चरित्र से पवित्र रहो, किसी के बाप में इतना दम नहीं,
जो तुम पर उंगली उठा सके..
जो तुम पर उंगली उठा सके..
अपनी पीड़ा के लिए संसार को दोष मत दो बल्कि
अपने मन को समझाओ क्योंकि तुम्हारे मन का परिवर्तन ही तुम्हारे दुखों का अंत हैं।
अपने मन को समझाओ क्योंकि तुम्हारे मन का परिवर्तन ही तुम्हारे दुखों का अंत हैं।
जो वीर्य निकलता है! वह खोया खोया सा,सोया सोया सा रहता है! और जो वीर्य बचाता है वह हर समय पूर्णजागृत अवस्था में रहता है!
ब्रह्मचर्य का पालन करने से मनोबल बढ़ता है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से रोग प्रतिरोधक शक्ति बढती है। ब्रह्मचर्य मनुष्य की एकाग्रता और ग्रहण करने की क्षमता बढाता है। ब्रह्मचर्य पालन करने वाला व्यक्ति किसी भी कार्य को पूरा कर सकता है।
चरित्र मानव की श्रेष्ठ संपत्ति है, दुनिया की समस्त संपदाओं में महान संपदा है। पंचभूतों से निर्मित मानव-शरीर की मृत्यु के बाद, पंचमहाभूतों में विलीन होने के बाद भी जिसका अस्तित्व बना रहता है, वह है उसका चरित्र।
चरित्रवान व्यक्ति ही समाज, राष्ट्र व विश्वसमुदाय का सही नेतृत्व और मार्गदर्शन कर सकता है। आज जनता को दुनियावी सुख-भोग व सुविधाओं की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी चरित्र की। अपने सुविधाओं की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी की चरित्र की। अपने चरित्र व सत्कर्मों से ही मानव चिर आदरणीय और पूजनीय हो जाता है।
किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिये सबसे पहले जरूरी है विचार करना और उसके बाद उसको हासिल करने का संकल्प करना,संकल्प के बिना हम निश्चित नहीं हो पाते की हम अपने लक्ष्य तक पहुंचगे या नहीं, अगर हम अपने कर्म को पूर्ण प्रयास लगाकर नहीं करेंगे तो हम किसी भी दौड़ में पीछे रह जायेंगे और अपने अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएंगे।
काम, क्रोध और लोभ आत्मा का नाश करने वाले तीन घोर शत्रू है इन तीनों में से क्रोध सबसे भयानक है। यह बडी बुरी बला है और सभी बुराईयों और लडाईयों का घर है। क्रोध उस बारूद के समान है, जो दूसरों का नाश करने से पूर्व जिसमें यह रहता है उसे ही भस्म कर देता है। क्रोध की अग्नि भी दूसरों को जलाने से पहले जहां उत्पन्न होती है उसे ही जलाती है। क्रोध दूसरों को हानि पहुंचाने से पूर्व क्रोध करने वाले को ही जलाता है और कुरूप बना देता है। क्रोध से आंखे लाल हो जाती हैं, चेहरा भयंकर और विकराल हो जाता है। यह शरीर को जलाता है, हृदय को तपाता है, रक्त संचार को अनियमित कर देता है, व्याकुलता बढाता है, वाणी को कठोर कर्कश बनाता है और धर्म को छुडाता है। क्रोध से मनुष्य का धैर्य, विद्या, ज्ञान, विवेक सबका नाश हो जाता है ।
क्रोध अहंकार से उपजता है, मूढता से बढता है और पश्चाताप पर समाप्त होता है। यह मन में बुरे विचारों और भावों को जन्म देता है जिसके फलस्वरुप द्वेष, घृणा, वैमनस्य, प्रतिकार, दुख, अभिमान आदि उत्पन्न होते हैं। क्रोध में मनुष्य माता, पिता, आचार्य, संबंधियों आदि का भी अपमान कर बैठता है। क्रोधी मनुष्य दूसरों को दुखी करता है या नहीं पर स्वयं अंदर ही अंदर जलता रहता है। इस भयंकर रोग से शारीरिक, मानसिक, आत्मिक हर प्रकार की अवनति होती है ।
क्रोध के साथ यदि विवेक का अंकुश भी रहे तो यह एक रामबाण औषधि का काम करता है, जिस प्रकार बहुत से रोगों के उपचार में संखियां तक दी जाती हैं। परिवार के सदस्यों, सहयोगियों तथा अधीनस्थों को सुधारने के लिए और बिगाड़ से बचाने के लिए क्रोध के विवेकपूर्ण प्रदर्शन की आवश्यकता होती है। दंड और प्रताडना का भी उपयोग करना पडता है। यदि इस स्थिति का त्याग कर दिया जाए तो फिर मां, बाप, अध्यापक, अधिकारी आदि अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकेंगे। क्रोध का विवेकपूर्ण और व्यवहारिक प्रदर्शन वास्तव में प्रेम भाव का ही एक रूप है और इसके प्रयोग में बहुत संयम बरतना होता है। क्रोध केवल दूसरों को आत्म सुधार की प्रेरणा देने के एक सशक्त साधन के रूप में ही प्रयुक्त होना चाहिए ।
क्रोध निवारण के अनेक उपाय हैं। मौन धारण करके मन ही मन गायत्री मंत्र का जाप करने से क्रोध के विषय से ध्यान हट जाता है और वह शांत हो जाता है। यदि किसी की गलती पर क्रोध आए तो यह भी ध्यान करना चाहिए कि ऐसी गलती हम से भी हो सकती है। इस प्रकार विवेकानुसार विचार करने से क्रोध का वेग कम हो जाता है और बार बार के अभ्यास से अंततः उस पर विजय पाई जा सकती है। धैर्य और क्षमा का अभ्यास क्रोध निवारण के सर्वोत्तम उपाय हैं। धैर्य उसे शांत कर देता है और क्षमा तो समूल नष्ट कर देती है ।
क्रोध अहंकार से उपजता है, मूढता से बढता है और पश्चाताप पर समाप्त होता है। यह मन में बुरे विचारों और भावों को जन्म देता है जिसके फलस्वरुप द्वेष, घृणा, वैमनस्य, प्रतिकार, दुख, अभिमान आदि उत्पन्न होते हैं। क्रोध में मनुष्य माता, पिता, आचार्य, संबंधियों आदि का भी अपमान कर बैठता है। क्रोधी मनुष्य दूसरों को दुखी करता है या नहीं पर स्वयं अंदर ही अंदर जलता रहता है। इस भयंकर रोग से शारीरिक, मानसिक, आत्मिक हर प्रकार की अवनति होती है ।
क्रोध के साथ यदि विवेक का अंकुश भी रहे तो यह एक रामबाण औषधि का काम करता है, जिस प्रकार बहुत से रोगों के उपचार में संखियां तक दी जाती हैं। परिवार के सदस्यों, सहयोगियों तथा अधीनस्थों को सुधारने के लिए और बिगाड़ से बचाने के लिए क्रोध के विवेकपूर्ण प्रदर्शन की आवश्यकता होती है। दंड और प्रताडना का भी उपयोग करना पडता है। यदि इस स्थिति का त्याग कर दिया जाए तो फिर मां, बाप, अध्यापक, अधिकारी आदि अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकेंगे। क्रोध का विवेकपूर्ण और व्यवहारिक प्रदर्शन वास्तव में प्रेम भाव का ही एक रूप है और इसके प्रयोग में बहुत संयम बरतना होता है। क्रोध केवल दूसरों को आत्म सुधार की प्रेरणा देने के एक सशक्त साधन के रूप में ही प्रयुक्त होना चाहिए ।
क्रोध निवारण के अनेक उपाय हैं। मौन धारण करके मन ही मन गायत्री मंत्र का जाप करने से क्रोध के विषय से ध्यान हट जाता है और वह शांत हो जाता है। यदि किसी की गलती पर क्रोध आए तो यह भी ध्यान करना चाहिए कि ऐसी गलती हम से भी हो सकती है। इस प्रकार विवेकानुसार विचार करने से क्रोध का वेग कम हो जाता है और बार बार के अभ्यास से अंततः उस पर विजय पाई जा सकती है। धैर्य और क्षमा का अभ्यास क्रोध निवारण के सर्वोत्तम उपाय हैं। धैर्य उसे शांत कर देता है और क्षमा तो समूल नष्ट कर देती है ।
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चित्र की नहीं चरित्र की पूजा करो !
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ब्रह्मचर्य ही जीवन (हरीॐ)
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श्रीमद् भगवद्गीता जयंतीच्या हार्दिक शुभेच्छा... 🙏🏻💐♥️
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