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मन्दिर में प्रवेश का अधिकार :--

कई प्रकार के मन्दिर होते हैं, मैंने दलितों के भी मन्दिर देखे है जिनमें उनके विशिष्ट देवता होते हैं, कई मन्दिरों में महिला ही पुजारिने होती हैं, कई समुदायों में महिलाओं से ही गुरुमन्त्र लेने की भी परम्परा है किन्तु कभी पुरुषों ने भेदभाव की शिकायत नहीं की | हर किसी को उसके सम्प्रदाय के अनुसार पूजा-पाठ करने की छूट है | दलित के नाम पर नक्सल कम्युनिस्ट या महिला के नाम पर तृप्ति देसाई जैसी कांग्रेसी नास्तिक मन्दिर में प्रवेश का जो नाटक खेलते हैं उसका परिणाम यही होगा कि नास्तिकों के कारण सारे मन्दिर भ्रष्ट कर दिए जायेंगे , शराब और गोमाँस के आदी लोग मन्दिरों में जायेंगे तो पवित्रता नहीं रहेगी और प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमाओं में भी देवता नहीं रहेंगे |
जिनके मन में भक्ति हैं उन्हें अपने घर में मूर्ति स्थापित करने या मोहल्ले में सामूहिक मन्दिर बनाने से कौन रोकता है ? तृप्ति देसाई ने मुंबई में कैसे अश्लील आन्दोलन किये थे वे लोग भूलते क्यों हैं ? किन्तु मीडिया उन बातों को नहीं दिखायेगी, इन्टरनेट पर ढूँढे  | ऐसे लोगों को ईश्वर में ही आस्था नहीं है | तथाकथित दलितों के मन्दिर प्रवेश का नाटक करने वालों से पूछिए कि दलित "महापुरुषों" में से केवल नास्तिकों ने ही यह मुद्दा क्यों उठाया , दलित साधुओं ने कभी भी क्यों नहीं उठाया ?? एक से बढ़कर एक दलित साधु हो चुके हैं जिन्हें सवर्ण लोग भी पूजनीय मानते हैं, उन्होंने यह मुद्दा इसलिए नहीं उठाया चूँकि वे जानते थे कि सभी सम्प्रदायों को अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार जीने की छूट का नाम ही सनातन धर्म है | अपना मत दूसरों पर थोपने का नाम धर्म नहीं है |
दलित जातियों की उत्पत्ति और जातिगत छूआछूत का स्रोत हिन्दूधर्म ग्रन्थ नहीं, बल्कि मुस्लिम युग के दौरान हिन्दू दासों से कराये गए गन्दे कार्य हैं | इस्लाम कहने के लिए समानता का सम्प्रदाय है, दासप्रथा और नारी-शोषण का इतना घिनौना स्वरूप अन्य किसी सम्प्रदाय के इतिहास में नहीं मिलेगा, उसमें भी अछूत जातियाँ होती हैं जिन्हें मस्जिदों में घुसने से रोका जाता है, जैसे कि हलालखोर, मेस्तर, आदि , किन्तु कभी भी मीडिया और सेक्युलरों द्वारा यह मुद्दा नहीं उठाया जाता, यद्यपि मस्जिद में अल्लाह की मूर्ति नहीं होती और इस्लाम की मान्यता है कि अल्लाह मस्जिद के भीतर और बाहर एक समान रूप से रहते हैं, मस्जिद तो केवल इबादत की सुविधा के लिए बनाया स्थान है जिसे आवश्यकता पड़ने पर तोड़ा भी जा सकता है | फिर भी मस्जिद अपवित्र हो जाएगा !
गीता में आदेश है कि भगवान की प्राप्ति का अवसर ब्राह्मण से चाण्डाल तक हर किसी को समान रूप से है, किसी को रोका नहीं जा सकता | किन्तु दूसरों की परम्पराओं  पर आक्रमण करना आस्तिकता नहीं, नास्तिकता है | जिन मन्दिरों की स्थापना ही सभी के प्रवेश के लिए हुई है उसमें प्रवेश करें, जिन मन्दिरों को केवल दलितों के लिए बनाया गया है उसमें सवर्ण क्यों जाएँ (जैसे कि सलहेस  /  शैलेश के मन्दिर)?
वैसे हर मन्दिर में हर कोई घुसे उससे मुझे कोई व्यक्तिगत क्षति नहीं है क्योंकि मैं मूर्तिपूजा नहीं करता, यद्यपि मैं मूर्तिपूजा का विरोधी भी नहीं हूँ और जानता हूँ कि जिन मूर्तियों की विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा की गयी है और विधिवत पूजनादि एवं पवित्रता की रक्षा की गयी है उनमें देवत्व है | वैसे तो देवता सर्वव्यापी होते हैं, किन्तु जो अमूर्त का ध्यान नहीं कर सकते उनके लिए मूर्ति का विशेष महत्त्व है |
सबसे अच्छा हल तो स्वामी करपात्री जी ने निकाला -- हर जाति को सार्वजनिक मन्दिर में प्रवेश मिले और केवल पुजारी ही प्रतिमा का स्पर्श कर सके | सवर्णों में भी कौन वास्तव में पवित्र है यह कौन बताएगा ?

साभार - श्री विनय झा जी
बचपन में लोमड़ी की कहानी पढ़ी होगी कि लोमड़ी ने अंगूर देखे और काफी प्रयास के बाद जब अंगूर नही खा पाया तो कह दिया कि अंगूर खट्टे है।
वेसे ही हाल समाजियो के रहते है।

वैसे भी करवाचौथ भारतीय नारी की पवित्र भावनाओं का प्रतीक है !
ऐसा सब लिख कर ये अपनी संस्कारहीनता तथा विकृत मानसिकता का प्रमाण दें रहें है।

किसी ने कहा था कि -
करवा चौथ कुलवधुओं का पर्व है,
नगरवधुओं का नहीं

- साभार
नमश्चण्डिकायै

दीपावली निर्णय

धनत्रयोदशी (धनतेरस) - 29 अक्टूबर
नरक चतुर्दशी / रूप चतुर्दशी - 30 अक्टूबर
दीपावली - 31 अक्टूबर
गोवर्धन पूजा - 2 नवम्बर
भ्रातृद्वितीया(भाईदूज) - 3 नवम्बर

अब किसी भ्रम में ना रहे।
हर हर महादेव

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दीवाली 31 को है
नही 1 को है

ले आर्य समाजी - अरे आर्य जी दीवाली 2 अक्टूबर को थी।
गाय न हो तो गोपाल न हो,
गोपाल न हो तो गोपी न हो,
गोपी न हो तो दूध, मलाई, मक्खन, घी न हो,
घी न हो तो अन्न को पहाड़ यानी अन्नकूट न हो,

अन्नकूट न हो तो गो वर्धन पूजन कैसे हो ?

'गोवर्धन' एक पर्वत नहीं अपितु पर्वताकार यानी विशाल, उच्च सिद्धान्त है - जो गो के वर्धन हेतु उपाय करे और उस उपाय रूपी पर्वत की परिक्रमा तब तक करे जब तक सफलता न मिले,परिक्रमा यानी गोल-गोल घूमना तो चक्र में भी है, और चक्रवृद्धि ब्याज में भी !

यह एक ब्यौपार है - गोल-गोल घूम कर रास रचइया ने सब बतइया है !

हे अन्नपूर्णे ! तू सदापूर्ण हो, शंकर की प्राणपूर्ण हो ...
आपकी शरण में ज्ञान भक्ति वैराग्य की भिक्षा भी पूर्ण हो !!

___
गोवर्धन पूजन और अन्नकूट की बधाई !!

साभार - सोमदत्त द्विवेदी जी
प्रच्छन्न इतिहास (History)
गाय न हो तो गोपाल न हो, गोपाल न हो तो गोपी न हो, गोपी न हो तो दूध, मलाई, मक्खन, घी न हो, घी न हो तो अन्न को पहाड़ यानी अन्नकूट न हो, अन्नकूट न हो तो गो वर्धन पूजन कैसे हो ? 'गोवर्धन' एक पर्वत नहीं अपितु पर्वताकार यानी विशाल, उच्च सिद्धान्त है - जो गो के वर्धन…
अपनी परंपराओं को जीवित रखिये।
विधर्मी और समाजी पूरा जोर लगा कर हमारी संस्कृति को मिटाने के प्रयास पर लगे है।
लेकिन.....

लाख मिटाये जमाना मेरे वजूद को
मिट गये जमाने कितने
मैं मिटता यूँ नहीं!

माथे पे लिखा के लाया हूँ तकदीर
पत्थर की लकीर
मैं मिटता यूँ नहीं!

कैसे मिटाओगे मुझे,मैं तुम में रहूँगा
तुम्हारी जुबाँ से हर बात कहूँगा
शब्द हूँ
आकाश हूँ
हर शय में रहूँगा
जितना मिटाओगे मुझे
उतना बढ़ूँगा

जब कुछ न रहेगा
बस मैं ही रहूँगा
मैं ही था
मैं ही हूँ
मैं ही रहूँगा

चित्र - मेरे द्वारा बनाए गए गोवर्धन जी ( कमी मत निकालना)🙂
प्रत्येक मूर्ख सैद्धांतिक स्तर पर हारने के बाद व्यक्तिगत हमला करता है।
विधर्मी तो ये कार्य करते ही है।
खच्चर समाजी को भी ऐसा करते देखा है।
वर्णव्यवस्था की डिबेट में जब हर तरफ से आर्य समाजी घिर जाते है या निउत्तर हो जाते है तो उन को उन्ही पुराणों का सहारा लेना पड़ता है जिनको दिन भर बैठ कर गरियाते रहते है।

जन्मना जायते शूद्र: जो स्कंद पुराण का श्लोक है वो कुछ समय के लिए इनके लिए ऋषि वाक्य हो जाता है।

इन दोगले लोगो से अछूत की बीमारी की तरह दूर रहे।
सत्यार्थ प्रकाश में दयानन्द सरस्वती कहते है कि मूर्ति पूजा करने वाले देश का नाश करते है और मूर्तिपूजा करने वाली की आत्मा भी जड़ बुद्धि हो जाती है।

- ललितादित्य मुक्तापीड
- राजा भोज
- राजा विक्रमादित्य
- पृथ्वीराज चौहान
- राजा कृष्णदेव राय
- महाराणा प्रताप
- समर्थ गुरु रामदास जी
- छत्रपति शिवाजी महाराज

ये सभी मूर्तिपूजक थे
क्या इनकीं आत्मा जड़ हो गयी थी?
क्या इन्होंने देश का नाश किया था?
क्या आपके माता पिता इस देश का नाश कर रहे है?

सोचिए और ऐसी संस्थाओं से सावधान हो जाइए।

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जय माँ
जय कालभैरव
जय गुरुदेव 🙏
आर्यसमाजियों और  इस्लामिक मतानुयायियों के मान्य राष्ट्रवाद की  धर्मशास्त्रीय समीक्षा ---

आर्यसमाजियों, इस्लामिक मतवादियों और सनातनी हिन्दुओं में अनेक स्थलों  पर  सैद्धान्तिक मतभेद सर्वविदित है , इसी प्रकार का मतभेद राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में भी है ।

एक महाशय (आर्यसमाजी चिन्तक)    का कहना था कि भले ही आप   पौराणिक सनातनी लोग हम आर्यसमाजियों  से अनेक विषयों में मतभेद रखें पर  हमारी राष्ट्रभक्ति  से असहमत  नहीं हो सकते ।  ऐसे ही आजकल के कुछ नवचिन्तक मानते हैं कि  राष्ट्रवादी इस्लामिक मतानुयायियों  की राष्ट्रभक्ति  सनातनियों के लिये  पूर्णतः आदरणीय है इत्यादि, किन्तु यथार्थता तो यही है कि आर्यसमाजियों और तथाकथित मुसलमानों का राष्ट्रवाद   वस्तुतः  अविचारितरमणीय ही  है।   वस्तुतः तो  सैद्धान्तिक दृष्टि से  ये लोग  आवासवादी ही  हैं , अर्थात् जहॉ इनका आवास है, उसी की ये रक्षा चाहते हैं । उक्त जन्मना आवासवाद के सिद्धान्त पर विचार करें तो  यदि यह सउदी अरब में जन्मे होते तो  वहॉ अपनी रक्षा के लिये सउदी अरब की ही जयकार करते ,  जबकि जो वैदिक सनातनी हिन्दू हैं , वे चाहे विश्व के किसी भी देश में जन्म ले लें , अथवा रहने को मजबूर कर दिये जायें, परन्तु वह सर्वप्रथम  भारत की रक्षा को ही सर्वोपरि मानते हैं। इसका कारण क्या है ? कारण है मान्य शास्त्रीय  सिद्धान्त । वह कैसे , आगे देखें -

जिनके सिद्धान्त में  केवल और केवल  भारत को ही कर्मभूमि माना  गया है , उसके लिये भारत से बाहर क्या गति होगी जो विष्णुपुराण को  अपने धर्मग्रन्थ के रूप में प्रमाण मानते हैं , वह  भारत के विषय में कर्मभूमि भोगभूमि का सिद्धान्त मानते हैं ।  अतः वे चाहे विश्व में कहीं भी रहें , उनका कर्मफल पुनर्जन्म का उनका सिद्धान्त  और कर्मभूमि भोगभूमि का सिद्धान्त उनको भारत के समकक्ष किसी के नहीं समझने देता । उनके लिये तो भारत ही पहली और अन्तिम गति है । किन्तु कथित राष्ट्रवादी मुसलमानों के मान्य कुरआन शरीफ में  यह सैद्धान्तिक  स्थिति है क्या

इसी प्रकार आर्यसमाजियों के मान्य सिद्धान्त में भी जो तिब्बत की धरती से प्रकट होने वाले आर्यसमाजियों के लिये मनु के आर्यावर्त्त  की मान्यता है, उसके मूल में  कर्मभूमि और भोगभूमि का कोई पार्थक्य न होने से अमेरिका की धरती और भारत की धरती में कोई  अन्तर नहीं है ।   गंगा  यमुना सरस्वती आदि का यह  वेद में वर्णन ही नहीं मानते , वह केवल एक जलस्रोतमात्र  इनके सिद्धान्त में है ।  यह भारत में इसीलिये रहते हैं क्योंकि इनके पूर्वज  यहॉ रहते आये हैं , परन्तु इनके वे पूर्वज  यहॉ भारत में क्यों रहे ? किस कारण से भारत में  रहे ? इस पर विचार अपेक्षित है , क्योंकि मूल में यदि भौतिक सुविधा जैसा हेतु होगा , तो वह भौतिक सुविधा जिस देश में इनको मिलना सम्भव होगा , वही सैद्धान्तिक धरातल पर इनका नवीन राष्ट्र  सिद्ध होने लगेगा । वस्तुतः तो सत्यार्थप्रकाशादि के आधार पर   जैसा आर्यसमाजियों का राष्ट्रवाद है, आर्यसमाजी अगर अमेरिका में रहेंगे तो एक पीढी के बाद ही उसको भी अपना राष्ट्र मानने लगेंगे क्योंकि / पूर्वजों की आवासभूमि/ के इनके सिद्धान्तानुरूप अपने  पूर्वजों को  वहॉ भी रहते हुए  ये पा लिये । जिस संहिताभागमात्र को यह अपने लिये सर्वोच्चप्रमाणत्वेन  वेद मानते हैं,  उसमें इतिहास का लवलेश भी इनके मत में कहीं नहीं है ।   इस प्रकार सैद्धान्तिक धरातल पर इनका राष्ट्रवादी भाव व्यभिचरित सिद्ध हो जाता है ।

आज आवश्यकता यह है कि यह लोग  'सनातनी हिन्दू राष्ट्रवाद'  को अपनाऐं, जिससे  सैद्धान्तिक धरातल पर यह  सनातनी हिन्दुओं की ही भांति  शुद्ध , पवित्र राष्ट्रवादी सिद्ध हो सकें ।  

सन्मार्ग
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आry समाज द्वारा समाज को सबसे तड़कता- भड़कता योगदान (अभिशाप) को साउथ के कॉमेडी बनाने वाले भी जान चुके हैं।😁
क्या रात्रि में विवाह अनुचित है?

कुतर्क - वेद मंत्र रात को नहीं पढ़ते हैं।
निराकरण - वेद का स्वाध्याय निषिद्ध है, मंत्र प्रयोग नहीं।

कुतर्क - मुगलों के डर से रात में विवाह शुरू हुआ।
निराकरण - मुगल रात में हमला न करने की कसम खाए थे क्या?

कुतर्क - शिव जी का भी विवाह रात में नहीं हुआ था।
समाधान - शिव जी के विवाह में भी ध्रुव तारा दर्शन के बाद ही सिंदूर दान आदि हुआ जो दिन में संभव नहीं।

निष्कर्ष - दिन में विवाह का निषेध प्राप्त तो नहीं होता है लेकिन ध्रुवदर्शन , अरुंधतीदर्शन और सप्तऋषि तारामंडल दर्शन जैसे कार्य रात्रि में ही संभव होने के कारण रात्रि विवाह ही अधिक उपयुक्त है।

अत्रि स्मृति में ग्रहण, संक्रान्ति विवाह और प्रसव के समय नैमित्तिक दान को रात्रि में भी श्रेष्ठ बताए जाने के क्रम में विवाह की उपस्थिति इसे रात्रिकाल में होना सिद्ध करती है।

E-समिधा
JOIN - @esamidha
लाखों लोगों ने किया कुम्भ स्नान❤️

और कुछ असमाजी लोग पाखण्ड पाखण्ड कह कर अपनी चूड़ियां तोड़ कर विलाप कर रहे होंगे।😂
समाजी तेरे अङ्गना में श्रीफल का क्या काम?
ये मेरा मित्र है जिसको अस्थमा की समस्या थी पिछले 14 वर्षों से। डॉक्टर ने कहा था कि जीवन भर दवाई लेनी पड़ेगी।
लेकिन फिर मेने इसे आयुर्वेदाचार्य जी के नम्बर दिए और उनसे उपचार करवाने के बाद स्वयं ये लिख कर भेजा था।

अगर किसी को अस्थमे की समस्या हो तो वो भी अपना उपचार करवा सकता है।
आँखों पर चश्मा हो तो वो भी उतर जाएगा आई ड्राप से।

अरविंद पांचाल जी
9825586115

फोन पर बात करने का समय -
सुबह - 10 से 12
दोपहर - 2 से 5
रविवार की छुट्टी रहती है।
2025/07/03 07:38:14
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