हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
🌺 आज का सुविचार 🌺
शब्द यात्रा करते हैं
इसलिए पीठ पीछे भी,
किसी की निंदा न करें
🙇♂ जय श्री कृष्णा 🙇♂
🙏 सुप्रभात 🙏
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
via @ChannelPKBot
🌺 आज का सुविचार 🌺
शब्द यात्रा करते हैं
इसलिए पीठ पीछे भी,
किसी की निंदा न करें
🙇♂ जय श्री कृष्णा 🙇♂
🙏 सुप्रभात 🙏
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
via @ChannelPKBot
📚फोल्डर मैं अपना चैनल ऐड करवाने के लिए मेसेज करे_👉 @Helpersoyalhelper
🙋♀🙋♂किस विषय का नोट्स चाहिए क्लिक करके ग्रुप जॉइन करे👇
🙋♀🙋♂किस विषय का नोट्स चाहिए क्लिक करके ग्रुप जॉइन करे👇
. दिनांक 24.10.2024 दिन गुरुवार तदनुसार संवत् २०८१ कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आने वाला व्रत–
“अहोई अष्टमी”
अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं, और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोई माता का पूजन किया जाता है। तारों को करवा से अर्ध्य भी दिया जाता है।
यह अहोई गेरू आदि के द्वारा दीवार पर बनाई जाती है, अथवा किसी मोटे वस्त्र पर अहोई काढ़कर पूजा के समय उसे दीवार पर टांग दिया जाता है।
अहोई अष्टमी का व्रत महिलायें अपनी सन्तान की रक्षा और दीर्घ आयु के लिए रखती हैं। इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध प्रदर्शन किया जाता है।
अहोई माता
अहोई माता के चित्रांकन में ज़्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियाँ बना दी जाती हैं। उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है।
सम्पन्न घर की महिलाएँ चांदी की अहोई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोई माता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात् एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है।
पूजन विधि
01. अहोई अष्टमी व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी सन्तान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूँ, ऐसा संकल्प करें।
02. अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे। माता पार्वती की पूजा करें।
03. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएँ और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएँ।
04. संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें।
05. अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे सेह या स्याहु कहते हैं। इस सेह की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें।
06. पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं।
07. पूजा के पश्चात् सासू-मां के पैर छूएं और उनका आर्शीवाद प्राप्त करें।
08. तारों की पूजा करें और जल चढ़ायें तथा इसके पश्चात् व्रती अन्न जल ग्रहण करें।
“अहोई अष्टमी व्रत कथाएँ”
(अहोई अष्टमी व्रत की दो लोक कथाएँ प्रचलित हैं)
प्रथम कथा
प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी।
दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दु:ख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था ? वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।
कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यन्त व्यथित रहने लगी।
एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पाने के लिये हमारे फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को फॉलो और लाईक करें तथा हमारा व्हाट्सएप चैनल ज्वॉइन करें। चैनल का लिंक हमारी फेसबुक पर देखें। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात् मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई।
यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा।
साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।
द्वितीय कथा
“अहोई अष्टमी”
अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं, और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोई माता का पूजन किया जाता है। तारों को करवा से अर्ध्य भी दिया जाता है।
यह अहोई गेरू आदि के द्वारा दीवार पर बनाई जाती है, अथवा किसी मोटे वस्त्र पर अहोई काढ़कर पूजा के समय उसे दीवार पर टांग दिया जाता है।
अहोई अष्टमी का व्रत महिलायें अपनी सन्तान की रक्षा और दीर्घ आयु के लिए रखती हैं। इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध प्रदर्शन किया जाता है।
अहोई माता
अहोई माता के चित्रांकन में ज़्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियाँ बना दी जाती हैं। उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है।
सम्पन्न घर की महिलाएँ चांदी की अहोई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोई माता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात् एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है।
पूजन विधि
01. अहोई अष्टमी व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी सन्तान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूँ, ऐसा संकल्प करें।
02. अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे। माता पार्वती की पूजा करें।
03. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएँ और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएँ।
04. संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें।
05. अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे सेह या स्याहु कहते हैं। इस सेह की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें।
06. पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं।
07. पूजा के पश्चात् सासू-मां के पैर छूएं और उनका आर्शीवाद प्राप्त करें।
08. तारों की पूजा करें और जल चढ़ायें तथा इसके पश्चात् व्रती अन्न जल ग्रहण करें।
“अहोई अष्टमी व्रत कथाएँ”
(अहोई अष्टमी व्रत की दो लोक कथाएँ प्रचलित हैं)
प्रथम कथा
प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी।
दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दु:ख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था ? वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।
कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यन्त व्यथित रहने लगी।
एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पाने के लिये हमारे फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को फॉलो और लाईक करें तथा हमारा व्हाट्सएप चैनल ज्वॉइन करें। चैनल का लिंक हमारी फेसबुक पर देखें। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात् मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई।
यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा।
साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।
द्वितीय कथा
हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
प्राचीन काल में दतिया नगर में चन्द्रभान नाम का एक आदमी रहता था। उसकी बहुत सी सन्तानें थीं, परन्तु उसकी सन्तानें अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती थीं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दु:खी रहने लगे थे। कालान्तर तक कोई सन्तान न होने के कारण वह पति-पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुण्ड के पास पहुँचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न-जल का त्याग करके उपवास पर बैठ जाते हैं।
इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है–‘हे साहूकार! तुम्हें यह दु:ख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रहे हैं। अतः इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे प्रसन्न हो अहोई माता तुम्हें पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घ आयु का वरदान देंगी।’
इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा माँगते हैं। अहोई माँ प्रसन्न होकर उन्हें सन्तान की दीर्घायु का वरदान देती हैं। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पाने के लिये हमारे फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को फॉलो और लाईक करें तथा हमारा व्हाट्सएप चैनल ज्वॉइन करें। चैनल का लिंक हमारी फेसबुक पर देखें। आज के समय में भी संस्कारशील माताओं द्वारा जब अपनी सन्तान की इष्टकामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और सायंकाल अहोई माता की पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से इसका शुभफल उनको मिलता ही है और सन्तान चाहे पुत्र हो या पुत्री, उसको भी निष्कण्टक जीवन का सुख मिलता है।
अहोई अष्टमी उद्यापन विधि
जिस स्त्री का पुत्र न हो अथवा उसके पुत्र का विवाह हुआ हो, उसे उद्यापन अवश्य करना चाहिए। इसके लिए एक थाल में सात जगह चार-चार पूरियाँ एवं हलवा रखना चाहिए। इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी, ब्लाउज एवं रुपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए। उसकी सास को चाहिए कि वस्त्रादि को अपने पास रखकर शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पड़ोस में वितरित कर दे। यदि कोई कन्या हो तो उसके यहाँ भेज दे।
~०~
“जय अहोई माता”
************
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
प्राचीन काल में दतिया नगर में चन्द्रभान नाम का एक आदमी रहता था। उसकी बहुत सी सन्तानें थीं, परन्तु उसकी सन्तानें अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती थीं। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दु:खी रहने लगे थे। कालान्तर तक कोई सन्तान न होने के कारण वह पति-पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुण्ड के पास पहुँचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न-जल का त्याग करके उपवास पर बैठ जाते हैं।
इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है–‘हे साहूकार! तुम्हें यह दु:ख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रहे हैं। अतः इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे प्रसन्न हो अहोई माता तुम्हें पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घ आयु का वरदान देंगी।’
इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा माँगते हैं। अहोई माँ प्रसन्न होकर उन्हें सन्तान की दीर्घायु का वरदान देती हैं। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पाने के लिये हमारे फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को फॉलो और लाईक करें तथा हमारा व्हाट्सएप चैनल ज्वॉइन करें। चैनल का लिंक हमारी फेसबुक पर देखें। आज के समय में भी संस्कारशील माताओं द्वारा जब अपनी सन्तान की इष्टकामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और सायंकाल अहोई माता की पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से इसका शुभफल उनको मिलता ही है और सन्तान चाहे पुत्र हो या पुत्री, उसको भी निष्कण्टक जीवन का सुख मिलता है।
अहोई अष्टमी उद्यापन विधि
जिस स्त्री का पुत्र न हो अथवा उसके पुत्र का विवाह हुआ हो, उसे उद्यापन अवश्य करना चाहिए। इसके लिए एक थाल में सात जगह चार-चार पूरियाँ एवं हलवा रखना चाहिए। इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी, ब्लाउज एवं रुपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए। उसकी सास को चाहिए कि वस्त्रादि को अपने पास रखकर शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पड़ोस में वितरित कर दे। यदि कोई कन्या हो तो उसके यहाँ भेज दे।
“जय अहोई माता”
************
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
. कार्तिक माहात्म्य
अध्याय–01
नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी ने अठ्ठासी हजार शौनकादि ऋषियों से कहा–‘अब मैं आपको कार्तिक मास की कथा विस्तारपूर्वक सुनाता हूँ, जिसका श्रवण करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त समय में वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।’
सूतजी ने कहा–‘श्रीकृष्ण जी से अनुमति लेकर देवर्षि नारद के चले जाने के पश्चात सत्यभामा प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण से बोली।
सत्यभामा ने कहा–‘हे प्रभु! मैं धन्य हुई, मेरा जन्म सफल हुआ, मुझ जैसी त्रौलोक्य सुन्दरी के जन्मदाता भी धन्य हैं, जो आपकी सोलह हजार स्त्रियों के बीच में आपकी परम प्यारी पत्नी बनी। मैंने आपके साथ नारद जी को वह कल्पवृक्ष आदिपुरुष विधिपूर्वक दान में दिया, परन्तु वही कल्पवृक्ष मेरे घर लहराया करता है। यह बात मृत्युलोक में किसी स्त्री को ज्ञात नहीं है।
हे त्रिलोकीनाथ! मैं आपसे कुछ पूछने की इच्छुक हूँ। आप मुझे कृपया कार्तिक माहात्म्य की कथा विस्तार पूर्वक सुनाइये जिसको सुनकर मेरा हित हो और जिसके करने से कल्पपर्यन्त भी आप मुझसे विमुख न हों।’
सूतजी आगे बोले–‘सत्यभामा के ऎसे वचन सुनकर श्रीकृष्ण ने हँसते हुए सत्यभामा का हाथ पकड़ा और अपने सेवकों को वहीं रूकने के लिए कहकर विलासयुक्त अपनी पत्नी को कल्पवृक्ष के नीचे ले गये फिर हंसकर बोले।
श्रीकृष्ण ने कहा–‘हे प्रिये! सोलह हजार रानियों में से तुम मुझे प्राणों के समान प्यारी हो। तुम्हारे लिए मैंने इन्द्र एवं देवताओं से विरोध किया था। हे कान्ते! जो बात तुमने मुझसे पूछी है, उसे सुनो।
एक दिन मैंने (श्रीकृष्ण) तुम्हारी (सत्यभामा) इच्छापूर्ति के लिए गरुड़ पर सवार होकर इन्द्रलोक जाकर कल्पवृक्ष माँगा। इन्द्र द्वारा मना किये जाने पर इन्द्र एवं गरुड़ में घोर संग्राम हुआ और गौ लोक में भी गरुड़ जी गौओं से युद्ध किया।
गरुड़ की चोंच की चोट से उनके कान एवं पूंछ कटकर गिरने लगे जिससे तीन वस्तुएँ उत्पन्न हुई। कान से तम्बाकू, पूँछ से गोभी और रक्त से मेहंदी बनी। इन तीनों का प्रयोग करने वाले को मोक्ष नहीं मिलता।
तब गौओं ने भी क्रोधित होकर गरुड़ पर वार किया जिससे उनके तीन पंख टूटकर गिर गये। इनके पहले पंख से नीलकण्ठ, दूसरे से मोर और तीसरे से चकवा-चकवी उत्पन्न हुए। हे प्रिये! इन तीनों का दर्शन करने मात्र से ही शुभ फल प्राप्त हो जाता है।’ ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें।
यह सुनकर सत्यभामा ने कहा–‘हे प्रभो! कृपया मुझे मेरे पूर्व जन्मों के विषय में बताइए कि मैंने पूर्व जन्म में कौन-कौन से दान, व्रत व जप नहीं किए हैं। मेरा स्वभाव कैसा था, मेरे जन्मदाता कौन थे और मुझे मृत्युलोक में जन्म क्यों लेना पड़ा। मैंने ऐसा कौन सा पुण्य कर्म किया था जिससे मैं आपकी अर्द्धांगिनी हुई ?’
श्रीकृष्ण ने कहा–‘हे प्रिये! अब मै तुम्हारे द्वारा पूर्व जन्म में किये गये पुण्य कर्मों को विस्तार पूर्वक कहता हूँ, उसे सुनो।
पूर्व समय में सतयुग के अन्त में मायापुरी में अत्रिगोत्र में वेद-वेदान्त का ज्ञाता देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण निवास करता था। वह प्रतिदिन अतिथियों की सेवा, हवन और सूर्य भगवान का पूजन किया करता था। वह सूर्य के समान तेजस्वी था।
वृद्धावस्था में उसे गुणवती नामक कन्या की प्राप्ति हुई। उस पुत्रहीन ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह अपने ही चन्द्र नामक शिष्य के साथ कर दिया। वह चन्द्र को अपने पुत्र के समान मानता था और चन्द्र भी उसे अपने पिता की भाँति सम्मान देता था।
एक दिन वे दोनों कुश व समिधा लेने के लिए जंगल में गये। जब वे हिमालय की तलहटी में भ्रमण कर रहे थे, तब उन्हें एक राक्षस आता हुआ दिखाई दिया। उस राक्षस को देखकर भय के कारण उनके अंग शिथिल हो गये और वे वहाँ से भागने में भी असमर्थ हो गये।
तब उस काल के समान राक्षस ने उन दोनों को मार डाला। चूंकि वे धर्मात्मा थे इसलिए मेरे पार्षद उन्हें मेरे वैकुण्ठ धाम में मेरे पास ले आये। उन दोनों द्वारा आजीवन सूर्य भगवान की पूजा किये जाने के कारण मैं दोनों पर अति प्रसन्न हुआ।
गणेश जी, शिवजी, सूर्य व देवी–इन सबकी पूजा करने वाले मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मैं एक होता हुआ भी काल और कर्मों के भेद से पांच प्रकार का होता हूँ। जैसे–एक देवदत्त, पिता, भ्राता, आदि नामों से पुकारा जाता है।
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
. कार्तिक माहात्म्य
अध्याय–01
नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी ने अठ्ठासी हजार शौनकादि ऋषियों से कहा–‘अब मैं आपको कार्तिक मास की कथा विस्तारपूर्वक सुनाता हूँ, जिसका श्रवण करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त समय में वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।’
सूतजी ने कहा–‘श्रीकृष्ण जी से अनुमति लेकर देवर्षि नारद के चले जाने के पश्चात सत्यभामा प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण से बोली।
सत्यभामा ने कहा–‘हे प्रभु! मैं धन्य हुई, मेरा जन्म सफल हुआ, मुझ जैसी त्रौलोक्य सुन्दरी के जन्मदाता भी धन्य हैं, जो आपकी सोलह हजार स्त्रियों के बीच में आपकी परम प्यारी पत्नी बनी। मैंने आपके साथ नारद जी को वह कल्पवृक्ष आदिपुरुष विधिपूर्वक दान में दिया, परन्तु वही कल्पवृक्ष मेरे घर लहराया करता है। यह बात मृत्युलोक में किसी स्त्री को ज्ञात नहीं है।
हे त्रिलोकीनाथ! मैं आपसे कुछ पूछने की इच्छुक हूँ। आप मुझे कृपया कार्तिक माहात्म्य की कथा विस्तार पूर्वक सुनाइये जिसको सुनकर मेरा हित हो और जिसके करने से कल्पपर्यन्त भी आप मुझसे विमुख न हों।’
सूतजी आगे बोले–‘सत्यभामा के ऎसे वचन सुनकर श्रीकृष्ण ने हँसते हुए सत्यभामा का हाथ पकड़ा और अपने सेवकों को वहीं रूकने के लिए कहकर विलासयुक्त अपनी पत्नी को कल्पवृक्ष के नीचे ले गये फिर हंसकर बोले।
श्रीकृष्ण ने कहा–‘हे प्रिये! सोलह हजार रानियों में से तुम मुझे प्राणों के समान प्यारी हो। तुम्हारे लिए मैंने इन्द्र एवं देवताओं से विरोध किया था। हे कान्ते! जो बात तुमने मुझसे पूछी है, उसे सुनो।
एक दिन मैंने (श्रीकृष्ण) तुम्हारी (सत्यभामा) इच्छापूर्ति के लिए गरुड़ पर सवार होकर इन्द्रलोक जाकर कल्पवृक्ष माँगा। इन्द्र द्वारा मना किये जाने पर इन्द्र एवं गरुड़ में घोर संग्राम हुआ और गौ लोक में भी गरुड़ जी गौओं से युद्ध किया।
गरुड़ की चोंच की चोट से उनके कान एवं पूंछ कटकर गिरने लगे जिससे तीन वस्तुएँ उत्पन्न हुई। कान से तम्बाकू, पूँछ से गोभी और रक्त से मेहंदी बनी। इन तीनों का प्रयोग करने वाले को मोक्ष नहीं मिलता।
तब गौओं ने भी क्रोधित होकर गरुड़ पर वार किया जिससे उनके तीन पंख टूटकर गिर गये। इनके पहले पंख से नीलकण्ठ, दूसरे से मोर और तीसरे से चकवा-चकवी उत्पन्न हुए। हे प्रिये! इन तीनों का दर्शन करने मात्र से ही शुभ फल प्राप्त हो जाता है।’ ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें।
यह सुनकर सत्यभामा ने कहा–‘हे प्रभो! कृपया मुझे मेरे पूर्व जन्मों के विषय में बताइए कि मैंने पूर्व जन्म में कौन-कौन से दान, व्रत व जप नहीं किए हैं। मेरा स्वभाव कैसा था, मेरे जन्मदाता कौन थे और मुझे मृत्युलोक में जन्म क्यों लेना पड़ा। मैंने ऐसा कौन सा पुण्य कर्म किया था जिससे मैं आपकी अर्द्धांगिनी हुई ?’
श्रीकृष्ण ने कहा–‘हे प्रिये! अब मै तुम्हारे द्वारा पूर्व जन्म में किये गये पुण्य कर्मों को विस्तार पूर्वक कहता हूँ, उसे सुनो।
पूर्व समय में सतयुग के अन्त में मायापुरी में अत्रिगोत्र में वेद-वेदान्त का ज्ञाता देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण निवास करता था। वह प्रतिदिन अतिथियों की सेवा, हवन और सूर्य भगवान का पूजन किया करता था। वह सूर्य के समान तेजस्वी था।
वृद्धावस्था में उसे गुणवती नामक कन्या की प्राप्ति हुई। उस पुत्रहीन ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह अपने ही चन्द्र नामक शिष्य के साथ कर दिया। वह चन्द्र को अपने पुत्र के समान मानता था और चन्द्र भी उसे अपने पिता की भाँति सम्मान देता था।
एक दिन वे दोनों कुश व समिधा लेने के लिए जंगल में गये। जब वे हिमालय की तलहटी में भ्रमण कर रहे थे, तब उन्हें एक राक्षस आता हुआ दिखाई दिया। उस राक्षस को देखकर भय के कारण उनके अंग शिथिल हो गये और वे वहाँ से भागने में भी असमर्थ हो गये।
तब उस काल के समान राक्षस ने उन दोनों को मार डाला। चूंकि वे धर्मात्मा थे इसलिए मेरे पार्षद उन्हें मेरे वैकुण्ठ धाम में मेरे पास ले आये। उन दोनों द्वारा आजीवन सूर्य भगवान की पूजा किये जाने के कारण मैं दोनों पर अति प्रसन्न हुआ।
गणेश जी, शिवजी, सूर्य व देवी–इन सबकी पूजा करने वाले मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मैं एक होता हुआ भी काल और कर्मों के भेद से पांच प्रकार का होता हूँ। जैसे–एक देवदत्त, पिता, भ्राता, आदि नामों से पुकारा जाता है।
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
जब वे दोनों विमान पर आरुढ़ होकर सूर्य के समान तेजस्वी, रूपवान, चन्दन की माला धारण किये हुए मेरे भवन में आये तो वे दिव्य भोगों को भोगने लगे।
० ० ०
॥जय जय श्री हरि॥
************
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
जब वे दोनों विमान पर आरुढ़ होकर सूर्य के समान तेजस्वी, रूपवान, चन्दन की माला धारण किये हुए मेरे भवन में आये तो वे दिव्य भोगों को भोगने लगे।
० ० ०
॥जय जय श्री हरि॥
************
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
via @ChannelPKBot
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
via @ChannelPKBot
हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
#कार्तिक की कहानियाँ
🕉 लक्ष्मी जी की कथा 🕉
एक ब्राह्मण था रोज पीपल में जल चढ़ावे था। पीपल में से लड़की कहती पिताजी मैं तेरे साथ चलूँगी। ब्राह्मण सूखने लगा। ब्राह्मणी बोली–‘क्यों सूख रहे हो।’
ब्राह्मण बोला–‘पीपल में से एक लड़की कहती है, पिताजी मैं तेरे साथ चलूँगी।’
ब्राह्मणी बोली–‘कल ले आना जहाँ छः लड़की हैं वहाँ सातवीं सही।’ दूसरे दिन ब्राह्मण लड़की को ले आया। उस दिन वह आटा माँगने गया तो थैला भर-भर के मिला। ब्राह्मणी आटा छानने लगी तो लड़की बोली–‘माँ मैं छानूँगी।’
ब्राह्मणी बोली–‘ना बेटी पावनी, धोली-धोली हो जाएगी।’
लड़की बोली–‘ना, छानूँगी।’
उसने छाना, परात भर गई। ब्राह्मणी खाना बनाने लगी तब भी लड़की बोली–‘माँ मैं बनाऊँगी।’
माँ बोली–‘ना बेटी उँगली जल जाएगी।’
लड़की बोली–‘ना मैं ही बनाऊँगी।’
रसोई में गई, छत्तीस प्रकार के भोजन बनाए। सबको पेट भर-भर के खिला दिया और दिन तो भूखे रहे थे उस दिन पेट भर-भर के खाया। सबके खाने के बाद ब्राह्मणी का भाई आया।
भाई बोला–‘जीजी मुझे तो भूख लगी है। रोटी खाऊँगा।’ बहन सोचने लगी। सबने खा लिया अब कहाँ से खिलाऊँगी।
लड़की ने पूछा–‘माँ क्या बात है।’
‘तेरा मामा आया है रोटी खाएगा’–माँ ने कहा।
लड़की रसाई में गई। छत्तीस प्रकार के भोजन बनाए, लाकर मामा को जिमा दिया।
भाई बोला–‘जीजी ऐसा भोजन कभी न खाया जैसा आज खाया है।’
‘भाई तेरी पावनी भाँजी है उसने बनाया है’–ब्राह्मणी ने कहा। मामा खा के चला गया।
शाम हुई लड़की बोली–‘माँ चौका लगा के चौका का दीवा जला दिया, मैं कोठे में सोऊँगी।’
‘ना बेटी तू डर जाएगी’–माँ बोली।
‘ना माँ मैं कोठे में सोऊँगी।’ इतना कह कर लड़की कोठे में सो गयी।
आधी रात को उठी, चारों तरफ आँखें झपकायीं, धन ही धन हो गया। फिर लड़की जाने लगी। बाहर एक बूढ़ा ब्राह्मण सो रहा था।
ब्राह्मण बोला–‘बेटी तू कहाँ चली।’
वह बोली–‘मैं तो लक्ष्मी माता हूँ। इसके छः बेटी हैं। इसकी दरिद्रता दूर करने आई थी। तैने करवाना हो तू भी करवा ले।’ उसके घर में चारों तरफ आँख फिराई, धन ही धन हो गया।
सवेरे उठके ढूँढ मची पावनी बेटी कहाँ गई। बूढ़ा ब्राह्मण आकर बोला वो तो लक्ष्मी माता थी तेरे साथ-साथ मेरी भी दरिद्रता दूर कर गई।
जैसे लक्ष्मी माता ने उसकी दरिद्रता दूर की, सबकी दरिद्रता दूर करें।
० ० ०
॥जय लक्ष्मी माता॥
************
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
#कार्तिक की कहानियाँ
🕉 लक्ष्मी जी की कथा 🕉
एक ब्राह्मण था रोज पीपल में जल चढ़ावे था। पीपल में से लड़की कहती पिताजी मैं तेरे साथ चलूँगी। ब्राह्मण सूखने लगा। ब्राह्मणी बोली–‘क्यों सूख रहे हो।’
ब्राह्मण बोला–‘पीपल में से एक लड़की कहती है, पिताजी मैं तेरे साथ चलूँगी।’
ब्राह्मणी बोली–‘कल ले आना जहाँ छः लड़की हैं वहाँ सातवीं सही।’ दूसरे दिन ब्राह्मण लड़की को ले आया। उस दिन वह आटा माँगने गया तो थैला भर-भर के मिला। ब्राह्मणी आटा छानने लगी तो लड़की बोली–‘माँ मैं छानूँगी।’
ब्राह्मणी बोली–‘ना बेटी पावनी, धोली-धोली हो जाएगी।’
लड़की बोली–‘ना, छानूँगी।’
उसने छाना, परात भर गई। ब्राह्मणी खाना बनाने लगी तब भी लड़की बोली–‘माँ मैं बनाऊँगी।’
माँ बोली–‘ना बेटी उँगली जल जाएगी।’
लड़की बोली–‘ना मैं ही बनाऊँगी।’
रसोई में गई, छत्तीस प्रकार के भोजन बनाए। सबको पेट भर-भर के खिला दिया और दिन तो भूखे रहे थे उस दिन पेट भर-भर के खाया। सबके खाने के बाद ब्राह्मणी का भाई आया।
भाई बोला–‘जीजी मुझे तो भूख लगी है। रोटी खाऊँगा।’ बहन सोचने लगी। सबने खा लिया अब कहाँ से खिलाऊँगी।
लड़की ने पूछा–‘माँ क्या बात है।’
‘तेरा मामा आया है रोटी खाएगा’–माँ ने कहा।
लड़की रसाई में गई। छत्तीस प्रकार के भोजन बनाए, लाकर मामा को जिमा दिया।
भाई बोला–‘जीजी ऐसा भोजन कभी न खाया जैसा आज खाया है।’
‘भाई तेरी पावनी भाँजी है उसने बनाया है’–ब्राह्मणी ने कहा। मामा खा के चला गया।
शाम हुई लड़की बोली–‘माँ चौका लगा के चौका का दीवा जला दिया, मैं कोठे में सोऊँगी।’
‘ना बेटी तू डर जाएगी’–माँ बोली।
‘ना माँ मैं कोठे में सोऊँगी।’ इतना कह कर लड़की कोठे में सो गयी।
आधी रात को उठी, चारों तरफ आँखें झपकायीं, धन ही धन हो गया। फिर लड़की जाने लगी। बाहर एक बूढ़ा ब्राह्मण सो रहा था।
ब्राह्मण बोला–‘बेटी तू कहाँ चली।’
वह बोली–‘मैं तो लक्ष्मी माता हूँ। इसके छः बेटी हैं। इसकी दरिद्रता दूर करने आई थी। तैने करवाना हो तू भी करवा ले।’ उसके घर में चारों तरफ आँख फिराई, धन ही धन हो गया।
सवेरे उठके ढूँढ मची पावनी बेटी कहाँ गई। बूढ़ा ब्राह्मण आकर बोला वो तो लक्ष्मी माता थी तेरे साथ-साथ मेरी भी दरिद्रता दूर कर गई।
जैसे लक्ष्मी माता ने उसकी दरिद्रता दूर की, सबकी दरिद्रता दूर करें।
० ० ०
॥जय लक्ष्मी माता॥
************
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
*‼ श्रीर्जयति ‼*
*ह्र्दय_विचार*
श्री भगवत्या: राजराजेश्वर्या:
दारिद्रय रोग दुःखानि बंधन व्यसनानि च ।
आत्मापराध वृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् ।।
दरिद्रता, रोग, दुख, बंधन और विपदा आत्म-साक्षात्कार रूपी वृक्ष के फल हैं। मनुष्य को इन फलों का सेवन करना ही पड़ता है।
कोई भविष्य बता नही सकता अपितु जो कहा जाता है उसके चिंतन का क्रियान्वयन वह भविष्य बन जाता है।
बहुत से लोगों को आपने देखा होगा जो भविष्य बताने का दावा करते है और लोगों को लगता है कि क्या चमत्कार है, भविष्य कहीं कोई निर्धारित तो नहीं है ऐसा कोई बता नहीं सकता है। सत्य तो यह है की बताने वाले की कल्पना में इतनी शक्ति होती है कि वह भविष्य में घटित हो जाता है।
मनुष्य के तरंग ब्रह्मांड मे घूम रहे हैं, केवल मेरे ही नहीं वरन् हम सब के वैचारिक स्पन्दन ब्रह्मांड मे घूमते रहते हैं और अपने उद्देश्य को खोजते रहते हैं, जिस समय कोई अनुकूल स्थिति बनती है वह उपलब्ध हो जाते हैं।
इन स्पन्दनों की सीमा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण तक ही सीमित है इसके बाहर नहीं, गुरुत्वाकर्षण की वज़ह से यह ब्रह्मांड मे आगे नही बढ़ पाते और फिर से पृथ्वी तक लौट आते हैं, यह इतने सुक्ष्म होते हैं कि हम इन्हें देखने में असमर्थ होते हैं। पृथ्वी के गुरुत्व के कारण इन्हें फिर से लौटाना होता हैं ताकि फिर से संतुलित हो सके।
व्यक्ति की धारणा जितनी मजबूत होती है उतनी उसके घटित होने की संभावना बढ़ती रहती है, अगर धारणा में कोई संदेह है तो वह घटित नहीं होते, यह एक एसा विज्ञान है जो पृथ्वी के केवल गिने चुने लोगों को पता है अन्यथा वह लोगों को नियंत्रित करने लग सकते हैं इसीलिए ब्रह्मांड के ज्यादातर रहस्य आज भी सुलझे नहीं हैं और साधारण मनुष्यों की चेतना से बहुत दूर हैं।
सभी के सद्कर्म और भगवद्नाम स्मरण सहायक हों
प्रभु श्रीजी महाराज आपका सर्वमङ्गल करें।
*꧁!! जय श्रीजी की !!꧂*
*꧁!! जय शिवशम्भु !!꧂*
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
*‼ श्रीर्जयति ‼*
*ह्र्दय_विचार*
श्री भगवत्या: राजराजेश्वर्या:
दारिद्रय रोग दुःखानि बंधन व्यसनानि च ।
आत्मापराध वृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् ।।
दरिद्रता, रोग, दुख, बंधन और विपदा आत्म-साक्षात्कार रूपी वृक्ष के फल हैं। मनुष्य को इन फलों का सेवन करना ही पड़ता है।
कोई भविष्य बता नही सकता अपितु जो कहा जाता है उसके चिंतन का क्रियान्वयन वह भविष्य बन जाता है।
बहुत से लोगों को आपने देखा होगा जो भविष्य बताने का दावा करते है और लोगों को लगता है कि क्या चमत्कार है, भविष्य कहीं कोई निर्धारित तो नहीं है ऐसा कोई बता नहीं सकता है। सत्य तो यह है की बताने वाले की कल्पना में इतनी शक्ति होती है कि वह भविष्य में घटित हो जाता है।
मनुष्य के तरंग ब्रह्मांड मे घूम रहे हैं, केवल मेरे ही नहीं वरन् हम सब के वैचारिक स्पन्दन ब्रह्मांड मे घूमते रहते हैं और अपने उद्देश्य को खोजते रहते हैं, जिस समय कोई अनुकूल स्थिति बनती है वह उपलब्ध हो जाते हैं।
इन स्पन्दनों की सीमा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण तक ही सीमित है इसके बाहर नहीं, गुरुत्वाकर्षण की वज़ह से यह ब्रह्मांड मे आगे नही बढ़ पाते और फिर से पृथ्वी तक लौट आते हैं, यह इतने सुक्ष्म होते हैं कि हम इन्हें देखने में असमर्थ होते हैं। पृथ्वी के गुरुत्व के कारण इन्हें फिर से लौटाना होता हैं ताकि फिर से संतुलित हो सके।
व्यक्ति की धारणा जितनी मजबूत होती है उतनी उसके घटित होने की संभावना बढ़ती रहती है, अगर धारणा में कोई संदेह है तो वह घटित नहीं होते, यह एक एसा विज्ञान है जो पृथ्वी के केवल गिने चुने लोगों को पता है अन्यथा वह लोगों को नियंत्रित करने लग सकते हैं इसीलिए ब्रह्मांड के ज्यादातर रहस्य आज भी सुलझे नहीं हैं और साधारण मनुष्यों की चेतना से बहुत दूर हैं।
सभी के सद्कर्म और भगवद्नाम स्मरण सहायक हों
प्रभु श्रीजी महाराज आपका सर्वमङ्गल करें।
*꧁!! जय श्रीजी की !!꧂*
*꧁!! जय शिवशम्भु !!꧂*
Radhe Krishna ━━━━✧❂✧━━━━ ♡ ㅤ ❍ㅤ ⎙ㅤ ⌲ ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ