्वप्रकाश देव सर्व भूतों में निगुढ़ है। वही सर्वव्यापी एवं सर्व भूतों का वास्तविक अंतरात्मा है। यही विविधता के बीच एकता की पहचान है। जीन दर्शनग्रंथों का सार है उन दर्शन-ग्रंथोंका यह सार है उन दर्शन-ग्रन्थों में भी उक्त निष्ठा के साधन रूप में वर्णाश्रम धर्म का परम उपयोग माना गया है। आप कहते हैं कि, अंतरात्मा का यह ज्ञान मनुष्य मात्र के सुख के लिए परिश्रम करने की प्रेरणा से मानव मस्तिष्क को प्रेरित करते हुए भूतल कि प्रत्येक छोटी से छोटी जीवन विशिष्टता को अपनी पूर्ण क्षमता पर्यंत विकास के लिए पूर्ण स्वतंत्र अवसर प्रदान करेगा। (प्रु०९)। पर क्या आप अपने संगठन में भूतल नहीं हिंदुओं के मुख्य प्रदेश भारत में स्रोतस्मार्त धर्मानुष्ठायी वर्णाश्रमियों कि भी कोई विशिष्टता मानते हैं या नहीं, मानते हैं तो उसके पूर्ण क्षमता पर्यंत विकास के लिए क्या प्रेरणा देते हैं? क्या संघ में होने वाला सर्वजातीय सहभोज उसे नष्ट करने के लिए नहीं अपनाया गया है ? क्या वर्णभेद, जातिभेद तथा वेदशास्त्रानुसार जन्मना ब्राह्मण, जन्मना क्षत्रिय, जन्मना वैश्य, के लिए विहित वैदिक विधानों एवं उनकी विशेषताओं पर भी कभी विचार किया है ?
क्रमशः
#हिंदू #धर्म #सनातन #वेद #भारतीय #भारत #शास्त्र
पूज्य स्वामिश्री करपात्री जी।
प्रामाण्य-विचार।
पोस्ट ३३
उसीका उल्लेख:-
सर्वभुतेषुचात्मानं सर्वभूतानिचात्मनि।
सम्पश्यंन्नात्मयाजी स्वाराजमधिगच्छति।। (म०१२/९१)
समं सर्वभूतेषु तिष्ठन्तं परनेश्वरम्।
विनश्यत्स्व विनश्यन्तँ यः पश्यति स पश्यति ।।
एको देवः सर्वभूतेषूगूढ: सर्वव्यापि सर्वभूतान्तरात्मा।
सर्व भूतों में अधिष्ठान रूप से कारण रूप से आत्मा को और आत्मा में कल्पित या कार्यरुप से सर्वभूतों को देखनेवाला स्वाराज्य स्वप्रकाश ब्रह्मात्म भाव को प्राप्त होता है। विनश्वर विषय समस्त भूतों में जो अविनश्वर सम ब्रह्म को देखता है वही देखता है। एक ही स्वप्रकाश देव सर्व भूतों में निगुढ़ है। वही सर्वव्यापी एवं सर्व भूतों का वास्तविक अंतरात्मा है। यही विविधता के बीच एकता की पहचान है। जीन दर्शनग्रंथों का सार है उन दर्शन-ग्रंथोंका यह सार है उन दर्शन-ग्रन्थों में भी उक्त निष्ठा के साधन रूप में वर्णाश्रम धर्म का परम उपयोग माना गया है। आप कहते हैं कि, अंतरात्मा का यह ज्ञान मनुष्य मात्र के सुख के लिए परिश्रम करने की प्रेरणा से मानव मस्तिष्क को प्रेरित करते हुए भूतल कि प्रत्येक छोटी से छोटी जीवन विशिष्टता को अपनी पूर्ण क्षमता पर्यंत विकास के लिए पूर्ण स्वतंत्र अवसर प्रदान करेगा। (प्रु०९)। पर क्या आप अपने संगठन में भूतल नहीं हिंदुओं के मुख्य प्रदेश भारत में स्रोतस्मार्त धर्मानुष्ठायी वर्णाश्रमियों कि भी कोई विशिष्टता मानते हैं या नहीं, मानते हैं तो उसके पूर्ण क्षमता पर्यंत विकास के लिए क्या प्रेरणा देते हैं? क्या संघ में होने वाला सर्वजातीय सहभोज उसे नष्ट करने के लिए नहीं अपनाया गया है ? क्या वर्णभेद, जातिभेद तथा वेदशास्त्रानुसार जन्मना ब्राह्मण, जन्मना क्षत्रिय, जन्मना वैश्य, के लिए विहित वैदिक विधानों एवं उनकी विशेषताओं पर भी कभी विचार किया है ?
क्रमशः
#हिंदू #धर्म #सनातन #वेद #भारतीय #भारत #शास्त्र
#माता_शबरी_ब्राह्मणी_थी सप्रमाण सम्पूर्ण विवेचन
सोर्स : रामायण मीमांसा - धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज
सोर्स : रामायण मीमांसा - धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज