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तुम्हारे पैरों में जूते भले न हो,
लेकिन तुम्हारे हाथों में किताबें अवश्य होनी चाहिए..!!

-डॉ. भीमराव आंबेडकर
कल रात नेटफ्लिक्स मैने "चमकीला" नाम की फिल्म देखी, फिल्म देखकर लगा कि कुछ बातें जो आप सभी भाईयों से रीलेट कर सकती हैं, आपसे शेयर करूं..

कहानी एक छोटे से गाँव के एक गरीब परिवार के लड़के की है, जो मोजे बनाने के कारखाने में काम करता है और बाद में पंजाब के म्यूजिक इंडस्ट्री का बेताज बादशाह बन जाता है।

पर अमर सिंह का सपना इलेक्ट्रिशियन बनने का था, मैं आपको यही समझना चाहता हूं कि कभी कभी हम सब जो सपना देखते हैं, हमारी नियति उससे बहुत अधिक की होती है, क्या होता अगर अमर सिंह इलेक्ट्रिशियन बन जाता, क्या होता कि वो परिवार का पेट पालने के लिए मोजे बनाने का काम में ही लगा रहता..? वो कभी अमर सिंह से चमकीला नहीं बन पता, धौनी की भी सेम कहानी थी, रेलवे की नौकरी को इग्नोर करके उसने भी क्रिकेट, या अपने जुनून को चुना। मैं बस यही कहना चाहता हूं कि अगर आपमें कोई टैलेंट है, तो उसको निखारो, टेंपरेरी काम करना अलग बात है, स्थिति ही ऐसी होती है एक गरीब या माध्यम परिवार की, पर अंदर की आग बुझने नहीं देना, सरकारी नौकर लाखों हैं, हो सकता है आप लाखों में एक हों, और हां गलतफहमी का शिकार भी मत होना, टैलेंट वेलेंट है नहीं, और नौकरी या तैयारी भी छोड़ दो, और जिंदगी में कुछ कर भी ना पाओ 😁😂

दूसरी बात, चमकीला की हमेशा आलोचना होती थी की वह, द्विअर्थी या हल्के गाने गाता है, इसके बारे में भी फिल्म में बताया है, वो वही करता था, जो लोग पसंद करते थे, भले वो धार्मिक गाने की तरफ मुड़ा, फिर भी जनता को हल्के गाने ही पसंद थे, और वो वही लिखता गाता जो जनता को पसंद था। चाहे कट्टर समाज के ठेकेदार हो या सरकारी तंत्र के लोग, गाने तो सभी सुनते ही थे, पर समाज के ठेकेदार होने का मुखौटा भी ओढ़ना था उन्हें। व्यक्तिगत रूप से अमर सिंह बहुत ही नेक और सभ्य इंसान था (जैसा फिल्म में दिखाया गया है, मुझे पर्सनली कुछ नहीं पता), पर उसका काम ही जनता जो चाहती है वो देकर उनका मनोरंजन करना था। अब आप ही बताओ वो कितना गलत था ..?

चमकीला कितना भी बड़ा नाम बन गया पर वो हमेशा ही विनम्र और हसी मजाक वाला इंसान था, चाहे ढाबे का मामूली वेटर क्यू ना हो, वो उससे भी अच्छे से बात करता, हसी मजाक करता। आप सभी भी आज ना कल बड़े ओहदे में होंगे, या बड़ा बिजनेस करेंगे, तब भी आपको अपने अंदर की विनम्रता को मरने नहीं देना है। इसके अलग अपने आत्म सम्मान की पूरी रक्षा भी करनी है, ये आत्म सम्मान की ही बात थी जब उसने अपना अलग समूह बनाया, और बाद में चमकीला बड़ा बना।

फिल्म के अंत में यह भी दिखाया है, की कैसे उसके रिश्तेदार उसकी मौत के बाद, उसके लाश सामने पड़े होने के समय भी, उसके पैसे की लूट खसोट और बंदरबांट कर रहें थे, इंसान मर जाए, सब खत्म हो जाता है, वैसे रिश्तेदार जिनसे आपकी कभी बनी नहीं, jo kabhi साथ नहीं दिए, आपके पैसे के लिए आपस में लड़ उठते हैं। सही कहा गया है, पैसा साथ नहीं जाता, साथ आपके कर्म ही जाते हैं, जितना हो सके, लोगो की मदद करें, कम से कम आपके आस पास के लोगों की, जरूरत मंद लोगों की, सुकून भी जबरदस्त मिलेगा, और आपको खुद पर अच्छा भी महसूस होगा।

फिल्म का समापन एक गहरे गाने से होता है जिसके बोल कुछ इस प्रकार है:

मैनू विदा करो
मैनू विदा करो जी
अब विदा करो मेरे यार
मैने जाना है उस पार
तुम सभी साफ सही
हूं मटमैला मैं
तुम सभी पाक मगर
पाप का दरिया मैं
मैनू विदा करो
मैनू विदा करो जी
अब विदा करो मेरे यार..

आशा करता हूं कि जो मैं आपको समझना चाहता हूं, आप समझ रहें है, आपका अपना, निखिल भईया..!!🖤
SSC Notice
2024/05/31 10:28:39
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