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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

भाए जो निगाह को
वही रंग अच्छा...
लाए जो राह पर वही ढंग अच्छा..
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे


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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

🌷🌷जय श्री सीताराम जी 🌷🌷
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(पुरानी पोस्ट)
सरलता सबसे अधिक कठिन है। सरल स्वभाव, इतना सरल जो सरलता से विश्वास कर ले। एक और भक्त की बात है। वह घर में रहता, घरवाले उससे बड़े परेशान थे; क्योंकि वह कुछ नहीं करता, केवल खाता था, बस। खूब खाये और पड़ा रहे। अच्छा खूब खायेगा तो करेगा क्या? जहाँ खाये, वही लुढ़क जाय।
घरवालों ने कहा-- निकल जाओ यहाँ से। दो ढाई सेर खाते हो एक बार में बैठकर, काम कुछ करते नहीं । विचारा अब जाये कहाँ, सो एक महात्मा दिखाई दिये मन्दिर के भाहर बैठे । महात्मा बड़े तंदुरुस्त, महात्मा होते ही हैं प्रसन्न, अपने मस्त।
उसने सोचा कि यह खूब खाते होंगे तब तो इतने तंदुरुस्त और मोटे हैं। वह गया, बोला-- महाराज! तब तक उनके दो चार चेले निकले, वह लोग भी ऐसे ही। अरे बोले-- यहाँ तो सब ऐसे ही ऐसे हैं। वह बोला-- महाराज! हमको भी चेला बना लो। महात्मा बोले-- रहो, मन्त्र दे दिया। तुलसी माला पहना दी, नाम रख दिया। काम कुछ नहीं, बस भगवान की पूजा आरती में खड़े रहा करो, राम-राम किया करो। बोले-- पंगत? कहा-- दो समय होती है खूब प्रेम से करो। बोले-- दो पंगत में? •••तुम चार पंगत में बैठो कोई हर्ज नहीं ।
उसको लगा, यह बड़ा अच्छा, खूब खाने को मिलना, कुछ करना है नहीं । मंदिर में ही रह गया, पर उसे क्या पता कि यहाँ भी मुसीबत आयेगी। एक दिन सवेरे से कुछ बने ही नहीं। भंडार में सब ऐसे ही चूल्हे पड़े ठंडे, कुछ नहीं ।
महाराज! आज कुछ बन नहीं रहा? •••अरे! बोले-- तुम्हें पता नहीं आज एकादशी है। तो बोले-- एकादशी का मतलब? बोले-- न कुछ बनेगा, न कुछ मिलेगा। तो वह बोला-- हमको भी नहीं मिलेगा? •••हाँ, तुम्हें भी। बोला-- चेला बहुत हैं उनसे कराओ, हमको काहे को? बोले-- नहीं, वह तो करना ही पड़ेगा।
तो वह बोला-- हमें आज एकादशी करा दी, तो हम द्वादशी देख ही नहीं पायेंगे ।आज ही शाम तक समाप्त । महात्मा बोले -- भाई बहुत कठिनाई है। •••महाराज! मैं भोजन के विना नहीं रह सकता। महात्मा बोले-- तो आश्रम में तो बनेगा नहीं, तुम बना लोगे? अरे बोले-- मरता क्या नहीं करता? हम सब बना लेंगे। महात्मा बोले-- जाओ भंडार से सामग्री ले लो। अब उसने ढाई सेर आटा, आलू, नमक, कुछ मसाला, घी जो कुछ चाहिए था लिया। महात्मा बोले-- देखो, तुम वैष्णव हो गये हो, वैसे तो नहीं बनाना चाहिए भोजन, लेकिन चलो प्रसाद बुद्धि से ग्रहण करना। भगवान को भोग लगाना। •••ठीक है महाराज ।
जल्दी-जल्दी में उसने सामान समेटा। कहा-- वहाँ जाना नदी के किनारे पेड़ के नीचे। •••हाँ। पहुंच गया और जैसा बना विचारे से वैसा भोजन बनाया। आलू का चोखा और गुड़, घी सब तैयार करके खाना ही चाहता था, भूख और लग आई । रोज तो बना बनाया मिलता था, आज बनाना पड़ा। अब याद आया, गुरु जी ने कहा था-- भगवान को भोग लगा लेना, और इतना सरल, तुरंत बुलाने लगा--

राजा राम आइये, प्रभु राम आइये।
मेरे भोजन का भोग लगाइये।

नहीं आये भगवान। तो क्या बोला?

आचमनी अरधान आरती यहाँ यही मेहमानी।
रूखी रोटी पाओ प्रेम से पियो नदी का पानी।
राजा राम आइये, प्रभु राम आइये।
मेरे भोजन का भोग लगाइये।

बोले-- यहाँ तो नदी का पानी है, रूखी रोटी है, आना है तो जल्दी आ जाओ, हमको भूख लग रही है।•••भगवान नहीं आये। बोला-- पूड़ी और पकौड़ी भगवन सेवक ने न बनाई, और मिठाई तो है नहीं, फिर भी नहीं आये भगवान ।
एक सरलता से बात कही, उस पर रीझ गये भगवान । बोले-- सुनो ! हम समझ गये इसलिए नहीं आ रहे हो कि रूखी रोटी खाने काहे को जायँ, नदी का पानी पीने। मंदिर में तरह-तरह के व्यंजन मिलेंगे। तो बोला-- भगवान ! धोखे में मत रहना, वहाँ से तो जान बचा के हम ही आये हैं।

भूल करोगे यदि तज दोगे, भोजन रूखे सूखे।
एकादशी आज मंदिर में बैठे रहोगे भूखे।
राजा राम आइये, प्रभु राम आइये।
मेरे भोजन का भोग लगाइये।

मंदिर में एकादशी है, यहीं आ जाओ। इस सरलता पर-- मम भरोस--- कि भगवान आयेंगे । भगवान प्रकट हो गये।
(क्रमशः)
(स्वामी श्री राजेश्वरानंद जी महाराज)
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. पाँच दिन पाँच महापर्वो में पहला दिन 👇

‘धनतेरस’

उत्तरी भारत में कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन यह पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरी का जन्म हुआ था। इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है।
धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे, तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी क्योंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।
कहीं-कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोई बर्तन खरीदें। इसके पीछे यह कारण माना जाता है, कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है, जो शीतलता प्रदान करता है, और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है।
सन्तोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास सन्तोष है, वह स्वस्थ है, सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं, उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए सन्तोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आँगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे, जिनका नाम हेम था।
दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई, तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा, उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा।
राजा इस बात को जानकर बहुत दु:खी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहाँ किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी, और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये, और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया, और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुँचे।
जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे, उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा।
यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की–‘हे यमराज ! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है, जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए ?’
दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले–‘हे दूत ! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है। इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूँ, सो सुनो।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।’ यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें। कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मीजी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया।
तब विष्णुजी ने कहा–‘यदि मैं जो बात कहूँ तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो।’ तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान ली और भगवान विष्णु के साथ भूमण्डल पर आ गयीं।
कुछ देर बाद एक जगह पर पहुँचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी से कहा–‘जब तक मैं न आऊँ तुम यहाँ ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ, तुम उधर मत आना।’
विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतूहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।
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लक्ष्मीजी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे।
सरसों की शोभा देखकर वह मन्त्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मीजी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं। उसी क्षण विष्णुजी आए और यह देख लक्ष्मीजी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया।
विष्णुजी ने कहा–‘मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए।’ तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।
एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा–‘तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो माँगोगी मिलेगा।’
किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया।’
लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनन्द से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं। विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इन्कार कर दिया।
तब भगवान ने किसान से कहा–‘इन्हें कौन जाने देता है, यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है।’
किसान हठपूर्वक बोला–‘नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूँगा।’
लक्ष्मीजी ने कहा–‘हे किसान! तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूँ वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक ताँबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना, मैं उस कलश में निवास करूँगी। किन्तु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूँगी। इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊँगी।’
यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।

‘पूजन विधि’

धनतेरस की पूजा दीपावली के पहले कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान धनवन्तरि की पूजा की जाती है साथ ही यमराज के लिए घर के बाहर दीप जला कर रखा जाता है जिसे यम दीप कहते हैं।
कहा जाता है की यमराज के लिए दीप जलने से अकाल मृत्यु का भय नष्ट हो जाता है। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें। ऐसा कहा जाता है कि देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मन्थन के बाद, धनवन्तरी जी, अमृत के कलश हाथ मे धारण किये हुए समुद्र से बाहर आए थे। इस कारण धनतेरस को धनवन्तरी जयन्ती भी कहा जाता है।
धनतेरस के इस शुभ दिन पर, देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है और प्रार्थना की जाती है कि भकजनों पर माँ हमेशा समृद्धि और सुख की वर्षा करते रहे । इस दिन भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की मूर्तियों भी बाजार से खरीदी जाती है जिसका पूजन दीवाली के दिन किया जाता है।
धनतेरस पूजा में सबसे पहले संध्या को यम दीप की पूजा की जाती है उसके बाद भगवान धन्वन्तरि की पूजा होती है और फिर गणेश लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

यम दीप पूजन विधि

चौकी को धो कर सुखा लें। उस चौकी के बीचोंबीच रोली घोल कर 卐(स्वास्तिक या सतिया) बनायें। इस 卐(स्वास्तिक या सतिया) पर सरसों तेल का दीपक (गेहूँ के आटे से बना हुआ) जलायें। उस दीपक में छेद वाली कौड़ी को डाल दें।
दीपक के चारों ओर गंगा जल से तीन बार छींटा दें। इसके बाद हाथ में रोली लें और रोली से दीपक पर तिलक लगायें। रोली पर चावल लगायें। फिर दीपक के अन्दर थोड़ी चीनी/शक्कर डाल दें। इसके बाद एक रुपए का सिक्का दीपक के अन्दर डाल दें। दीपक पर फूल समर्पित करें। सभी उपस्थित जन दीपक को हाथ जोड़कर प्रणाम करें–‘हे यमदेव हमारे घर पर अपनी दयादृष्टि बनाये रखना और परिवार के सभी सदस्यों की रक्षा करना।’ फिर सभी सदस्यों को तिलक लगाएँ। इसके बाद दीपक को उठा कर घर के मुख्य दरवाजे के बाहर दाहिनी ओर रख दे–दीपक का लौ दक्षिण दिशा की ओर होनी चाहिए।

‘धन्वन्तरि पूजन विधि’
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यम दीप की पूजा के बाद धन्वन्तरि पूजा की जाती है।
पूजा घर में बैठ कर धूप, दीप (घी का दीया मिट्टी की दीये में), अक्षत, चन्दन और नैवेद्य के द्वारा भगवान धन्वन्तरि का पूजन करें। पूजन के बाद धन्वन्तरि के मंत्र का 108 बार जप करें:- “ॐ धं धन्वन्तरये नमः”
जाप के पूर्ण करने के बाद दोनों हाथों को जोड़कर प्रार्थना करें–‘हे भगवान धन्वन्तरि ये जाप मैं आपके चरणों में समर्पित करता हूँ। कृप्या हमें उत्तम स्वास्थ प्रदान करे।’
धन्वन्तरि की पूजा हो जाने पर अन्त में लक्ष्मीजी का घी का दीपक जला कर पूजन करें ताकि श्रीलक्ष्मीजी की कृपा अदृश्य रूप में आपके घर परिवार पर वर्षभर बनी रहे।

‘आवश्यक सामग्री’

एक आटे का दीपक, तीन मिट्टी के दीपक (धन्वन्तरि, यम और लक्ष्मी जी के लिये), बत्ती रूई की, सरसों का तेल/घी, माचिस, एक छेद वाली कौड़ी, फूल, चावल, रोली, गंगाजल, चम्मच, चीनी/शक्कर, आसन, मिठाई/नैवैद्य, धूप और धूपदान तथा एक चौकी।
० ० ०

॥जय जय श्री राधे॥
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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

🌺 आज का सुविचार 🌺

अधेरा वहां नहीं है
जहां तन गरीब है
अंधेरा वहां है
जहां मन गरीब है


🙇‍♂ जय श्री कृष्णा 🙇‍♂
🙏 सुप्रभात 🙏

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जय श्री गणेश जी की जय
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🌺 आज का सुविचार 🌺

जीवन वो फूल है,
जिसमें कांटे तो बहुत है,
मगर सौन्दर्य
की भी कोई कमी नहीं

🙇‍♂ जय श्री कृष्णा 🙇‍♂
🙏 सुप्रभात 🙏

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🪔 दिपावली के बाद भी चंद दीपक 🪔
जला के रखना......🌹‼️

एक दीपक आस का
एक दीपक विश्वास का
एक दीपक प्रेम का
एक दीपक शांति का
एक दीपक मुस्कुराहट का
एक दीपक अपनों के साथ का
एक दीपक स्वास्थ का
एक दीपक भाईचारे का
एक दीपक बड़ों के आशीर्वाद का
एक दीपक छोटों के दुलार का
एक दीपक निस्वार्थ सेवा का...!!!💓

इन ग्यारह दीपको के साथ बिताना अगले ग्यारह महीने, फिर दीपावली आ जाएगी। फिर नए दीपक जला लेना...🌹🙏‼️

🙏🌹*एक बार पुनः दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...🙏🌹*

🚩🌷🪔🌹😊🙏🏻🌼🌼🙏🏻😊🌹🪔🌷🚩
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Happy Diwali
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हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

कबीर मन तो एक है, भावै तहाँ लगाव
भावै हरि भक्ति करै, भावै विषय कमाव
.
संत कबीर जी कहते हैं कि मन तो एक ही है, जहाँ अच्छा लगे वहाँ लगा लो।
चाहे हरि भक्ति करो, चाहे विषय विकार कमाओ।
.
दूसरे शब्दों में..
सब के पास एक ही तो मन है, जिन्हें प्रभु भक्ति भाती है, अच्छी लगती है, वह भक्ति में ही लीन रहते हैं..
.
और जिन्हें विषय-विकार भाते हैं वे हर समय उन्हीं में ही उलझे रहते हैं।
.
Bhakti Kathayen भक्ति कथायें.
~~~~~
((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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Happy bhayi dooj
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Om namah shivay
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2025/07/02 02:29:28
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