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हरे कृष्ण
मंगलवार, *अन्नदा/अजा एकादशी*

*पारणा:* बुधवार सुबह
6:19 से 10:33 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:33 से 10:42 राजकोट, जामनगर, द्वारका

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युधिष्ठिर ने पूछा: जनार्दन ! अब मैं यह सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपद (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार श्रावण) मास के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? कृपया बताइये।


भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! एकचित्त होकर सुनो। भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘अजा’ है। वह सब पापों का नाश करनेवाली बतायी गयी है। भगवान ह्रषीकेश का पूजन करके जो इसका व्रत करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।


पूर्वकाल में हरिश्चन्द्र नामक एक विख्यात चक्रवर्ती राजा हो गये हैं, जो समस्त भूमण्डल के स्वामी और सत्यप्रतिज्ञ थे। एक समय किसी कर्म का फलभोग प्राप्त होने पर उन्हें राज्य से भ्रष्ट होना पड़ा। राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया। फिर अपने को भी बेच दिया। पुण्यात्मा होते हुए भी उन्हें चाण्डाल की दासता करनी पड़ी। वे मुर्दों का कफन लिया करते थे। इतने पर भी नृपश्रेष्ठ हरिश्चन्द्र सत्य से विचलित नहीं हुए।


इस प्रकार चाण्डाल की दासता करते हुए उनके अनेक वर्ष व्यतीत हो गये। इससे राजा को बड़ी चिन्ता हुई। वे अत्यन्त दु:खी होकर सोचने लगे: ‘क्या करुँ? कहाँ जाऊँ? कैसे मेरा उद्धार होगा?’ इस प्रकार चिन्ता करते-करते वे शोक के समुद्र में डूब गये।


राजा को शोकातुर जानकर महर्षि गौतम उनके पास आये। श्रेष्ठ ब्राह्मण को अपने पास आया हुआ देखकर नृपश्रेष्ठ ने उनके चरणों में प्रणाम किया और दोनों हाथ जोड़ गौतम के सामने खड़े होकर अपना सारा दु:खमय समाचार कह सुनाया।


राजा की बात सुनकर महर्षि गौतम ने कहा:‘राजन् ! भादों के कृष्णपक्ष में अत्यन्त कल्याणमयी ‘अजा’ नाम की एकादशी आ रही है, जो पुण्य प्रदान करनेवाली है। इसका व्रत करो। इससे पाप का अन्त होगा। तुम्हारे भाग्य से आज के सातवें दिन एकादशी है। उस दिन उपवास करके रात में जागरण करना।’ ऐसा कहकर महर्षि गौतम अन्तर्धान हो गये।


मुनि की बात सुनकर राजा हरिश्चन्द्र ने उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा सारे दु:खों से पार हो गये। उन्हें पत्नी पुन: प्राप्त हुई और पुत्र का जीवन मिल गया। आकाश में दुन्दुभियाँ बज उठीं। देवलोक से फूलों की वर्षा होने लगी।


एकादशी के प्रभाव से राजा ने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और अन्त में वे पुरजन तथा परिजनों के साथ स्वर्गलोक को प्राप्त हो गये।


राजा युधिष्ठिर ! जो मनुष्य ऐसा व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में जाते हैं। इसके पढ़ने और सुनने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।
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ॠषि के ये वचन सुनकर राजा अपने घर लौट आये। उन्होंने चारों वर्णों की समस्त प्रजा के साथ भादों के शुक्लपक्ष की ‘पद्मा एकादशी’ का व्रत किया। इस प्रकार व्रत करने पर मेघ पानी बरसाने लगे। पृथ्वी जल से आप्लावित हो गयी और हरी भरी खेती से सुशोभित होने लगी। उस व्रत के प्रभाव से सब लोग सुखी हो गये।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन्! इस कारण इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए। ‘पद्मा एकादशी’ के दिन जल से भरे हुए घड़े को वस्त्र से ढकँकर दही और चावल के साथ ब्राह्मण को दान देना चाहिए, साथ ही छाता और जूता भी देना चाहिए। दान करते समय निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए:

नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक ॥
अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव।
भुक्तिमुक्तिप्रदश्चैव लोकानां सुखदायकः ॥

‘बुधवार और श्रवण नक्षत्र के योग से युक्त द्वादशी के दिन बुद्धश्रवण नाम धारण करनेवाले भगवान गोविन्द! आपको नमस्कार है… नमस्कार है! मेरी पापराशि का नाश करके आप मुझे सब प्रकार के सुख प्रकार के सुख प्रदान करें। आप पुण्यात्माजनों को भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले तथा सुखदायक हैं।’

राजन्! इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।
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यदि हम भगवद गीता और श्रीमद भागवतम् की परवाह नहीं करते, तो हमें नहीं पता कि अगला शरीर कैसा होगा। लेकिन यदि कोई इन दोनों ग्रंथों - भगवद गीता और श्रीमद भागवतम् - का पालन करता है, तो उसे अगले जन्म में *कृष्ण का सानिध्य अवश्य प्राप्त होगा* (त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन [भ.गी. 4.9])। अतः, श्रीमद भागवतम् का विश्व भर में वितरण धर्मशास्त्रियों, दार्शनिकों, अध्यात्मवादियों और योगियों (योगिनामपि सर्वेषाम् [भ.गी. 6.47]) के साथ-साथ सामान्य जनों के लिए भी एक महान कल्याणकारी कार्य है। (श्रीमद् भागवतम् 10.12.7-11 तात्पर्य)
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તા:- ૭/૯/૨૦૨૫ રવિવારે રાત્રે ચંદ્ર ગ્રહણ હોવાથી બધાજ ભક્તોએ રાત્રે ૮:૦૦ વાગ્યા સુધીમાં ભોજન પ્રસાદ લઈ લેવો. તથા ઘર અને મંદિર માં દર્ભ ( ડાભ ) મુકી દેવો. અને ભગવાન ને શયન કરાવી દેવું. અને પછી શક્ય હોય ત્યાં સુધી જપ કીર્તન કરવા. સવારે ઉઠીને મંદિર , ઘર માર્જન કરી નિત્ય કર્મ કરવું. હરે કૃષ્ણ 🙏
हरे कृष्ण
*बुधवार, इंदिरा एकादशी*
पारणा (व्रत छोड़ने का समय): गुरुवार सुबह
6:27 से 10:29 (वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात)
6:42 से 10:39 (राजकोट, जामनगर, द्वारका)

एकादशी के दिन भगवान के नाम की अधिक माला करें और गीता, भागवत पढ़ें।

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*इंदिरा एकादशी*
युधिष्ठिर ने पूछा : हे मधुसूदन ! कृपा करके मुझे यह बताइये कि आश्विन के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ?

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! आश्विन (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार भाद्रपद) के कृष्णपक्ष में ‘इन्दिरा’ नाम की एकादशी होती है। उसके व्रत के प्रभाव से बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। नीच योनि में पड़े हुए पितरों को भी यह एकादशी सदगति देनेवाली है।

राजन् ! पूर्वकाल की बात है। सत्ययुग में इन्द्रसेन नाम से विख्यात एक राजकुमार थे, जो माहिष्मतीपुरी के राजा होकर धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करते थे। उनका यश सब ओर फैल चुका था।

राजा इन्द्रसेन भगवान विष्णु की भक्ति में तत्पर हो गोविन्द के मोक्षदायक नामों का जप करते हुए समय व्यतीत करते थे और विधिपूर्वक अध्यात्मतत्त्व के चिन्तन में संलग्न रहते थे। एक दिन राजा राजसभा में सुखपूर्वक बैठे हुए थे, इतने में ही देवर्षि नारद आकाश से उतरकर वहाँ आ पहुँचे। उन्हें आया हुआ देख राजा हाथ जोड़कर खड़े हो गये और विधिपूर्वक पूजन करके उन्हें आसन पर बिठाया। इसके बाद वे इस प्रकार बोले: ‘मुनिश्रेष्ठ ! आपकी कृपा से मेरी सर्वथा कुशल है। आज आपके दर्शन से मेरी सम्पूर्ण यज्ञ क्रियाएँ सफल हो गयीं। देवर्षे ! अपने आगमन का कारण बताकर मुझ पर कृपा करें।
नारदजी ने कहा : नृपश्रेष्ठ ! सुनो। मेरी बात तुम्हें आश्चर्य में डालनेवाली है। मैं ब्रह्मलोक से यमलोक में गया था। वहाँ एक श्रेष्ठ आसन पर बैठा और यमराज ने भक्तिपूर्वक मेरी पूजा की। उस समय यमराज की सभा में मैंने तुम्हारे पिता को भी देखा था। वे व्रतभंग के दोष से वहाँ आये थे। राजन् ! उन्होंने तुमसे कहने के लिए एक सन्देश दिया है, उसे सुनो। उन्होंने कहा है: ‘बेटा ! मुझे ‘इन्दिरा एकादशी’ के व्रत का पुण्य देकर स्वर्ग में भेजो।’ उनका यह सन्देश लेकर मैं तुम्हारे पास आया हूँ। राजन् ! अपने पिता को स्वर्गलोक की प्राप्ति कराने के लिए ‘इन्दिरा एकादशी’ का व्रत करो।

राजा ने पूछा : भगवन् ! कृपा करके ‘इन्दिरा एकादशी’ का व्रत बताइये। किस पक्ष में, किस तिथि को और किस विधि से यह व्रत करना चाहिए।

नारदजी ने कहा : राजेन्द्र ! सुनो। मैं तुम्हें इस व्रत की शुभकारक विधि बतलाता हूँ। आश्विन मास के कृष्णपक्ष में दशमी के उत्तम दिन को श्रद्धायुक्त चित्त से प्रतःकाल स्नान करो। फिर मध्याह्नकाल में स्नान करके एकाग्रचित्त हो एक समय भोजन करो तथा रात्रि में भूमि पर सोओ। रात्रि के अन्त में निर्मल प्रभात होने पर एकादशी के दिन दातुन करके मुँह धोओ। इसके बाद भक्तिभाव से निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए उपवास का नियम ग्रहण करो :

अघ स्थित्वा निराहारः सर्वभोगविवर्जितः।
श्वो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत ॥

‘कमलनयन भगवान नारायण ! आज मैं सब भोगों से अलग हो निराहार रहकर कल भोजन करुँगा। अच्युत ! आप मुझे शरण दें |’

इस प्रकार नियम करके मध्याह्नकाल में पितरों की प्रसन्नता के लिए शालग्राम शिला के सम्मुख विधिपूर्वक श्राद्ध करो तथा दक्षिणा से ब्राह्मणों का सत्कार करके उन्हें भोजन कराओ। पितरों को दिये हुए अन्नमय पिण्ड को सूँघकर गाय को खिला दो। फिर धूप और गन्ध आदि से भगवान ह्रषिकेश का पूजन करके रात्रि में उनके समीप जागरण करो। तत्पश्चात् सवेरा होने पर द्वादशी के दिन पुनः भक्तिपूर्वक श्रीहरि की पूजा करो। उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर भाई बन्धु, नाती और पुत्र आदि के साथ स्वयं मौन होकर भोजन करो।
राजन् ! इस विधि से आलस्यरहित होकर यह व्रत करो। इससे तुम्हारे पितर भगवान विष्णु के वैकुण्ठधाम में चले जायेंगे।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजन् ! राजा इन्द्रसेन से ऐसा कहकर देवर्षि नारद अन्तर्धान हो गये। राजा ने उनकी बतायी हुई विधि से अन्त: पुर की रानियों, पुत्रों और भृत्योंसहित उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया।

कुन्तीनन्दन ! व्रत पूर्ण होने पर आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। इन्द्रसेन के पिता गरुड़ पर आरुढ़ होकर श्रीविष्णुधाम को चले गये और राजर्षि इन्द्रसेन भी निष्कण्टक राज्य का उपभोग करके अपने पुत्र को राजसिंहासन पर बैठाकर स्वयं स्वर्गलोक को चले गये। इस प्रकार मैंने तुम्हारे सामने ‘इन्दिरा एकादशी’ व्रत के माहात्म्य का वर्णन किया है। इसको पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।
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Happy Vyasa Puja Guru Maharaj!
Today: 80th Vyasa Puja of HH Bhakti Charu Swami Guru Maharaj

On this auspicious occasion of the 80th Vyasa Puja of HH Bhakti Charu Swami Guru Maharaj, we bow down in gratitude. Maharaj, through his profound devotion and service, gifted the world the historic Abhay Charan TV series, translated and published Śrīla Prabhupāda's books in Hindi, and established wonderful temples like ISKCON Ujjain, inspiring countless souls to take shelter of Śrīla Prabhupāda and Lord Krsna.
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2025/10/20 04:00:51
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