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ओम नमस्ते जी 🙏
आशा करता हू आप सभी का ब्रम्हचर्य बोहोत सही चल रहा होगा.
बोहोत समय से आपसे दुरी बानाये रखने के लिये क्षमा चाहता हु. 🙏 , पर फिर भी आप हमसे जुडे रहे ये देख आपको दिलं से शुक्रिया करता हू.

आने वाले समय में हम ये चॅनल की ओर से और समूह तक ब्रम्हचर्य के बारे मे प्रसार करेंगे यही हम सबका उद्देश होगा ! इसमे आप भी हम से जुडकर अपने परिवार एवं अपने मित्रो तक ब्रम्हचर्य का प्रसार करेंगे ये हमे भरोसा है.

विशेष सूचना :- जलदी ही admin और member की सिधी संभाषण ही सके ऐसा bot भी हम बना रहे हैं ताकी आपकी कोई परेशानी, शंका या किसी अनुभव को हम अपने सभी subscribers se साझा कर सकते हैं.
इस एक बिंदु वीर्यरक्षा को अपने जीवन का हिस्सा बना लो । फिर बाकी समस्त बिंदु अपने आप ठीक हो जाएँगी ।
*इतिहासबोध🦁🚩*

*हिन्दू नववर्ष (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) के दिन का ऐतिहासिक महत्व—*

*इसी दिन परमात्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।*

*प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।*

*शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।*

*महाराज युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।*

*सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।*

*न्याय दर्शन प्रणेता महर्षि गौतम जयंती।*

*सिख पंथ के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है।*

*ऋषि दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं 'कृण्वंतो विश्वम् आर्यम्' का संदेश दिया।*

*सिंध प्रान्त में सिंधी हिंदुओं को 11 वीं सदी के मिरकशाह नामक क्रूर शासक से रक्षा करने वाले प्रसिद्ध धर्मरक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल जी का जन्मदिवस(चेटीचंड महोत्सव)*

*सम्राट विक्रमादित्य की भांति सम्राट शालिवाहन ने हूणों और शकों को परास्त कर भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। शक संवत की स्थापना की।*

*संघ संस्थापक प.पू.डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिन।*

🪷 *भारतीय सनातनी नववर्ष का प्राकृतिक महत्व*
*वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।*

*फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।*
*नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।*

🪷*भारतीय नववर्ष कैसे मनाएँ*
*हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें। पत्रक बांटें , झंडे, बैनर....आदि लगावें ।*
*अपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें।*

*इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फहराएँ।*

*अपने घरों के द्वार, आम के पत्तों की वंदनवार से सजाएँ।*

*घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ।*

*इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें।*
*प्रतिष्ठानों की सज्जा एवं प्रतियोगिता करें। झंडी और फरियों से सज्जा करें।*

*इस दिन के महत्वपूर्ण देवताओं, महापुरुषों से सम्बंधित प्रश्न मंच के आयोजन करें।*
*वाहन रैली, कलश यात्रा, विशाल शोभा*

*यात्राएं, कवि सम्मेलन, भजन संध्या , महाआरती आदि का आयोजन करें।*
*चिकित्सालय, गौशाला में सेवा, रक्तदान जैसे कार्यक्रम।*
वीर्य शरीर का तेल है । ये
शरीर रूपी गाड़ी चलने के लिए वीर्य रूपी तेल पीती । वीर्य की कमी होते ही । शरीर का इंजन बैठ जाता है।
वीर्य तो खून से भी कही अधिक कीमती है और आप
लोग इसे नाले में पानी की
तरह बहाये जा रहे हो अपने आप को तबाह कर रहे हो।
वीर्यवान बड़े से बड़े कार्य
को करने के लिए आतुर
रहता है, ये आतुरता
वीर्यरक्षा से ही आती है ।
सांसारिक वस्तु से
मोह बस कुछ क्षण
भर का ही आनंद दे
सकता है, क्योंकि
सबकुछ नाशवान है. इस धरा पर।
'काम' और 'प्रेम' में अन्तर

इस संसार में एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से मृदुल नाता जोड़ने वाला जो मनोभाव है, उसी का नाम 'प्रेम' है। जैसे पृथ्वी का गुरुत्व आकर्षण चीज़ों को अपनी ओर आकर्षित करता है, वैसे ही एक व्यक्ति में दूसरे के प्रति जो आकर्षण होता है, उसी को ‘प्रेम' कहा जाता है। प्रेम ऐसी मनोस्थिति है अथवा एक ऐसा अनुभव है जो 'आनन्द' के अति निकट है, नहीं, नहीं, प्रेम तो आनन्द का सहगामी ही है अथवा आनन्द का उत्पादक ही है। यदि संसार में प्रेम न हो तो मनुष्य का जीना ही मुश्किल हो जायेगा क्योंकि तब मनुष्य किस लिए जीए, किसके साथ जीए ? अतः प्रेम जीवन को स्थिर रखने वाला, जीवन का सार है अथवा मनुष्य के मन को भाने वाला एक रस है ।

प्रेम ही का विरोधी मनोभाव घृणा है। घृणा से अनेकानेक अशान्तिकारी  तथा दुःखोत्पादक संकल्प-विकल्प और विचार उत्पन्न होते हैं परन्तु प्रेम से मनुष्य के मन में एक-दूसरे के कल्याण की भावना पैदा होती है। प्रेम मनुष्य को दूसरे के लिए अपने सुख को त्यागने में भी सुख की अनुभूति करता है जबकि घृणा से मनुष्य के मन को एक दाह का अनुभव होता है और वह दूसरे के सम्बन्ध अथवा सम्पर्क को ही त्याग देना चाहता है। अतः प्रेम एक स्वाभाविक, आवश्यक और सात्विक गुण है। परमात्मा के प्रति मन में प्रेम का होना ही भक्ति तथा योग है। परमात्मा के प्रेम की एक बूँद प्राप्त करने के लिए भी प्रभु - प्रेमी व्यक्ति अपने जीवन की बाज़ी लगाने को तैयार हो जाता है। प्रेम एक बहुत ही उच्च, बहुत ही पवित्र गुण अथवा अनुभूति है । परन्तु मनुष्य ग़लती से इसके विकृत रूप को भी प्रेम मान बैठता है। वह मोह, काम और लोभ को भी 'प्रेम' समझ बैठता है। अतः वह इनकी दलदल में फँस कर जीवन को दुःखी - बना बैठता है।
काम विकारो को दबा
देना ही इंन्द्रिय दमन है जिनका मन शुद्ध और
संयमी है वह अपने वीर्य
को रोक सकता है ।
जो लोग वीर्य निकालते हैं और ये भी सोचते हैं कि वे जीवन में सफ़ल भी होंगे ये बिलकुल झूठी बात है क्योंकि ज़र्ज़र काया से जीत हासिल नहीं होती।
मनुष्य वास्तव में शरीर नहीं है। वह अनादि, अनंत, चैतन्य एवं आनन्दस्वरूप आत्मा है। उसमें अज्ञान अथवा दुष्प्रवृत्तियों का कोई विकार नहीं है। वह निर्विकार, एकरस, चेतन तत्त्व है, जिसको न तो शस्त्र । काट सकता है, न पानी गीला कर सकता है, न हवा । सुखा सकती है और न अग्नि जला सकती है। वह अपनी ज्योति से स्वयं प्रकाशवान ऐसा शिव एवं शाश्वत दीपक है, जिसको न तो विपरीतताएँ प्रभावित कर सकती हैं और न काल बुझा सकता है।
वीर्य के बारे में सारा संदेह मिटाना हो। तो अपने अनुभव पे चिंता करो। आज तक वीर्य नाश से तुम्हारा शरीर खराब हुआ या अच्छा। जवाब तुम्हे
खुद अंदर से मिल जायेगा।। बाहर तुम्हे किसी से और कही से जानने की जरूरत नहीं है। हर तरफ से गुमराह ही होगे। भगवान कि रची इस दुनिया में अनुभव से बड़ा ना कोई शिक्षक है और ना ही कोई
तथ्य।।
नेत्रों से अंधा तो मात्र आंखों से देख नहीं पाता । परन्तु कामवासना में अंधा तो बुद्धि , मन और इंद्रियों से विकलांग होता है ।
🧡🧡 जय श्री राम 🤩🚩
हमारी किसी से कोई जबरदस्ती नहीं है, आप सब स्वतंत्र है, लेकिन श्रेष्ठ जीवन के लिए, स्वस्थ्य जीवन के लिए, और दीर्घायु के लिए ब्रह्मचर्य ही एकमात्र विकल्प है।❤️
पालो व्रत ब्रह्मचर्य विष्ण-वासनाएँ त्याग । ईश्वर के भक्त बनो जीवन जो प्यारा है ॥ उठिये प्रभातकाल रहिये प्रसन्नचित्त । तजो शोक चिन्ताएँ जो दुःख का पिटारा है । कीजिये व्यायाम नित्य भ्रात ! शक्ति अनुसार । नहीं इन नियमों पै किसीका इजारा' है ॥ देखिये सौ शरद औ' कीजिये सुकर्म प्रिय ! सदा स्वस्थ रहना ही कर्तव्य तुम्हारा है । लाँघ गया पवनसुत ब्रह्मचर्य से ही सिंधु । मेघनाद मार कीर्ति लखन कमायी है ।। लंका बीच अंगद ने जाँघ जब रोप दई । हटा नहीं सका जिसे कोई बलदायी है ॥ पाला व्रत ब्रह्मचर्य राममूर्ति, गामा ने भी । देश और विदेशों में नामवरी पायी है । भारत के वीरो ! तुम ऐसे वीर्यवान बनो । ब्रह्मचर्य महिमा तो वेदन में गायी है।
कुछ मूर्ख लोग सोचते हैं की शादी (विवाह) न करना ब्रह्मचारी बनना है और भगवा वस्त्र पहन लेने और अपना नाम ब्रह्मचारी प्रचारित करवाने ले लेने से कोई ब्रह्मचारी नहीं हो जाता। कर्म ब्रह्मचर्य के नियम अनुसार हो तभी वो ब्रह्मचारी होता है। विवाह न करना और ब्रह्मचारी
कहलबाना मूर्खता के सिवाय और कुछ नहीं है।
भीष्म अमित आत्मबल से सम्पन्न योद्धा थे उन्होने कृष्ण से कहा था आपको प्रतिज्ञा तोड़ने पर विवश कर दूंगा ओर गोविंद ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ी क्योंकि भीष्म जैसे महान योद्धा के लिए स्वयं कृष्ण को
प्रतिज्ञा तोडनी पड़ी इससे पितामह युग युग मे अमर हो गए यह ब्रह्मचर्य का ही प्रताप था कि भीष्म पितामह १८० बर्ष की आयु में भी समस्त पांडवों पर भारी थे।, और अगर उन्हें कुशलतापूर्वक शरशय्या पर नहीं सुलाया जाता तो निश्चित ही पांडवों की हार होती,
ब्रह्मचर्य तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ तप हैं, इसलिए आप सब ब्रह्मचर्य पालन अवश्य करें।
“परिवर्तन के बिना प्रगति असंभव है। जो अपने
मन को नहीं बदल सकते, वे कुछ भी नहीं बदल
सकते।”
न तपस्तप इत्याहु ब्रह्मचर्य तपोत्तमम्।
ऊर्ध्वरेता-भवेद्यम्तु से देवो न तु मानुषः॥

अर्थात् जननेन्द्रिय-संयम द्वारा मनुष्य देवताओं के गुण को प्राप्त हो जाता है, उसका दैहिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का पूर्ण विकास होता है।
2025/07/04 14:33:39
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