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*हनुमान दीक्षा ले रहे हिंदू छात्रों को मिशनरी स्कूल प्रशासन ने कक्षा में जाने से रोका, तनाव के बाद परिसर में तोड़फोड़, दोनों पक्षों ने दर्ज कराई FIR*

तेलंगाना के एक ईसाई मिशनरी स्कूल में छात्रों के धार्मिक पोशाक पहनने पर स्कूल प्रशासन ने आपत्ति जताई, जिसके बाद तनाव उत्पन्न हो गया और स्कूल में तोड़फोड़ की घटना हुई। यह घटना 16 अप्रैल 2024 को मंचेरियल जिले के कन्नेपल्ली गाँव में लक्सेटिपेट के मदर टेरेसा स्कूल में हुई। यहाँ पर कुछ हिंदू छात्र ‘हनुमान दीक्षा पोशाक’ पहनकर पहुँचे थे। भगवा रंग की धार्मिक पोशाक पहने हुए छात्रों को कथित सूचित किया गया था कि यदि वे बिना स्कूल यूनीफॉर्म के स्कूल आना चाहते हैं तो उनके माता-पिता को इसके लिए पहले अनुमति लेनी होगी। जब छात्र भगवा कपड़े और माला पहनकर आए तो स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें क्लास में जाने की अनुमति नहीं दी। उन्हें तब तक बाहर खड़ा रखा गया, जब तक वे अपने माता-पिता को स्कूल नहीं बुला लाए।

स्रोत :
https://hindi.opindia.com/national/telangana-school-vandalised-after-objection-to-saffron-attire-of-hindu-students/
*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस :३१४/३५० (314/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*अष्टादशऽध्याय : मोक्षसंन्यासयोग*

*अध्याय १८ श्लोक १२ (18:12)*
*अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मण: फलम्।*
*भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु सन्न्यासिनां क्वचित्॥*

*शब्दार्थ—*
(अत्यागिनाम्) कर्मफलका त्याग न करनेवाले मनुष्योंके (कर्मणः) कर्मोंका (इष्टम्) शुभ (अनिष्टम्) अशुभ (च) और (मिश्रम्) मिश्रित (त्रिविधम्) तीन प्रकारका (फलम्) फल (प्रेत्य) मरनेके पश्चात् (भवति) होता है (तु) किंतु (सन्न्यासिनां) कर्मफलका त्याग कर देनेवाले मनुष्योंके कर्मोंका फल (क्वचित्) किसी कालमें भी (न) नहीं होता (पूर्ण मोक्ष हो जाता है)।

*अनुवाद—*
कर्मफल का त्याग न करने वाले मनुष्यों के कर्मों का तो अच्छा, बुरा और मिश्रित- ऐसे तीन प्रकार का फल मरने के पश्चात अवश्य होता है, किन्तु कर्मफल का त्याग कर देने वाले मनुष्यों के कर्मों का फल किसी काल में भी नहीं होता।

*अध्याय १८ श्लोक १३ (18:13)*
*पञ्चैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे।*
*साङ्ख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम् ।।*

*शब्दार्थ—*
(महाबाहो) हे महाबाहो! (सर्वकर्मणाम्) सम्पूर्ण कर्मोंकी (सिद्धये) सिद्धिके (एतानि) ये (पञ्च) पाँच (कारणानि) हेतु ( कृतान्ते) कर्मोंका अन्त करनेके लिये उपाय बतलानेवाले (साङ्ख्ये) सांख्य दर्शन में (प्रोक्तानि) कहे गये हैं उनको तू (मे) मुझसे (निबोध) भलीभाँति जान।

*अनुवाद—*
हे महाबाहो! सम्पूर्ण कर्मों की सिद्धि के ये पाँच हेतु कर्मों का अंत करने के लिए उपाय बतलाने वाले सांख्य-दर्शन में कहे गए हैं, उनको तू मुझसे भलीभाँति जान।

शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

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*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार, सर्वोत्तम पथप्रदर्शक/मित्र कौन है?*

*य आनयत्परावतः सुनीती तुर्वशं यदुम्। इन्द्रः स नो युवा सखा॥*

*(सामवेद - मन्त्र संख्या : 127)*

*मन्त्रार्थ—*
(यः-इन्द्रः) जो ऐश्वर्यवान् परमात्मा (सुनीती) सुनीति-शोभन नेतृत्व से—पथप्रदर्शकता से (परावतः) दूर गये—पथभ्रष्ट कुमार्ग से (यदुम्) मनुष्य को “यदवः मनुष्याः” [निघं॰ २.३] (तुर्वशम्-आनयत्) समीप—अपने समीप—सन्मार्ग में “तुर्वशः-अन्तिकनाम” [निघं॰ २.१६] ले आता है (सः-नः) वह हमारे (युवा सखा) सदा बलवान् बना रहने वाला मित्र है।

*व्याख्या—*
परमात्मा शोभन पथप्रदर्शकता से भटके हुए जन को सुपथ पर ले आता है वह मानव का सदा साथी मित्र है उस जैसा पथप्रदर्शक और मित्र कोई नहीं है।

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*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस :३१६/३५० (316/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*अष्टादशऽध्याय : मोक्षसंन्यासयोग*

*अध्याय १८ श्लोक १६ (18:16)*
*तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु य:।*
*पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मति:।।*

*शब्दार्थ—*
(तु) परंतु (एवम्) ऐसा (सति) होनेपर भी (यः) जो मनुष्य (अकृतबुद्धित्वात्) अशुद्धबुद्धि होने के कारण (तत्र) उस विषयमें अर्थात् कर्मोंके होनेमें (केवलम्) केवल (आत्मानम्) जीवात्मा अर्थात् जीव को (कर्तारम्) कर्त्ता (पश्यति) समझता है (सः) वह (दुर्मतिः) दुर्बुद्धिवाला अज्ञानी (न,पश्यति) यथार्थ नहीं समझता।

*अनुवाद—*
परन्तु ऐसा होने पर भी जो मनुष्य अशुद्ध बुद्धि (सत्संग और शास्त्र के अभ्यास से तथा भगवदर्थ कर्म और उपासना के करने से मनुष्य की बुद्धि शुद्ध होती है, इसलिए जो उपर्युक्त साधनों से रहित है, उसकी बुद्धि अशुद्ध है, ऐसा समझना चाहिए।) होने के कारण उस विषय में अर्थात् कर्मों के होने में केवल शुद्ध स्वरूप आत्मा को कर्ता समझता है, वह मलीन बुद्धि वाला अज्ञानी यथार्थ नहीं समझता।

*अध्याय १८ श्लोक १७ (18:17)*
*यस्य नाहङ् कृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते।*
*हत्वाऽपि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते।।*

*शब्दार्थ—*
(यस्य) जिसे (अहङ्कृतः) ‘मैं कर्त्ता हूँ‘ ऐसा (भावः) भाव (न) नहीं है तथा (यस्य) जिसकी (बुद्धिः) बुद्धि (न, लिप्यते) लिपायमान नहीं होती (सः) वह (इमान्) इन (लोकान्) सब लोकोंको (हत्वा) मारकर (अपि) भी (न) न तो (हन्ति) मारता है और (न) न (निबध्यते) बँधता है।

*अनुवाद—*
जिस पुरुष के अन्तःकरण में 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा भाव नहीं है तथा जिसकी बुद्धि सांसारिक पदार्थों में और कर्मों में लिपायमान नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न तो मरता है और न पाप से बँधता है।

शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

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*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में सब विद्वान् लोग कैसे हों और संसारी मनुष्यों के साथ कैसे अपना वर्त्ताव करें? का उपदेश*

*आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः। देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेऽदिवे ॥*
*(ऋग्वेद - मण्डल 1; सूक्त 89; मन्त्र 1)*

*मन्त्रार्थ—*
(यथा) जैसे जो (विश्वतः) सब ओर से (भद्राः) सुख करने और (क्रतवः) अच्छी क्रिया वा शिल्पयज्ञ में बुद्धि रखनेवाले (अदब्धासः) अहिंसक (अपरीतासः) न त्याग के योग्य (उद्भिदः) अपने उत्कर्ष से दुःखों का विनाश करनेवाले (अप्रायुवः) जिनकी उमर का वृथा नाश होना प्रतीत न हो (देवाः) ऐसे दिव्य गुणवाले विद्वान् लोग जैसे (नः) हम लोगों को (सदम्) विज्ञान व घर को (आ+यन्तु) अच्छे प्रकार पहुँचावें, वैसे (दिवेदिवे) प्रतिदिन (नः) हमारे (वृधे) सुख के बढ़ाने के लिये (रक्षितारः) रक्षा करनेवाले (इत्) ही (असन्) हों ।

*व्याख्या -*
जैसे सब ऋतुओं में सुख देने योग्य श्रेष्ठ घर, सब सुखों को पहुँचाता है, वैसे ही विद्वान् लोग, विद्या और शिल्पयज्ञ सुख करनेवाले होते हैं।

अतः हर ओर से सुविचार, सत्कार्य और मेधावी सज्जन लोग आएं और और हमें आशीर्वाद दें। निडर, अपरिहार्य, रचनात्मक और सर्वांगीण रक्षक लोग दीर्घायु हों, दिव्य चरित्र के ये महान लोग, सदैव प्रगति के आकांक्षी हों और हमारे संरक्षक हों ताकि हमारा जीवन और घर दिनोंदिन निरन्तर सुखमय प्रगति करे।

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*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस :३१७/३५० (317/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*अष्टादशऽध्याय : मोक्षसंन्यासयोग*

*अध्याय १८ श्लोक १८ (18:18)*
*ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना।*
*करणं कर्म कर्तेति त्रिविध: कर्मसंग्रह:॥*

*शब्दार्थ—*
(परिज्ञाता) ज्ञाता (ज्ञानम्) ज्ञान और (ज्ञेयम्) ज्ञेय (त्रिविधा) यह तीन प्रकारकी (कर्मचोदना) कर्म-प्रेरणा है और (कर्ता) कत्र्ता (करणम्) करनी तथा (कर्म) क्रिया (इति) यह (त्रिविधः) तीन प्रकारका (कर्मसंग्रहः) कर्म-संग्रह है।

*अनुवाद—*
ज्ञाता (जानने वाले का नाम 'ज्ञाता' है।), ज्ञान (जिसके द्वारा जाना जाए, उसका नाम 'ज्ञान' है। ) और ज्ञेय (जानने में आने वाली वस्तु का नाम 'ज्ञेय' है।)- ये तीनों प्रकार की कर्म-प्रेरणा हैं और कर्ता (कर्म करने वाले का नाम 'कर्ता' है।), करण (जिन साधनों से कर्म किया जाए, उनका नाम 'करण' है।) तथा क्रिया (करने का नाम 'क्रिया' है।)- ये तीनों प्रकार का कर्म-संग्रह है।

*अध्याय १८ श्लोक १९ (18:19)*
*ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत:।*
*प्रोच्यते गुणसङ् ख्याने यथावच्छृणु तान्यपि।।*

*शब्दार्थ—*
(गुणसङ्ख्याने) गुणोंकी संख्या करनेवाले शास्त्रामें (ज्ञानम्) ज्ञान (च) और (कर्म) कर्म (च) तथा (कर्ता) कत्र्ता (गुणभेदतः) गुणोंके भेदसे (त्रिधा) तीन-तीन प्रकारके (एव) ही (प्रोच्यते) कहे गए हैं। (तानि) उनको (अपि) भी तू मुझसे (यथावत्) भलीभाँति (श्रृणु) सुन।

*अनुवाद—*
गुणों की संख्या करने वाले शास्त्र में ज्ञान और कर्म तथा कर्ता गुणों के भेद से तीन-तीन प्रकार के ही कहे गए हैं, उनको भी तु मुझसे भलीभाँति सुन।

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*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार किस प्रकार मनुष्य,परमात्मप्रार्थना व पुरुषार्थ से दैवी, भौतिक सम्पदा को अर्जित कर सुखी होवें?*

*एन्द्र सानसिꣳ रयिꣳ सजित्वानꣳ सदासहम् । वर्षिष्ठमूतये भर॥*

*(सामवेद - मन्त्र संख्या : 129)*

*मन्त्रार्थ—*
हे (इन्द्र) परमैश्वर्यशाली, परम ऐश्वर्य के दाता परमात्मन् आप (सानसिम्) संभजनीय, (सजित्वानम्) सहोत्पन्न शत्रुओं को जीतनेवाले, (सदासहम्) सदा दुष्ट शत्रुओं का अभिभव करानेवाले और दुःखों को सहन करानेवाले, (वर्षिष्ठम्) अतिशय बढ़े हुए और बढ़ानेवाले (रयिम्) अहिंसा, सत्य, शम, दम आदि दैवी सम्पदा को तथा विद्या, धन, बल, चक्रवर्ती राज्य आदि भौतिक ऐश्वर्य को (ऊतये)) हमारी रक्षा, प्रगति, प्रीति और तृप्ति के लिए (आ भर) प्रदान कीजिए।

*व्याख्या—*
सब मनुष्यों को इन्द्र अर्थात् परमैश्वर्यशाली, परम ऐश्वर्य के दाता परमात्मा से याचना करके और अपने पुरुषार्थ द्वारा अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान, शम, दम, तेज तप, क्षमा, धृति आदि दैवी सम्पदा और विद्या, धन, बल, दीर्घायुष्य, पशु, पुत्र, पौत्र, कलत्र, चक्रवर्ती राज्य आदि भौतिक सम्पदा का उपार्जन करना चाहिए।

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*इतिहासबोध🦁🚩*
*चैत्र शुक्ल पूर्णिमा : श्री हनुमंत जन्मोत्सव*

*मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।*
*वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥*

जिनकी मन के समान गति और वायु के समान वेग है, जो परम जितेन्दिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, उन पवनपुत्र वानरों में प्रमुख श्रीरामदूत की मैं शरण लेता हूं।

*श्री हनुमान जन्मोत्सव की सभी सनातनधर्मियों को हार्दिक शुभकामनाएं... जय जय श्री राम 🕉️💐🚩🚩*
2024/06/18 19:33:21
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