हम कितने अरसे से नहीं मिले....
फूलों में
किताबों में
एक-दूसरे के ख़्वाबों में...
मिलना ज़रूरी भी नहीं है
लेकिन मिलते रहना बहुत ज़रूरी है
जैसे फूलों में ख़ुशबू का
किताबों में एहसासों का
ख़्वाबों में हक़ीक़त के कुछ अंशों का मिलते रहना....
आज बारिश की बूंदें मिट्टी में घुल-मिल रहीं थीं
तभी मुझे ख़्याल आया
हमें भी मिलते रहना चाहिए
तभी तन की मिट्टी में जीने की ख़ुशबू जीवित रह पाएगी....
सुनो,
तुम मिलो ना मुझसे
आज शाम की चाय पर
ज़ुबान को मिठास की बहुत तलब महसूस हो रही है
शायद....
तुम्हारे साथ की ख़ुशबू से मन थोड़ा गीला हो जाए
कि खिल सकें उसमें फूल
जी उठें कुछ एहसास
सच हो सकें कुछ ख़्वाब
तो मिलो मुझसे
क्योंकि मिलते रहना बहुत ज़रूरी है
मिल जाने से भी कहीं ज्यादा....!!!!
फूलों में
किताबों में
एक-दूसरे के ख़्वाबों में...
मिलना ज़रूरी भी नहीं है
लेकिन मिलते रहना बहुत ज़रूरी है
जैसे फूलों में ख़ुशबू का
किताबों में एहसासों का
ख़्वाबों में हक़ीक़त के कुछ अंशों का मिलते रहना....
आज बारिश की बूंदें मिट्टी में घुल-मिल रहीं थीं
तभी मुझे ख़्याल आया
हमें भी मिलते रहना चाहिए
तभी तन की मिट्टी में जीने की ख़ुशबू जीवित रह पाएगी....
सुनो,
तुम मिलो ना मुझसे
आज शाम की चाय पर
ज़ुबान को मिठास की बहुत तलब महसूस हो रही है
शायद....
तुम्हारे साथ की ख़ुशबू से मन थोड़ा गीला हो जाए
कि खिल सकें उसमें फूल
जी उठें कुछ एहसास
सच हो सकें कुछ ख़्वाब
तो मिलो मुझसे
क्योंकि मिलते रहना बहुत ज़रूरी है
मिल जाने से भी कहीं ज्यादा....!!!!
🔴⚜️'शायरी संग्रह'⚜️🔴
Photo
उस रात उसका फ़ोन आया था —
ठीक 2:47 AM पर।
मैं जागा नहीं।
फोन बजा,
बंद हुआ,
फिर दोबारा बजा।
फिर… हमेशा के लिए ख़ामोश हो गया।
---
सुबह उठा तो
उसका नाम स्क्रीन पर चमक रहा था —
3 मिस्ड कॉल।
मैंने सोचा,
"फिर कोई फ़िजूल की बहस रही होगी…"
और मोबाइल साइड में रख दिया।
10 मिनट बाद
दोस्त का कॉल आया —
"वो नहीं रही…"
---
क्या?"
सिर्फ यही एक शब्द निकला मुँह से।
और फिर बिल्कुल शून्य।
ना आंसू निकले,
ना गुस्सा,
ना यकीन।
बस एक कंपकंपी थी —
जिसने दिल को भींच लिया था।
मैंने सोचा कोई मज़ाक है,
फिर हँसने की हिम्मत भी नहीं हुई।
क्योंकि अचानक
दिल में एक सिहरन उठी —
“क्या उसने… मरने से पहले मुझे कॉल किया था?”
---
मैं भागा,
उसके घर,
उसकी गली,
उसकी आख़िरी तस्वीर तक।
सब जगह एक ही बात थी —
“वो बहुत देर तक अकेले बैठी रही…
आख़िरी बार किसी को फोन कर रही थी…
किसी को माफ़ करने की कोशिश में थी।”
---
अब मैं हर रात 2:47 पर उठता हूँ।
फोन घूरता हूँ।
दिल करता है,
कभी फिर से वो कॉल आए…
बस एक बार।
---
उसकी यादें अब सिर्फ़
वो तीन मिस्ड कॉल बन चुकी हैं —
जो मैं कभी उठा नहीं पाया।
---
लोग कहते हैं,
"जो गया, उसे जाने दो..."
पर कोई उनसे पूछे —
"जिसने जाने से पहले तुम्हें पुकारा हो,
क्या उसे भुलाया जा सकता है?"
ठीक 2:47 AM पर।
मैं जागा नहीं।
फोन बजा,
बंद हुआ,
फिर दोबारा बजा।
फिर… हमेशा के लिए ख़ामोश हो गया।
---
सुबह उठा तो
उसका नाम स्क्रीन पर चमक रहा था —
3 मिस्ड कॉल।
मैंने सोचा,
"फिर कोई फ़िजूल की बहस रही होगी…"
और मोबाइल साइड में रख दिया।
10 मिनट बाद
दोस्त का कॉल आया —
"वो नहीं रही…"
---
क्या?"
सिर्फ यही एक शब्द निकला मुँह से।
और फिर बिल्कुल शून्य।
ना आंसू निकले,
ना गुस्सा,
ना यकीन।
बस एक कंपकंपी थी —
जिसने दिल को भींच लिया था।
मैंने सोचा कोई मज़ाक है,
फिर हँसने की हिम्मत भी नहीं हुई।
क्योंकि अचानक
दिल में एक सिहरन उठी —
“क्या उसने… मरने से पहले मुझे कॉल किया था?”
---
मैं भागा,
उसके घर,
उसकी गली,
उसकी आख़िरी तस्वीर तक।
सब जगह एक ही बात थी —
“वो बहुत देर तक अकेले बैठी रही…
आख़िरी बार किसी को फोन कर रही थी…
किसी को माफ़ करने की कोशिश में थी।”
---
अब मैं हर रात 2:47 पर उठता हूँ।
फोन घूरता हूँ।
दिल करता है,
कभी फिर से वो कॉल आए…
बस एक बार।
---
उसकी यादें अब सिर्फ़
वो तीन मिस्ड कॉल बन चुकी हैं —
जो मैं कभी उठा नहीं पाया।
---
लोग कहते हैं,
"जो गया, उसे जाने दो..."
पर कोई उनसे पूछे —
"जिसने जाने से पहले तुम्हें पुकारा हो,
क्या उसे भुलाया जा सकता है?"
अच्छा सुनो,,,
Music पर तो सब नाचते है 😜🙈
😛 कभी.....
🤪तुम मेरे इशारों पे भी नाच लिया करो
. 😏
Music पर तो सब नाचते है 😜🙈
😛 कभी.....
🤪तुम मेरे इशारों पे भी नाच लिया करो
. 😏
दुनिया से कहूँ या चुप ही रहूँ,
ज़ख़्मो को कहानी कैसे लिखूँ।
तू ख़्वाब तसव्वुर सब में ही है,
अब इतनी रवानी कैसे लिखूँ।
हर मोड़ पे सन्नाटा ही था
कोई भी सदा ना साथ हुई,
सदियों की रही जो ख़ामोशी
लफ़्ज़ों की ज़ुबानी कैसे लिखूँ।
साँसों सा जो रिश्ता था कभी
अब वो ना धड़कन है न बदन,
टूटे हुए एहसासों से बता
मैं तुझ को दिवानी कैसे लिखूँ।
तेरी ही याद का इक लम्हा
हर पल मुझे तकलीफें दे रहा,
जो ज़ख़्म नहीं भर पाए कभी
उल्फ़त की निशानी कैसे लिखूँ।
लब चुप रहे, आँखों मे तो मगर
इक नाम सदा तड़पा ही किया,
जो बात न कह पाया तुझसे
हमदम वो कहानी कैसे लिखूँ।
हर लफ़्ज़ में बस तू ही तो रहा
फिर भी नहीं तू मेरा हो सका,
जो बात अधूरी रह जाए
मैं उस को बयानी कैसे लिखूँ।
अब वक़्त के आख़िर मोड़ सनम
बस तुझको ही दिल याद करे,
इस उम्र में, इस तनहाई में
हसरत ये पुरानी कैसे लिखूँ।
तू ख़्वाब में आए तो लगे यूँ
सब ही रंग तेरे जैसे हों,
जब जागूं तो सब सूनापन
यादों को नुरानी कैसे लिखूँ।
जिस दिल में तेरा दर्द रहा
अब और कोई बसता ही नहीं,
इन दीवारों पर तेरे बिन
मैं दिल की रानी कैसे लिखूँ।
अब साँस भी तेरा नाम लिए
धड़कन भी तुझी को गाती है,
जो ख़ुद में भी तू बन बैठा
धड़कन की रवानी कैसे लिखूँ।
━━✧༺♥༻✧━━
ज़ख़्मो को कहानी कैसे लिखूँ।
तू ख़्वाब तसव्वुर सब में ही है,
अब इतनी रवानी कैसे लिखूँ।
हर मोड़ पे सन्नाटा ही था
कोई भी सदा ना साथ हुई,
सदियों की रही जो ख़ामोशी
लफ़्ज़ों की ज़ुबानी कैसे लिखूँ।
साँसों सा जो रिश्ता था कभी
अब वो ना धड़कन है न बदन,
टूटे हुए एहसासों से बता
मैं तुझ को दिवानी कैसे लिखूँ।
तेरी ही याद का इक लम्हा
हर पल मुझे तकलीफें दे रहा,
जो ज़ख़्म नहीं भर पाए कभी
उल्फ़त की निशानी कैसे लिखूँ।
लब चुप रहे, आँखों मे तो मगर
इक नाम सदा तड़पा ही किया,
जो बात न कह पाया तुझसे
हमदम वो कहानी कैसे लिखूँ।
हर लफ़्ज़ में बस तू ही तो रहा
फिर भी नहीं तू मेरा हो सका,
जो बात अधूरी रह जाए
मैं उस को बयानी कैसे लिखूँ।
अब वक़्त के आख़िर मोड़ सनम
बस तुझको ही दिल याद करे,
इस उम्र में, इस तनहाई में
हसरत ये पुरानी कैसे लिखूँ।
तू ख़्वाब में आए तो लगे यूँ
सब ही रंग तेरे जैसे हों,
जब जागूं तो सब सूनापन
यादों को नुरानी कैसे लिखूँ।
जिस दिल में तेरा दर्द रहा
अब और कोई बसता ही नहीं,
इन दीवारों पर तेरे बिन
मैं दिल की रानी कैसे लिखूँ।
अब साँस भी तेरा नाम लिए
धड़कन भी तुझी को गाती है,
जो ख़ुद में भी तू बन बैठा
धड़कन की रवानी कैसे लिखूँ।
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