▪️दुनिया ने जिस खिलाड़ी के लंबाई को लेकर मजाक उड़ाया,जिसे कोटे के तहत बना कप्तान बताया गया, आज इस खिलाड़ी ने अपने कप्तानी और खेल के दम पर दक्षिण अफ्रीका को पहली ICC ट्रॉफी जीता दी और ऑस्ट्रेलियन किले को ध्वस्त कर दिया साथ ही साउथ अफ्रीका को चोकर्स के नाम से मुक्ति दी।
▪️इसीलिए कहा जाता है की आप अपने आत्मविश्वास और प्रतिभा के साथ अपने कर्म को करते रहिए दुनिया आपका शुरू में मजाक बनाएगी बाद में सफल होने पर आपकी उन्ही कमियों की बड़ाई कर प्रशंसा करेगी।
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🔲 11 फरवरी को हुई RO/ARO 2023 प्रीलिम्स परीक्षा की डिटेल एनालिसिस
▪️पेपर अभ्यर्थियों के ज्ञान के साथ निर्णय लेने की क्षमता और समझ बूझ को परखने के उद्देश्य से बनाया गया था।
▪️पेपर का स्तर मध्यम से कठिन के मध्य था।
▪️ अभिकथन और कारण प्रश्नों की संख्या 22 थी
▪️ सूची I को सूची II से मिलाकर कूट वाले प्रश्नों की संख्या 18 थी
▪️ दो कथनो वाले प्रश्न(केवल 1,केवल 2,1 और 2 दोनों, न तो 1 न ही 2)की संख्या 40 थी
▪️क्रम को व्यवस्थित करने वाले प्रश्नों(I,II,III,IV)की संख्या 10 थी
▪️ वन लाइनर वाले प्रश्नों की संख्या केवल 8 थी
▪️प्राचीन इतिहास,पर्यावरण के प्रश्नों की संख्या बहुत कम (केवल 1) थी।
▪️राजव्यवस्था से सामान्य से कम प्रश्न पूछे गए (केवल 9)
▪️आधुनिक इतिहास,भूगोल,रीजनिंग के प्रश्नों की संख्या सामान्य से ज्यादा थी
▪️करेंट अफेयर्स का कोई भी प्रश्न वन लाइनर नही था और करेंट के प्रश्न ज्यादातर महत्वपूर्ण टॉपिक से ही थे(कनाडा विवाद,निवेशक समिट,चंद्रयान,G 20 आदि)
▪️पेपर में उत्तर प्रदेश विशेष के भी 9 प्रश्न थे।
▪️तीन प्रश्नों की हिंदी और अंग्रेजी में भिन्नता थी,एक प्रश्न का उत्तर पेपर के ही एक प्रश्न से हल हो सकता था।
▪️RO/ARO परीक्षा में जियोग्राफी के लगभग सारे प्रश्न PYQ से थे।
▪️विज्ञान के कुछ प्रश्नों का स्तर इंटरमीडिएट लेवल था और कुछ में प्रश्नों को हल भी करना पड़ा होगा।
🟥 RO/ARO री-एग्जाम के इस पैटर्न को ध्यान में रखते हुए नये पैटर्न ( 1 प्रश्न पत्र, 200 प्रश्न, समय -03 घंटे ) के आधार पर बैच प्रारम्भ 👇
डिटेल्स- https://www.tg-me.com/uppcs1/26169
फ़ीस - ₹500
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▪️पेपर का स्तर मध्यम से कठिन के मध्य था।
▪️ अभिकथन और कारण प्रश्नों की संख्या 22 थी
▪️ सूची I को सूची II से मिलाकर कूट वाले प्रश्नों की संख्या 18 थी
▪️ दो कथनो वाले प्रश्न(केवल 1,केवल 2,1 और 2 दोनों, न तो 1 न ही 2)की संख्या 40 थी
▪️क्रम को व्यवस्थित करने वाले प्रश्नों(I,II,III,IV)की संख्या 10 थी
▪️ वन लाइनर वाले प्रश्नों की संख्या केवल 8 थी
▪️प्राचीन इतिहास,पर्यावरण के प्रश्नों की संख्या बहुत कम (केवल 1) थी।
▪️राजव्यवस्था से सामान्य से कम प्रश्न पूछे गए (केवल 9)
▪️आधुनिक इतिहास,भूगोल,रीजनिंग के प्रश्नों की संख्या सामान्य से ज्यादा थी
▪️करेंट अफेयर्स का कोई भी प्रश्न वन लाइनर नही था और करेंट के प्रश्न ज्यादातर महत्वपूर्ण टॉपिक से ही थे(कनाडा विवाद,निवेशक समिट,चंद्रयान,G 20 आदि)
▪️पेपर में उत्तर प्रदेश विशेष के भी 9 प्रश्न थे।
▪️तीन प्रश्नों की हिंदी और अंग्रेजी में भिन्नता थी,एक प्रश्न का उत्तर पेपर के ही एक प्रश्न से हल हो सकता था।
▪️RO/ARO परीक्षा में जियोग्राफी के लगभग सारे प्रश्न PYQ से थे।
▪️विज्ञान के कुछ प्रश्नों का स्तर इंटरमीडिएट लेवल था और कुछ में प्रश्नों को हल भी करना पड़ा होगा।
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याद करके बताइये क्या 11 फ़रवरी 2024 के RO/ARO एग्जाम के पेपर में आपको समय कम पड़ा था?
Anonymous Poll
57%
हाँ
43%
नही
ये टेलीग्राम फ़र्ज़ी ऐड वाला इतना परेशान कर दिया है कि क्या ही बताया जाय।
अब धीरे-धीरे टेलीग्राम बंद करके व्हाट्सप्प पर मूव किया जाय।
आप सभी हमारे व्हाट्सप्प चैनल से जुड़ जाइये, अब सारी एक्टिविटी उधर ही होगी।
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RO/ARO री-एग्जाम MODERN HISTORY COMPLETE PLAYLIST
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RO/ARO री-एग्जाम का बैच प्रारम्भ 💐
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लास्ट चांस😢
4 मई 2009 की तारीख़ थी और मै उस साल के सिविल सर्विसेज के फ़ाइनल रिज़ल्ट के लिये शाहजहाँ रोड धौलपुर हाउस के बाहर खड़ा था। बहुत सारे छात्र सुबह से ही आईएएस के फ़ाइनल रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहा थे। शाम 4 बजे रिज़ल्ट आया और मेरा नाम फ़ाइनल लिस्ट मे नही था। रात के 9 बजे चुके थे और मै अभी भी वहीं बैठा था। उन पाँच घंटों मे मैने कमसे कम पचास बार अपना रिज़ल्ट देखा कि शायद मेरा रोल नंबर हो उस लिस्ट मे। बहुत मेहनत की थी वहाँ तक पहुँचने के लिये और एक मिनट मे सब कुछ निकल गया हाथ से रेत की तरह। कुछ भी समझ नही आ रहा था ।
तभी पिताजी का फ़ोन आया और आवाज़ सुनकर ही मुझे पता चल गया था कि वह कितने ज़्यादा दुखी हुये थे । मै ज़्यादा कुछ बोल नही पाया। पिताजी ने कहा कि कोई बात नही , अगली बार और मेहनत करना । भारी मन से कुछ समय के बाद मैने एक ऑटो बुलाया और रात दस बजे मै मुखर्जीनगर पहुँचा। रूम पर जाने का मन नही किया तो चाय पीने के लिये बत्रा सिनेमा पर गया। चाय पीते पीते वो सारे दिन और वो सारी रातें जो मैने यहाँ तक पहुंचने मे लगाये थे सब तेज़ी से आँखों के सामने से घूम गये ।
दिल्ली आये तीन साल बीत चुके थे। मानो कल की ही बात हो। पता ही नही चला कि कब बीत गया इतना समय । केवल समय ही बीत रहा था और बाक़ी सब कुछ वैसा ही था। ठहरे हुये लोग , ठहरी हुई ज़िंदगी , वही क्लासेज , वही बत्रा सिनेमा और वही कटिंग चाय । कुछ नही बदला , सिवाय मेरे और लगातार मिलती मेरी असफलताओं के सिवा। जब पहली बार यहाँ आया था तो यही सब चीज़ें और यही सब जगह मुझे उत्साहित करते थे और मै सोचता था कि एक साल के भीतर ही सिविल सर्विसेज मे सफल हो
जाऊँगा। और आज असफल होने पर अब वही सब जगहें मुझे काटने को दौड़ रही हैं। रात मे भइया का मैसेज आया कि परेशान मत होना और खाने पीने का ध्यान रखना। वह रात कैसे कटी मुझे याद नही , कितने आँसू गिरे गिनती नही , इतना ही याद है कि उस रात मुझे नींद नही आई थी ।
अगले दिन शाम चार बजे क्रिसेंट एकेडमी बेरसराय पहुँचा । सिर बहुत भारी था और दिल दुख से तार तार। लियाक़त सर के सामने जाने की हिम्मत नही थी मेरी क्योकि सर को मुझसे बहुत उम्मीद थी। लियाकत सर क्लास लेने की तैयारी मे थे। मुझे भी पता था कि उनका क्लास लेने का बिलकुल मन नही था। मुझे याद है जब मै कोचिंग पहुँचा तो उनकी आँखों मे आँसू थे। ना मै कुछ बोल पाया और ना ही उन्होंने कुछ ज़्यादा कहा। रूँधे हुये गले से बस उन्होंने इतना कहा कि अभी एक चांस बाक़ी है और तुम कर सकते हो। मुझे तुम्हारी मेहनत पर खुद से ज़्यादा विश्वास है। सर की बातों से अचानक से पूरे माहौल मे एक ऊर्जा सी आ गई। वह दिन मै कभी नही भूल सकता , चौबीस घंटे की निराशा मेरे दिल दिमाग़ से चंद मिनटों मे दूर हो गई। मुझे लगा कि जब मेरे गुरू को मुझ पर इतना विश्वास है तो मुझे निराश होने की कोई जरूरत नही है। और मै फिर लग गया जी जान से आईएएस के अपने लास्ट चांस के लिये। केवल दस दिन बचे थे प्रिलिमनरी एग्ज़ाम मे ।
रॉबर्ट ब्राउनिंग ने कहीं कहा था कि “यू वर आलवेज ए फाइटर एंड लेट इट बी योर लास्ट एंड द बेस्ट फाइट “ बस यही एक ही बात दिल मे घर कर गयी उस दिन ।
“लड़ो की यह लड़ाई अंतिम है ,
लड़ो कि यह लड़ाई बेहतरीन होगी “
वो साल बहुत ही अच्छा था और मैने खूब मेहनत की थी। दिन रात केवल किताबें और किताबें। मानो दिल से हारने का डर ही चला गया था। दिल मे बस यही ख़याल था कि जब भगवान ने यहाँ तक पहुँचाया है , तो जो भी होगा अच्छा ही होगा। लियाक़त सर का मार्गदर्शन और कृष्णमोहन, युनुस और चंदन कुशवाहा जैसे होनहार दोस्तों के साथ बैठकर दिन रात की पढ़ाई। मेहनत भागीरथ से कम नही की थी हमने ।
6 मई 2010 को जब रिज़ल्ट आया तो हम सभी सफल थे। जिस तरह भागीरथ की गंगा से पूरी सृष्टि पवित्र हो गई थी , उसी तरह मुझे लगा कि उस सफलता ने मेरे चार वर्षों की असफलता के दुख को एक झटके मे ही धो दिया था। लियाक़त सर की आँखें इस बार भी नम थीं। पिताजी का फ़ोन इस बार भी आया था और भइया का मैसेज भी । मेरे आँसू इस बार भी नही रूक रहे थे। मेरे पास ऊपरवाले की ओर दिल की गहराइयों से देखने के अलावा और कोई विकल्प नही था ।
इलाहाबाद से दिल्ली आना सफल हो गया था मेरा और मै घर वापस ख़ाली हाथ नही जा रहा था । आज तक मैने खुद पर कभी गर्व नही किया है , लेकिन माता पिता के सपनों को सच करने का अहसास मेरे भीतर हमेशा एक गर्व की भावना का संचार करता है ....
▪️'इलाहाबाद ब्लूज' पुस्तक से,
अंजनी कुमार पांडेय
भारतीय राजस्व सेवा
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4 मई 2009 की तारीख़ थी और मै उस साल के सिविल सर्विसेज के फ़ाइनल रिज़ल्ट के लिये शाहजहाँ रोड धौलपुर हाउस के बाहर खड़ा था। बहुत सारे छात्र सुबह से ही आईएएस के फ़ाइनल रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहा थे। शाम 4 बजे रिज़ल्ट आया और मेरा नाम फ़ाइनल लिस्ट मे नही था। रात के 9 बजे चुके थे और मै अभी भी वहीं बैठा था। उन पाँच घंटों मे मैने कमसे कम पचास बार अपना रिज़ल्ट देखा कि शायद मेरा रोल नंबर हो उस लिस्ट मे। बहुत मेहनत की थी वहाँ तक पहुँचने के लिये और एक मिनट मे सब कुछ निकल गया हाथ से रेत की तरह। कुछ भी समझ नही आ रहा था ।
तभी पिताजी का फ़ोन आया और आवाज़ सुनकर ही मुझे पता चल गया था कि वह कितने ज़्यादा दुखी हुये थे । मै ज़्यादा कुछ बोल नही पाया। पिताजी ने कहा कि कोई बात नही , अगली बार और मेहनत करना । भारी मन से कुछ समय के बाद मैने एक ऑटो बुलाया और रात दस बजे मै मुखर्जीनगर पहुँचा। रूम पर जाने का मन नही किया तो चाय पीने के लिये बत्रा सिनेमा पर गया। चाय पीते पीते वो सारे दिन और वो सारी रातें जो मैने यहाँ तक पहुंचने मे लगाये थे सब तेज़ी से आँखों के सामने से घूम गये ।
दिल्ली आये तीन साल बीत चुके थे। मानो कल की ही बात हो। पता ही नही चला कि कब बीत गया इतना समय । केवल समय ही बीत रहा था और बाक़ी सब कुछ वैसा ही था। ठहरे हुये लोग , ठहरी हुई ज़िंदगी , वही क्लासेज , वही बत्रा सिनेमा और वही कटिंग चाय । कुछ नही बदला , सिवाय मेरे और लगातार मिलती मेरी असफलताओं के सिवा। जब पहली बार यहाँ आया था तो यही सब चीज़ें और यही सब जगह मुझे उत्साहित करते थे और मै सोचता था कि एक साल के भीतर ही सिविल सर्विसेज मे सफल हो
जाऊँगा। और आज असफल होने पर अब वही सब जगहें मुझे काटने को दौड़ रही हैं। रात मे भइया का मैसेज आया कि परेशान मत होना और खाने पीने का ध्यान रखना। वह रात कैसे कटी मुझे याद नही , कितने आँसू गिरे गिनती नही , इतना ही याद है कि उस रात मुझे नींद नही आई थी ।
अगले दिन शाम चार बजे क्रिसेंट एकेडमी बेरसराय पहुँचा । सिर बहुत भारी था और दिल दुख से तार तार। लियाक़त सर के सामने जाने की हिम्मत नही थी मेरी क्योकि सर को मुझसे बहुत उम्मीद थी। लियाकत सर क्लास लेने की तैयारी मे थे। मुझे भी पता था कि उनका क्लास लेने का बिलकुल मन नही था। मुझे याद है जब मै कोचिंग पहुँचा तो उनकी आँखों मे आँसू थे। ना मै कुछ बोल पाया और ना ही उन्होंने कुछ ज़्यादा कहा। रूँधे हुये गले से बस उन्होंने इतना कहा कि अभी एक चांस बाक़ी है और तुम कर सकते हो। मुझे तुम्हारी मेहनत पर खुद से ज़्यादा विश्वास है। सर की बातों से अचानक से पूरे माहौल मे एक ऊर्जा सी आ गई। वह दिन मै कभी नही भूल सकता , चौबीस घंटे की निराशा मेरे दिल दिमाग़ से चंद मिनटों मे दूर हो गई। मुझे लगा कि जब मेरे गुरू को मुझ पर इतना विश्वास है तो मुझे निराश होने की कोई जरूरत नही है। और मै फिर लग गया जी जान से आईएएस के अपने लास्ट चांस के लिये। केवल दस दिन बचे थे प्रिलिमनरी एग्ज़ाम मे ।
रॉबर्ट ब्राउनिंग ने कहीं कहा था कि “यू वर आलवेज ए फाइटर एंड लेट इट बी योर लास्ट एंड द बेस्ट फाइट “ बस यही एक ही बात दिल मे घर कर गयी उस दिन ।
“लड़ो की यह लड़ाई अंतिम है ,
लड़ो कि यह लड़ाई बेहतरीन होगी “
वो साल बहुत ही अच्छा था और मैने खूब मेहनत की थी। दिन रात केवल किताबें और किताबें। मानो दिल से हारने का डर ही चला गया था। दिल मे बस यही ख़याल था कि जब भगवान ने यहाँ तक पहुँचाया है , तो जो भी होगा अच्छा ही होगा। लियाक़त सर का मार्गदर्शन और कृष्णमोहन, युनुस और चंदन कुशवाहा जैसे होनहार दोस्तों के साथ बैठकर दिन रात की पढ़ाई। मेहनत भागीरथ से कम नही की थी हमने ।
6 मई 2010 को जब रिज़ल्ट आया तो हम सभी सफल थे। जिस तरह भागीरथ की गंगा से पूरी सृष्टि पवित्र हो गई थी , उसी तरह मुझे लगा कि उस सफलता ने मेरे चार वर्षों की असफलता के दुख को एक झटके मे ही धो दिया था। लियाक़त सर की आँखें इस बार भी नम थीं। पिताजी का फ़ोन इस बार भी आया था और भइया का मैसेज भी । मेरे आँसू इस बार भी नही रूक रहे थे। मेरे पास ऊपरवाले की ओर दिल की गहराइयों से देखने के अलावा और कोई विकल्प नही था ।
इलाहाबाद से दिल्ली आना सफल हो गया था मेरा और मै घर वापस ख़ाली हाथ नही जा रहा था । आज तक मैने खुद पर कभी गर्व नही किया है , लेकिन माता पिता के सपनों को सच करने का अहसास मेरे भीतर हमेशा एक गर्व की भावना का संचार करता है ....
▪️'इलाहाबाद ब्लूज' पुस्तक से,
अंजनी कुमार पांडेय
भारतीय राजस्व सेवा
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