Forwarded from Srila Prabhupada Wisdom (Gaurangas Group🙇 ~ ISKCON Vadodara)
हरे कृष्ण
सोमवार, *कामिका एकादशी*
*पारणा:* मंगलवार सुबह
6:08 से 7:08 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:22 से 7:08 राजकोट, जामनगर, द्वारका
*Whatsapp*
https://chat.whatsapp.com/K1pBwij2tzZD60F5JxlmWw
युधिष्ठिर ने पूछा: गोविन्द! वासुदेव! आपको मेरा नमस्कार है! श्रावण (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आषाढ़) के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? कृपया उसका वर्णन कीजिये।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! सुनो। मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था।
नारदजी ने प्रश्न किया: हे भगवन्! हे कमलासन! मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रवण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभो! यह सब बताइये।
ब्रह्माजी ने कहा: नारद! सुनो। मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ। श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है। उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है। सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से भी मिलता है।
जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं।
जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियों सहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाले को मिलता है। जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है।
अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके ‘कामिका एकादशी’ के दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए। जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसार समुद्र में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए ‘कामिका एकादशी’ का व्रत सबसे उत्तम है। अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है, उससे बहुत अधिक फल ‘कामिका एकादशी’ व्रत का सेवन करनेवालों को मिलता है।
‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी भयंकर यमदूत का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है।
लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं। जिसने तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है।
या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम:॥
‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है।’
जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते। एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं। घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है।’
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर! यह तुम्हारे सामने मैंने ‘कामिका एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया है। ‘कामिका’ सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए। यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करनेवाली है। जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है।
सोमवार, *कामिका एकादशी*
*पारणा:* मंगलवार सुबह
6:08 से 7:08 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:22 से 7:08 राजकोट, जामनगर, द्वारका
*Whatsapp*
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युधिष्ठिर ने पूछा: गोविन्द! वासुदेव! आपको मेरा नमस्कार है! श्रावण (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आषाढ़) के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? कृपया उसका वर्णन कीजिये।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! सुनो। मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था।
नारदजी ने प्रश्न किया: हे भगवन्! हे कमलासन! मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रवण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभो! यह सब बताइये।
ब्रह्माजी ने कहा: नारद! सुनो। मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ। श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है। उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है। सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से भी मिलता है।
जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं।
जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियों सहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाले को मिलता है। जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है।
अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके ‘कामिका एकादशी’ के दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए। जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसार समुद्र में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए ‘कामिका एकादशी’ का व्रत सबसे उत्तम है। अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है, उससे बहुत अधिक फल ‘कामिका एकादशी’ व्रत का सेवन करनेवालों को मिलता है।
‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी भयंकर यमदूत का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है।
लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं। जिसने तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है।
या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम:॥
‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है।’
जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते। एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं। घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है।’
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर! यह तुम्हारे सामने मैंने ‘कामिका एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया है। ‘कामिका’ सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए। यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करनेवाली है। जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है।
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Forwarded from Srila Prabhupada Wisdom (Gaurangas Group🙇 ~ ISKCON Vadodara)
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*इस चातुर्मास व्रत में क्या करें और क्या न करें*
*चातुर्मास में हमें क्या करना चाहिए?*
* सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
* प्रातः सूर्योदय से पहले जप करें।
* नियमित दिनों की तुलना में अधिक माला जपें।
* चार महीनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करें।
* अपनी क्षमता के अनुसार मंदिर में दान दें।
* श्रीमद्भागवतम् की प्रार्थनाएँ पढ़ें - (गजेंद्र मोक्ष लीला, कुंती महारानी की प्रार्थनाएँ, गोपी गीत)
* कृष्ण ग्रंथ, भगवद्गीता और श्रीमद्भागवतम् से बाल लीला का पाठ और ध्यान करें।
* इन चार महीनों में पड़ने वाली आठ एकादशियों का कड़ाई से पालन करना चाहिए।
* तुलसी महारानी की पूजा करनी चाहिए और उनकी परिक्रमा करनी चाहिए।
* भगवान को तुलसी के पत्ते अर्पित करने चाहिए।
* व्यक्ति को वैष्णव सेवा में संलग्न होना चाहिए (उन्हें प्रसाद के लिए आमंत्रित करें, उनके साथ जप करें और उनके साथ अन्य आध्यात्मिक गतिविधियाँ करें)
* इस चातुर्मास्य में श्रील प्रभुपाद की कम से कम एक पुस्तक पढ़ने का लक्ष्य रखें।
* अर्थ सहित वैष्णव भजन पढ़ें।
* तीर्थ यात्रा अवश्य करें।
* इस कृष्णभावनामृत आंदोलन में सहायता और प्रचार हेतु ज़िम्मेदारी से सेवा करें।
* सोने से पहले प्रतिदिन कृष्ण की प्रार्थना करें और उन्हें धन्यवाद दें।
*चातुर्मास में हमें क्या नहीं करना चाहिए?*
* चार नियमों (मांसाहार निषेध, जुआ निषेध, नशा निषेध, अवैध यौन संबंध निषेध) का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
* दूसरों की आलोचना नहीं करनी चाहिए।
* बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए, बल्कि उचित बिस्तर बिछाकर ज़मीन पर सो सकते हैं।
* अत्यधिक नींद से बचना चाहिए।
* चातुर्मास में कुछ शुभ कार्य वर्जित हैं, जैसे- विवाह समारोह, ज़मीन खरीदना आदि।
*चातुर्मास में हमें क्या करना चाहिए?*
* सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
* प्रातः सूर्योदय से पहले जप करें।
* नियमित दिनों की तुलना में अधिक माला जपें।
* चार महीनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करें।
* अपनी क्षमता के अनुसार मंदिर में दान दें।
* श्रीमद्भागवतम् की प्रार्थनाएँ पढ़ें - (गजेंद्र मोक्ष लीला, कुंती महारानी की प्रार्थनाएँ, गोपी गीत)
* कृष्ण ग्रंथ, भगवद्गीता और श्रीमद्भागवतम् से बाल लीला का पाठ और ध्यान करें।
* इन चार महीनों में पड़ने वाली आठ एकादशियों का कड़ाई से पालन करना चाहिए।
* तुलसी महारानी की पूजा करनी चाहिए और उनकी परिक्रमा करनी चाहिए।
* भगवान को तुलसी के पत्ते अर्पित करने चाहिए।
* व्यक्ति को वैष्णव सेवा में संलग्न होना चाहिए (उन्हें प्रसाद के लिए आमंत्रित करें, उनके साथ जप करें और उनके साथ अन्य आध्यात्मिक गतिविधियाँ करें)
* इस चातुर्मास्य में श्रील प्रभुपाद की कम से कम एक पुस्तक पढ़ने का लक्ष्य रखें।
* अर्थ सहित वैष्णव भजन पढ़ें।
* तीर्थ यात्रा अवश्य करें।
* इस कृष्णभावनामृत आंदोलन में सहायता और प्रचार हेतु ज़िम्मेदारी से सेवा करें।
* सोने से पहले प्रतिदिन कृष्ण की प्रार्थना करें और उन्हें धन्यवाद दें।
*चातुर्मास में हमें क्या नहीं करना चाहिए?*
* चार नियमों (मांसाहार निषेध, जुआ निषेध, नशा निषेध, अवैध यौन संबंध निषेध) का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
* दूसरों की आलोचना नहीं करनी चाहिए।
* बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए, बल्कि उचित बिस्तर बिछाकर ज़मीन पर सो सकते हैं।
* अत्यधिक नींद से बचना चाहिए।
* चातुर्मास में कुछ शुभ कार्य वर्जित हैं, जैसे- विवाह समारोह, ज़मीन खरीदना आदि।
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Gaurangas Children class Gorwa Baroda 🤩
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🦁 Mahavatar Narasimha – The Best of the Best 🔥
A film that’s not just watched… it’s felt.
Powerful visuals, divine storytelling, and a message that awakens the soul. 🕊️
This isn’t just a movie — it’s an experience of Lord Narasimha’s glory! 🙌
If you haven’t seen it yet, don’t miss it.
And if you have… you already know why it’s unforgettable. 💥
Jai Narasimhadev
#iskcondesiretree #mahavtarnarshima #spiritualmovie #narshimadev #devotio #cinéma #krishnaconsciousness🎀♥️🙌🏻 #bhaktireels #everyframe #spiritualreel #vaishnava #bhaktireels
Have you seen this movie ?
https://www.instagram.com/reel/DMkDcoAtnjz/?igsh=Z2ZmMWZoMGIxdHk3
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https://www.instagram.com/reel/DMrv0kqhS8D/?igsh=ZG5wNHRvZ21qN3g4
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🕊️ "Is Brahmacharya necessary for Bhakti?"
A question many seekers ask...
In this reel, HH Bhakti Prem Swami Maharaj Ji lovingly shares deep wisdom on the real essence of spiritual life. 💛
Bhakti is not limited by ashram — it is deepened by sincerity.
Whether you’re a brahmachari, grihastha, or student… it’s the purity of intent and dedication to Krishna that counts. 🌸
🎧 Listen with your heart.
🙏 Tag a seeker who needs this clarity today.
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🔔 कार्तिक 84 कोष वृंदावन यात्रा -आक्टूबर 2025 📢
💫🌟💫🌟💫🌟💫🌟💫
👉 प्रस्थान: 24/10/2025
👉 वापसी: 31/10/2025
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📌 ७० से ज्यादा स्थानों का भ्रमन, जिसमे गोवर्धन, मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, बरसाना, इत्यादि बहुत सारी जगह पर जाने का मौका।
📌 पूर्ण व्रज मंडल परिक्रमा हम कार/बस में करेंगे।
📌 इस व्रज मंडल परिक्रमा में छोटे से छोटे स्थानों को शामिल किया जाएगा।
📌 हर स्थान की कथा एवम महिमा बताई जाएगी, पूर्ण समय कीर्तन का आनंद प्रदान किया जाएगा।
🏧 लक्ष्मीसेवा:
नॉन ए.सी. ट्रेन 12499/- व्यक्ति
ए.सी. ट्रेन 13499/- व्यक्ति
(ट्रेन टिकिट, गेस्ट हॉउस, प्रसाद, बस)
ट्रेन बिना : 11599/- व्यक्ति
5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए यह यात्रा निःशुल्क है
🎯 नाम देने के लिए अंतिम दिनांक: 01/08/2025
💺 *कुछ सीटें बची हैं*
🏃♂️ *जल्दी करें!!!* ®️ *अभी रजिस्टर करें*
📌 Advance: 4000/- per person
📌 Google pay 7600156255
👉 अपना नाम को रजिस्टर करने के लिए कृपा कर नीचे देय गूगल फॉर्म को भरे
गूगल फॉर्म लिंक :- https://forms.gle/ujxNC2MKY418yrLF8
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👉और यात्रा संबंधी जानकारी के लिए हमे कॉल करे
+91 82005 03703
+91 79902 00618
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👉 प्रस्थान: 24/10/2025
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(ट्रेन टिकिट, गेस्ट हॉउस, प्रसाद, बस)
ट्रेन बिना : 11599/- व्यक्ति
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हरे कृष्ण
मंगलवार, *पवित्रोत्पन्न एकादशी*
*पारणा:* बुधवार सुबह
6:14 से 10:33 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:28 से 10:42 राजकोट, जामनगर,
https://www.instagram.com/reel/DM7EzDnh9Eb/?igsh=dG10cXdzbzlpbjQ0
*Whatsapp Group*
https://chat.whatsapp.com/HgOlzbi11kA8FnRO8gMIvw
युधिष्ठिर ने पूछा: मधुसूदन! श्रावण के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? कृपया मेरे सामने उसका वर्णन कीजिये।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! प्राचीन काल की बात है। द्वापर युग के प्रारम्भ का समय था। माहिष्मतीपुर में राजा महीजित अपने राज्य का पालन करते थे किन्तु उन्हें कोई पुत्र नहीं था, इसलिए वह राज्य उन्हें सुखदायक नहीं प्रतीत होता था। अपनी अवस्था अधिक देख राजा को बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने प्रजावर्ग में बैठकर इस प्रकार कहा: ‘प्रजाजनो! इस जन्म में मुझसे कोई पातक नहीं हुआ है। मैंने अपने खजाने में अन्याय से कमाया हुआ धन नहीं जमा किया है। ब्राह्मणों और देवताओं का धन भी मैंने कभी नहीं लिया है। पुत्रवत् प्रजा का पालन किया है। धर्म से पृथ्वी पर अधिकार जमाया है। दुष्टों को, चाहे वे बन्धु और पुत्रों के समान ही क्यों न रहे हों, दण्ड दिया है। शिष्ट पुरुषों का सदा सम्मान किया है और किसीको द्वेष का पात्र नहीं समझा है। फिर क्या कारण है, जो मेरे घर में आज तक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ? आप लोग इसका विचार करें।’
राजा के ये वचन सुनकर प्रजा और पुरोहितों के साथ ब्राह्मणों ने उनके हित का विचार करके गहन वन में प्रवेश किया। राजा का कल्याण चाहनेवाले वे सभी लोग इधर उधर घूमकर ॠषिसेवित आश्रमों की तलाश करने लगे। इतने में उन्हें मुनिश्रेष्ठ लोमशजी के दर्शन हुए।
लोमशजी धर्म के त्तत्त्वज्ञ, सम्पूर्ण शास्त्रों के विशिष्ट विद्वान, दीर्घायु और महात्मा हैं। उनका शरीर लोम से भरा हुआ है। वे ब्रह्माजी के समान तेजस्वी हैं। एक एक कल्प बीतने पर उनके शरीर का एक एक लोम विशीर्ण होता है, टूटकर गिरता है, इसीलिए उनका नाम लोमश हुआ है। वे महामुनि तीनों कालों की बातें जानते हैं।
उन्हें देखकर सब लोगों को बड़ा हर्ष हुआ। लोगों को अपने निकट आया देख लोमशजी ने पूछा: ‘तुम सब लोग किसलिए यहाँ आये हो? अपने आगमन का कारण बताओ। तुम लोगों के लिए जो हितकर कार्य होगा, उसे मैं अवश्य करुँगा।’
प्रजाजनों ने कहा: ब्रह्मन्! इस समय महीजित नामवाले जो राजा हैं, उन्हें कोई पुत्र नहीं है। हम लोग उन्हींकी प्रजा हैं, जिनका उन्होंने पुत्र की भाँति पालन किया है। उन्हें पुत्रहीन देख, उनके दु:ख से दु:खित हो हम तपस्या करने का दृढ़ निश्चय करके यहाँ आये है। द्विजोत्तम! राजा के भाग्य से इस समय हमें आपका दर्शन मिल गया है। महापुरुषों के दर्शन से ही मनुष्यों के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। मुने! अब हमें उस उपाय का उपदेश कीजिये, जिससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हो।
उनकी बात सुनकर महर्षि लोमश दो घड़ी के लिए ध्यानमग्न हो गये। तत्पश्चात् राजा के प्राचीन जन्म का वृत्तान्त जानकर उन्होंने कहा: ‘प्रजावृन्द! सुनो। राजा महीजित पूर्वजन्म में मनुष्यों को चूसनेवाला धनहीन वैश्य था। वह वैश्य गाँव-गाँव घूमकर व्यापार किया करता था। एक दिन ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में दशमी तिथि को, जब दोपहर का सूर्य तप रहा था, वह किसी गाँव की सीमा में एक जलाशय पर पहुँचा। पानी से भरी हुई बावली देखकर वैश्य ने वहाँ जल पीने का विचार किया। इतने में वहाँ अपने बछड़े के साथ एक गौ भी आ पहुँची। वह प्यास से व्याकुल और ताप से पीड़ित थी, अत: बावली में जाकर जल पीने लगी। वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हाँककर दूर हटा दिया और स्वयं पानी पीने लगा। उसी पापकर्म के कारण राजा इस समय पुत्रहीन हुए हैं। किसी जन्म के पुण्य से इन्हें निष्कण्टक राज्य की प्राप्ति हुई है।’
प्रजाजनों ने कहा: मुने! पुराणों में उल्लेख है कि प्रायश्चितरुप पुण्य से पाप नष्ट होते हैं, अत: ऐसे पुण्यकर्म का उपदेश कीजिये, जिससे उस पाप का नाश हो जाय।
लोमशजी बोले: प्रजाजनो! श्रावण मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, वह ‘पुत्रदा’ के नाम से विख्यात है। वह मनोवांछित फल प्रदान करनेवाली है। तुम लोग उसीका व्रत करो।
यह सुनकर प्रजाजनों ने मुनि को नमस्कार किया और नगर में आकर विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ के व्रत का अनुष्ठान किया। उन्होंने विधिपूर्वक जागरण भी किया और उसका निर्मल पुण्य राजा को अर्पण कर दिया। तत्पश्चात् रानी ने गर्भधारण किया और प्रसव का समय आने पर बलवान पुत्र को जन्म दिया।
इसका माहात्म्य सुनकर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है तथा इहलोक में सुख पाकर परलोक में स्वर्गीय गति को प्राप्त होता है।
मंगलवार, *पवित्रोत्पन्न एकादशी*
*पारणा:* बुधवार सुबह
6:14 से 10:33 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:28 से 10:42 राजकोट, जामनगर,
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युधिष्ठिर ने पूछा: मधुसूदन! श्रावण के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? कृपया मेरे सामने उसका वर्णन कीजिये।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! प्राचीन काल की बात है। द्वापर युग के प्रारम्भ का समय था। माहिष्मतीपुर में राजा महीजित अपने राज्य का पालन करते थे किन्तु उन्हें कोई पुत्र नहीं था, इसलिए वह राज्य उन्हें सुखदायक नहीं प्रतीत होता था। अपनी अवस्था अधिक देख राजा को बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने प्रजावर्ग में बैठकर इस प्रकार कहा: ‘प्रजाजनो! इस जन्म में मुझसे कोई पातक नहीं हुआ है। मैंने अपने खजाने में अन्याय से कमाया हुआ धन नहीं जमा किया है। ब्राह्मणों और देवताओं का धन भी मैंने कभी नहीं लिया है। पुत्रवत् प्रजा का पालन किया है। धर्म से पृथ्वी पर अधिकार जमाया है। दुष्टों को, चाहे वे बन्धु और पुत्रों के समान ही क्यों न रहे हों, दण्ड दिया है। शिष्ट पुरुषों का सदा सम्मान किया है और किसीको द्वेष का पात्र नहीं समझा है। फिर क्या कारण है, जो मेरे घर में आज तक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ? आप लोग इसका विचार करें।’
राजा के ये वचन सुनकर प्रजा और पुरोहितों के साथ ब्राह्मणों ने उनके हित का विचार करके गहन वन में प्रवेश किया। राजा का कल्याण चाहनेवाले वे सभी लोग इधर उधर घूमकर ॠषिसेवित आश्रमों की तलाश करने लगे। इतने में उन्हें मुनिश्रेष्ठ लोमशजी के दर्शन हुए।
लोमशजी धर्म के त्तत्त्वज्ञ, सम्पूर्ण शास्त्रों के विशिष्ट विद्वान, दीर्घायु और महात्मा हैं। उनका शरीर लोम से भरा हुआ है। वे ब्रह्माजी के समान तेजस्वी हैं। एक एक कल्प बीतने पर उनके शरीर का एक एक लोम विशीर्ण होता है, टूटकर गिरता है, इसीलिए उनका नाम लोमश हुआ है। वे महामुनि तीनों कालों की बातें जानते हैं।
उन्हें देखकर सब लोगों को बड़ा हर्ष हुआ। लोगों को अपने निकट आया देख लोमशजी ने पूछा: ‘तुम सब लोग किसलिए यहाँ आये हो? अपने आगमन का कारण बताओ। तुम लोगों के लिए जो हितकर कार्य होगा, उसे मैं अवश्य करुँगा।’
प्रजाजनों ने कहा: ब्रह्मन्! इस समय महीजित नामवाले जो राजा हैं, उन्हें कोई पुत्र नहीं है। हम लोग उन्हींकी प्रजा हैं, जिनका उन्होंने पुत्र की भाँति पालन किया है। उन्हें पुत्रहीन देख, उनके दु:ख से दु:खित हो हम तपस्या करने का दृढ़ निश्चय करके यहाँ आये है। द्विजोत्तम! राजा के भाग्य से इस समय हमें आपका दर्शन मिल गया है। महापुरुषों के दर्शन से ही मनुष्यों के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। मुने! अब हमें उस उपाय का उपदेश कीजिये, जिससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हो।
उनकी बात सुनकर महर्षि लोमश दो घड़ी के लिए ध्यानमग्न हो गये। तत्पश्चात् राजा के प्राचीन जन्म का वृत्तान्त जानकर उन्होंने कहा: ‘प्रजावृन्द! सुनो। राजा महीजित पूर्वजन्म में मनुष्यों को चूसनेवाला धनहीन वैश्य था। वह वैश्य गाँव-गाँव घूमकर व्यापार किया करता था। एक दिन ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में दशमी तिथि को, जब दोपहर का सूर्य तप रहा था, वह किसी गाँव की सीमा में एक जलाशय पर पहुँचा। पानी से भरी हुई बावली देखकर वैश्य ने वहाँ जल पीने का विचार किया। इतने में वहाँ अपने बछड़े के साथ एक गौ भी आ पहुँची। वह प्यास से व्याकुल और ताप से पीड़ित थी, अत: बावली में जाकर जल पीने लगी। वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हाँककर दूर हटा दिया और स्वयं पानी पीने लगा। उसी पापकर्म के कारण राजा इस समय पुत्रहीन हुए हैं। किसी जन्म के पुण्य से इन्हें निष्कण्टक राज्य की प्राप्ति हुई है।’
प्रजाजनों ने कहा: मुने! पुराणों में उल्लेख है कि प्रायश्चितरुप पुण्य से पाप नष्ट होते हैं, अत: ऐसे पुण्यकर्म का उपदेश कीजिये, जिससे उस पाप का नाश हो जाय।
लोमशजी बोले: प्रजाजनो! श्रावण मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, वह ‘पुत्रदा’ के नाम से विख्यात है। वह मनोवांछित फल प्रदान करनेवाली है। तुम लोग उसीका व्रत करो।
यह सुनकर प्रजाजनों ने मुनि को नमस्कार किया और नगर में आकर विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ के व्रत का अनुष्ठान किया। उन्होंने विधिपूर्वक जागरण भी किया और उसका निर्मल पुण्य राजा को अर्पण कर दिया। तत्पश्चात् रानी ने गर्भधारण किया और प्रसव का समय आने पर बलवान पुत्र को जन्म दिया।
इसका माहात्म्य सुनकर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है तथा इहलोक में सुख पाकर परलोक में स्वर्गीय गति को प्राप्त होता है।
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Ekadashi Jhulan yatra Darshan 🙏🥰
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The injunction of all Vedic literature ~Srila Prabhupada
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Hare Krishna, Hope this video will be helpful for allThank you so much for watching----------------------------------------------------------LIKE | COMMENT ...
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व्रज मंडल परिक्रमा (वृंदावन)
व्रज-मंडल-धाम
व्रज मंडल परिक्रमा उत्तर प्रदेश और राजस्थान के मथुरा नगर के चारों ओर 84 किलोमीटर (168 मील) तक फैली हुई है। यह श्री श्री राधा कृष्ण और उनके सखाओं की लीला स्थली है। जब भी "स्वयं भगवान" श्रीकृष्ण इस भौतिक लोक में अवतरित होते हैं, तो वे अपने धाम, अपने सखाओं और अन्य साज-सज्जा को अपने साथ ले आते हैं। इसलिए श्री व्रज, श्री गोलोक वृंदावन से भिन्न नहीं है जहाँ वे वास्तव में निवास करते हैं।
Vraj Mandal Parikrama (Vrindavan)
Vraja-Mandala-Dhama
Vraj Mandal Parikrama covers the parts of Uttar Pradesh and Rajasthan spread over 84 kilometres (168 miles) around the city of Mathura. It is the pastime place of Sri Sri Radha Krishna and their associates. Whenever “Svayam Bhagvan” Sri Krishna descends to this material plane, He brings His abode, His associates and other paraphernalia along with Him. Therefore Sri Vraja is non different from Sri Golok Vrindavan where He actually resides.
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Forwarded from Srila Prabhupada Wisdom (Gaurangas Group🙇 ~ ISKCON Vadodara)
*Countdown starts for Registration*
🔔 कार्तिक 84 कोष वृंदावन यात्रा -आक्टूबर 2025 📢
💫🌟💫🌟💫🌟💫🌟💫
👉 प्रस्थान: 24/10/2025
👉 वापसी: 31/10/2025
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📌 ७० से ज्यादा स्थानों का भ्रमन, जिसमे गोवर्धन, मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, बरसाना, इत्यादि बहुत सारी जगह पर जाने का मौका।
📌 पूर्ण व्रज मंडल परिक्रमा हम कार/बस में करेंगे।
📌 इस व्रज मंडल परिक्रमा में छोटे से छोटे स्थानों को शामिल किया जाएगा।
📌 हर स्थान की कथा एवम महिमा बताई जाएगी, पूर्ण समय कीर्तन का आनंद प्रदान किया जाएगा।
🏧 लक्ष्मीसेवा:
नॉन ए.सी. ट्रेन 12499/- व्यक्ति
ए.सी. ट्रेन 13499/- व्यक्ति
(ट्रेन टिकिट, गेस्ट हॉउस, प्रसाद, बस)
ट्रेन बिना : 11599/- व्यक्ति
5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए यह यात्रा निःशुल्क है
🎯 नाम देने के लिए अंतिम दिनांक: 01/08/2025
💺 *कुछ सीटें बची हैं*
🏃♂️ *जल्दी करें!!!* ®️ *अभी रजिस्टर करें*
📌 Advance: 4000/- per person
📌 Google pay 7600156255
👉 अपना नाम को रजिस्टर करने के लिए कृपा कर नीचे देय गूगल फॉर्म को भरे
गूगल फॉर्म लिंक :- https://forms.gle/ujxNC2MKY418yrLF8
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👉और यात्रा संबंधी जानकारी के लिए हमे कॉल करे
+91 82005 03703
+91 79902 00618
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Today’s Mangal Darshan🙏🙌
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